सबरीमला मंदिर : सोने की परत वाली चादरों के वजन में कमी के मामले की सतर्कता जांच के आदेश
पारुल अविनाश
- 17 Sep 2025, 09:47 PM
- Updated: 09:47 PM
कोच्चि, 17 सितंबर (भाषा) केरल उच्च न्यायालय ने सबरीमला मंदिर के गर्भगृह के सामने द्वारपालकों (संरक्षक देवता) की मूर्तियों के ऊपर सोने की परत वाली तांबे की चादरों के वजन में कमी को गंभीरता से लेते हुए मामले की सतर्कता जांच का बुधवार को आदेश दिया।
न्यायमूर्ति राजा विजयराघवन वी और न्यायमूर्ति केवी जयकुमार की पीठ ने कहा कि मूर्तियों के ऊपर सोने की परत वाली तांबे की चादरों से जुड़े रिकॉर्ड के मुताबिक जब उन्हें (चादरों को) 2019 में और सोना चढ़ाने के लिए हटाया गया था, तो उनका वजन 42.8 किलोग्राम था।
पीठ ने कहा कि हालांकि, जब इन चादरों को सोने की परत चढ़ाने का काम करने वाली कंपनी के पास भेजा गया, तो इनका वजन 38.258 किलोग्राम दर्ज किया गया।
पीठ ने कहा कि प्रायोजक ने मंदिर से चादरें हटाए जाने के एक महीने और नौ दिन से अधिक समय बाद उन्हें कंपनी के पास भेजा था।
उसने कहा, “सन्निधानम में दर्ज वजन से 4.541 किलोग्राम की स्पष्ट कमी रिकॉर्ड की गई है, जिसकी वजह साफ नहीं है। इस कमी के लिए जिम्मेदार एकमात्र घटक सोने की परत है।”
पीठ ने कहा, “यह एक चिंताजनक कमी है, जिसकी विस्तृत जांच की आवश्यकता है।”
उसने कहा कि यह भी संभावना है कि प्रायोजक की ओर से कंपनी को सौंपी गई तांबे की चादरें उन चादरों से अलग थीं।
पीठ ने कहा कि चादरों के वजन में कमी की सूचना त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) के अधिकारियों की ओर से नहीं दी गई, जो सोने की परत चढ़ाने के लिए उनके उत्पादन के समय वहां मौजूद थे।
उसने कहा कि चादरों को मूर्तियों पर और सोपानम में वे जिन ‘पीडम’ पर खड़ी थीं, उन पर फिर से चढ़ाए जाने से संबंधित अभिलेखों से “और भी अधिक चौंकाने वाली बात सामने आती है।”
पीठ ने कहा, “आश्चर्यजनक रूप से, फिर से चढ़ाई गई चादरों का वजन दर्ज ही नहीं किया गया। यह एक प्राथमिक और विवेकपूर्ण प्रक्रिया है कि जब वजन के सटीक विवरण वाली सोने की परत चढ़ी कीमती वस्तुओं को अतिरिक्त सामग्री चढ़ाने के लिए हटाया जाता है और फिर संबंधित प्रक्रिया के बाद लौटाया जाता है, तो अतिरिक्त सामग्री चढ़ने के बाद के वजन का दस्तावेजीकरण किया जाना चाहिए।”
उसने कहा कि यह विफलता “जानबूझकर” की गई हो सकती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वजन में कमी सामने न आए।
पीठ ने कहा, “यह कहने की जरूरत नहीं है कि इस पर ध्यान न देना एक गंभीर गलती है, जो गंभीर प्रशासनिक चूक की ओर इशारा करती है।”
उसने कहा कि सोने की परत चढ़ी तांबे की चादरों के वजन में “अस्पष्ट” कमी, प्रायोजक को “इन कीमती वस्तुओं को आकस्मिक एवं असुरक्षित रूप से सौंपा जाना”, उन्हें कंपनी के पास भेजे जाने में “लंबी और अनुचित देरी” तथा 2019 के रिकॉर्ड में सोने की परत वाली तांबे की चादरों का केवल “तांबे की चादर” के रूप में “जानबूझकर गलत वर्णन” किया जाना “घोर लापरवाही और संभावित कदाचार के परेशान करने वाले पैटर्न को रेखांकित करता है।”
पीठ ने कहा, “ये अनियमितताएं बेहद गंभीर प्रवृत्ति की हैं, जो उस ईमानदारी और पारदर्शिता के मूल पर प्रहार करती हैं, जिसकी अपेक्षा ऐसे पवित्र और सार्वजनिक आस्था वाले मंदिर के प्रशासन से की जाती है।”
उसने कहा, “मामले की एक ऐसे अधिकारी से पूर्ण, त्रुटिरहित और त्वरित जांच कराए जाने की आवश्यकता है, जो विवेकपूर्ण और ईमानदार हो।”
पीठ ने मुख्य सतर्कता एवं सुरक्षा अधिकारी (पुलिस अधीक्षक) को निर्देश दिया कि वह उसकी ओर से गिनाए गए हर पहलू की व्यापक जांच करें तथा तीन हफ्ते के भीतर अदालत के समक्ष एक विस्तृत एवं तर्कपूर्ण रिपोर्ट पेश करें।
पीठ ने अधिकारी को यह भी निर्देश दिया कि वह विशेष रूप से पता लगाएं और रिपोर्ट दें कि क्या ‘द्वारपालकों’ और ‘पीडम’ का दूसरा सेट मंदिर के ‘स्ट्रांग रूम’ में रखा गया है, जैसा कि त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड और प्रायोजक के बीच संचार से संकेत मिलता है।
उच्च न्यायालय ने टीडीबी को अधिकारी को “पूर्ण और तत्काल सहयोग प्रदान करने” का निर्देश दिया। उसने आगाह किया कि “जांच में किसी भी तरह की अड़चन, देरी या अनुपालन में विफलता को अत्यंत गंभीरता से लिया जाएगा।”
उच्च न्यायालय ने यह आदेश सबरीमला के विशेष आयुक्त को पूर्व सूचना दिए बिना मंदिर में द्वारपालकों की मूर्तियों पर सोने की परत वाली तांबे की चादरों को हटाए जाने के संबंध में शुरू की गई स्वत: संज्ञान याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया।
पिछले हफ्ते उच्च न्यायालय ने टीडीबी को सबरीमला मंदिर के गर्भगृह के सामने द्वारपालक की मूर्तियों के ऊपर लगाई गई सोने की परत वाली तांबे की चादरों को चेन्नई से वापस लाने का निर्देश दिया था।
अदालत ने टीडीबी की कड़ी आलोचना करते हुए कहा था, “चादरों को पूर्व अनुमति के बिना हटाना अनुचित था।”
हालांकि, टीडीबी ने मीडिया में आई उन खबरों को खारिज कर दिया था, जिनमें दावा किया गया था कि सबरीमला मंदिर में श्रीकोविल के दोनों ओर स्थित स्वर्ण द्वारपालकों की मूर्तियों को बिना पूर्व अनुमति के हटा दिया गया और मरम्मत के लिए चेन्नई ले जाया गया।
भाषा पारुल