आईसीजे ने इज़राइल से कहा, ग़ाज़ा में संरा की मानवीय सहायता जाने दें; लेकिन विश्व निकाय खुद विफल रहा
(द कन्वरसेशन) मनीषा नरेश
- 29 Oct 2025, 04:58 PM
- Updated: 04:58 PM
(बेन ली मर्फी, लिवरपूल यूनिवर्सिटी)
लिवरपूल, 29 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष न्यायिक संस्था, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने इज़राइल को निर्देश दिया है कि वह ग़ाज़ा में मानवीय सहायता को प्रवेश करने की अनुमति दे। अदालत ने 22 अक्टूबर को जारी अपने परामर्श में यह भी कहा कि इज़राइल, संयुक्त राष्ट्र का सदस्य देश होने के नाते, अपने दायित्वों का पालन करने में विफल रहा है।
यह परामर्श संयुक्त राष्ट्र महासभा के लगभग दस महीने पहले किए गए अनुरोध पर दिया गया। उस समय इज़राइल की संसद ने संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) पर देश द्वारा कब्जे में लिए गए इलाकों में काम करने को लेकर प्रतिबंध लगा दिया था। यूएनआरडब्ल्यूए लंबे समय से फ़लस्तीनी शरणार्थियों को सहायता पहुँचाने में अहम भूमिका निभाती रही है।
आईसीजे ने अपने सर्वसम्मत फैसले में कहा “भूख को युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।” अदालत ने 10-1 मतों से निर्णय दिया कि इज़राइल को संयुक्त राष्ट्र और उसकी एजेंसियों द्वारा प्रदान की जा रही मानवीय सहायता को ग़ाज़ा में प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए और उसमें सहयोग करना चाहिए।
पर्यवेक्षक मानते हैं कि आईसीजे की यह राय व्यावहारिक रूप से कितना असर डालेगी, यह कहना कठिन है। पिछले दो वर्षों में ग़ाज़ा में इज़राइल की नीतियों पर अंतरराष्ट्रीय अदालतों और संस्थाओं द्वारा दिए गए कई आदेशों की अनदेखी की गयी है।
जनवरी 2024 में आईसीजे ने इज़राइल को निर्देश दिया था कि वह ग़ाज़ा में नरसंहार रोकने के लिए सभी कदम उठाए। बाद में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के एक जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इज़राइल ग़ाज़ा में नरसंहार कर रहा है।
इसी तरह, अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) ने इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ युद्ध अपराधों और मानवता के विरुद्ध अपराधों के आरोप में गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं, जिन्हें अब तक लागू नहीं किया गया है।
आईसीजे की नवीनतम राय भी संभवतः इसी सूची में जुड़ जाएगी। इज़राइल ने इस परामर्शात्मक प्रक्रिया में भाग नहीं लिया और फैसले के तुरंत बाद विदेश मंत्रालय ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में अदालत के निष्कर्षों को “संपूर्ण रूप से अस्वीकार” कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र की सीमाएं
आईसीजे ने कहा “इज़राइल का दायित्व है कि वह संयुक्त राष्ट्र के साथ सद्भावना के साथ सहयोग करे और उसके किसी भी कदम में पूरी सहायता दे।” अदालत का यह संदर्भ यूएनआरडब्ल्यूए द्वारा ग़ाज़ा में फ़लस्तीनियों को दी जाने वाली सहायता से जुड़ा था, लेकिन इसने यह सवाल भी उठाया कि बीते दो वर्षों के युद्ध में स्वयं संयुक्त राष्ट्र किन कार्रवाइयों में असफल रहा है।
अदालत ने यह भी कहा कि फ़लस्तीनी जनता के आत्मनिर्णय का अधिकार एक “स्वतंत्र और संप्रभु राज्य” की स्थापना को शामिल करता है। इसके बावजूद, फ़लस्तीन को अब तक संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता नहीं मिली है।
मई 2024 में महासभा ने माना कि फ़लस्तीन, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार, सदस्यता के योग्य है। 193 में से केवल नौ देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, फिर भी फ़लस्तीन को सदस्यता नहीं दी गई।
यह स्थिति संयुक्त राष्ट्र की संरचनात्मक खामियों को उजागर करती है। सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य — चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका — किसी भी प्रस्ताव को वीटो करने की शक्ति रखते हैं। इज़राइल के प्रमुख सैन्य और राजनयिक सहयोगी के रूप में, अमेरिका ने बार-बार इस वीटो अधिकार का इस्तेमाल किया है, जिससे फ़लस्तीन समर्थक प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाए हैं।
जब तक अमेरिका का समर्थन इज़राइल के लिए प्रभावी “परोक्ष वीटो” के रूप में काम करता रहेगा, संयुक्त राष्ट्र की फ़लस्तीनी मुद्दे पर ठोस कार्रवाई करने की क्षमता सीमित बनी रहेगी।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि आईसीजे और अन्य संस्थागत घोषणाओं का प्रभाव फ़लस्तीनी आत्मनिर्णय की दिशा में अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा सकता है। मानवीय गलियारों के पुनः खुलने जैसी व्यावहारिक उपलब्धियों के लिए भी यह एक अहम कूटनीतिक साधन साबित हो सकता है।
(द कन्वरसेशन) मनीषा