‘आत्मनिर्भरता’ रणनीतिक स्वायत्तता के लिए अनिवार्य शर्त : सीडीएस जनरल चौहान
पारुल माधव
- 19 Sep 2025, 09:05 PM
- Updated: 09:05 PM
(तस्वीरों के साथ)
रांची, 19 सितंबर (भाषा) प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने शुक्रवार को आत्मनिर्भरता को रणनीतिक स्वायत्तता के लिए अनिवार्य शर्त करार दिया। उन्होंने कहा कि भारत में भविष्य के युद्ध पर आधारित पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं, जबकि अंतरिक्ष, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और क्वांटम मिशन जैसे क्षेत्रों में नीतिगत पहल की जा रही हैं।
रांची में तीन दिवसीय ‘ईस्ट टेक-2025’ संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए जनरल चौहान ने कहा कि हथियारों का रणनीतिक चयन सबसे अहम है और अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) की समीक्षा कर उन्हें आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “हमने भविष्य के युद्ध पर आधारित पाठ्यक्रम शुरू किए हैं-भविष्य में किस तरह का युद्ध होगा। हम अंतरिक्ष, साइबर, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम मिशन, उन्नत सामग्री, सैन्य सिमुलेशन (वास्तविक युद्ध किए बिना ही युद्ध संबंधी किसी सिद्धांत का परीक्षण करना) और घातक एवं स्वायत्त हथियार प्रणालियों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भी कई नीतियां बनाने जा रहे हैं। सेनाएं भविष्य में अपनी भूमिका को किस रूप में देखती हैं।”
जनरल चौहान ने कहा कि एक एकीकृत क्षमता विकास योजना पर काम चल रहा है, जबकि अगले 10 वर्षों के लिए प्रौद्योगिकी परिप्रेक्ष्य और क्षमता रूपरेखा पहले ही जारी की जा चुकी है।
उन्होंने कहा, “युद्ध विज्ञान और कला दोनों है, और एक योद्धा को बेहद रचनात्मक होना चाहिए। जब तक हम रचनात्मक नहीं होंगे, हम रक्षा प्रौद्योगिकी में कभी भी अग्रणी नहीं हो पाएंगे। जब तक हम नवोन्मेषी, आविष्कार कुशल और कल्पनाशील नहीं होंगे, भारत रक्षा प्रौद्योगिकी में अग्रणी नहीं हो सकता।”
सीडीएस ने कहा, “रक्षा विनिर्माण आधार का विस्तार करने की जरूरत है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अन्य आधुनिक प्रोद्योगिकियों में मौजूद संभावनाओं पर काम किया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि भारत में रक्षा विनिर्माण का स्वदेशीकरण भले ही देर से शुरू हुआ, लेकिन देश सही रास्ते पर है।
जनरल चौहान ने कहा कि केंद्र की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के उद्देश्यों को झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से साकार किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, “भारतीय संस्कृति में पूर्व को आमतौर पर पवित्र और शुभ माना जाता है। यह उगते सूरज के साथ शुभ शुरुआत, आध्यात्मिक ज्ञान और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। ‘एक्ट ईस्ट’ की भावना केवल झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे पूर्वी राज्यों के माध्यम से ही साकार हो सकती है, जो अपने आप में औद्योगिक महाशक्तियां हैं।”
जनरल चौहान ने कहा कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ के प्रति प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि कोलकाता में हाल ही में आयोजित संयुक्त कमांडर सम्मेलन का एक बड़ा निष्कर्ष थी, क्योंकि रक्षा क्षेत्र में रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने के लिए रक्षा आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता के लिए भारत की चाह अहम है।
उन्होंने कहा, “यह आज की अनिवार्यता है।”
जनरल चौहान ने किसी भी आधुनिक युद्ध प्रणाली के तीन आवश्यक घटकों-मंच, हथियार प्रणाली और नेटवर्क के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि विमान, टैंक और जहाज जैसे मंच गतिशीलता और उपस्थिति के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे महंगे भी हैं और उनके लिए व्यापक अनुसंधान एवं विकास तथा रखरखाव की आवश्यकता होती है।
सीडीएस ने इस बात को रेखांकित किया कि हथियार अब एक स्वतंत्र प्रणाली बन गए हैं, जो बहुत महंगे मंचों को बहुत कम खर्च में नष्ट करने में सक्षम हैं। उदाहरण के लिए, 50 करोड़ रुपये की मिसाइल 10,000 करोड़ रुपये के जहाज या विमान को नष्ट कर सकती है।
उन्होंने कहा कि नेटवर्क विभिन्न मंचों और हथियारों को एक एकीकृत युद्ध प्रणाली में पिरोता है, मानवयुक्त और मानवरहित इकाइयों को जोड़ता है तथा सेना, नौसेना और वायु सेना को एक समेकित बल के रूप में साथ लाता है।
जनरल चौहान ने कहा कि हालांकि भारत को स्वदेशी मंच विकसित करने में अभी भी लंबा सफर तय करना है, लेकिन देश ने हथियार प्रणालियों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है और नेटवर्क एकीकरण में असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है, जिनमें से कई स्वदेशी समाधानों पर आधारित हैं।
उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान स्वदेशी प्रणालियों की सफलता को रेखांकित किया, जिसमें ब्रह्मोस मिसाइलों, सतह से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइलों, डीआरडीओ की ओर से विकसित जैमिंग प्रणालियों, रडार प्रणालियों और सुरक्षित संचार प्रणालियों को सफलतापूर्वक तैनात किया गया था।
जनरल चौहान ने कहा कि सोलर नागास्त्र और डीआरडीओ की आईएएसएस प्रणाली जैसे निजी क्षेत्र के उत्पादों को भी सेना और नौसेना के नेटवर्क में एकीकृत किया गया है, जो दर्शाता है कि पिछले दो वर्षों में भारत की ओर से किए गए प्रयासों ने परिणाम देना शुरू कर दिया है।
उन्होंने भविष्य की प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए भविष्य के खतरों से निपटने की तैयारी करने के लिए अनुसंधान एवं विकास में रणनीतिक और केंद्रित निवेश का आह्वान किया।
सीडीएस ने इस बात पर जोर दिया कि परियोजना का चयन खतरे से प्रेरित और क्षमता में पाई गई कमी पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्राथमिकताएं तय करने में सशस्त्र बलों को अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
जनरल चौहान ने आज की युद्ध आवश्यकताओं के लिए डीआरडीओ की मौजूदा परियोजनाओं की प्रासंगिकता का मूल्यांकन करने के लिए उनकी गहन समीक्षा करने का सुझाव दिया।
रक्षा कूटनीति के विषय पर उन्होंने न केवल राजनयिकों, बल्कि सिविल सेवकों, सैन्य अधिकारियों, उद्योगपतियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रमुखों को शामिल करते हुए एक विस्तारित एवं सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया।
जनरल चौहान ने क्षमता विकास में तेजी लाने के लिए संयुक्त उद्यमों और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के महत्व पर प्रकाश डाला।
उन्होंने नये युग की प्रौद्योगिकियां अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स और उन्नत सामग्रियों का पूरा लाभ उठाया जाना चाहिए।
सीडीएस ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी मिशन में सशस्त्र बलों को शामिल करने का आह्वान किया है और सुझाव दिया है कि भारत के रक्षा स्नातकों के बड़े समूह को अनुसंधान एवं विकास मिशन में एकीकृत किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नवाचार की रक्षा करने और युवा आविष्कारकों एवं रक्षा नवप्रवर्तकों को प्रोत्साहित करने के लिए एक मजबूत बौद्धिक संपदा व्यवस्था की आवश्यकता है।
जनरल चौहान ने बताया कि बहुप्रतीक्षित रक्षा खरीद नियमावली (डीपीएम) 2025 को मंजूरी दे दी गई है और इसे जल्द ही जारी किया जाएगा। उन्होंने बताया कि यह नियमावली 2009 के अपने पुराने संस्करण की जगह लेगी।
भाषा पारुल