भू-तापीय ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग के लिए नॉर्वे, आइसलैंड की कंपनियां इच्छुकः सचिव
प्रेम प्रेम रमण
- 17 Sep 2025, 09:14 PM
- Updated: 09:14 PM
नयी दिल्ली, 17 सितंबर (भाषा) नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव संतोष कुमार सारंगी ने बुधवार को कहा कि नॉर्वे एवं आइसलैंड जैसे देशों ने भारत के भू-तापीय ऊर्जा क्षेत्र में दिलचस्पी दिखाई है और विभिन्न जगहों पर संचालित पायलट परियोजनाओं में तकनीकी सहयोग की पेशकश की है।
सारंगी ने कहा कि अमेरिका और इंडोनेशिया सहित अन्य देशों के साथ भी भू-तापीय क्षेत्र में प्रौद्योगिकी सहयोग की संभावनाएं तलाशने पर जोर दिया जाएगा।
भू-तापीय ऊर्जा पृथ्वी की परतों में संचित ऊष्मा का उपयोग करती है। ज्वालामुखीय क्षेत्रों, गर्म पानी के फव्वारों और गर्म झरनों से निकलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल मुख्य रूप से बिजली उत्पादन में किया जाता है।
सारंगी ने राष्ट्रीय भू-तापीय ऊर्जा नीति, 2025 की अधिसूचना की जानकारी देते हुए कहा कि भारत में इस स्रोत की करीब 10 गीगावाट क्षमता का अनुमान है।
उन्होंने कहा कि नॉर्वे और आइसलैंड की कई शोध कंपनियां कच्छ की खाड़ी, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में पायलट अध्ययन कर चुकी हैं।
सारंगी ने कहा कि शुरुआती आकलन के मुताबिक इस ऊर्जा स्रोत से बिजली की लागत करीब 10 रुपये प्रति यूनिट हो सकती है लेकिन बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू होने पर लागत घट सकती है।
उन्होंने कहा, ‘‘संभव है कि शुरुआती परियोजनाओं में सरकार को सौर और पवन ऊर्जा की तरह परियोजनाओं को व्यवहारिक बनाने के लिए वित्तपोषण (वीजीएफ) के जरिए मदद करनी पड़े।’’
परियोजना लागत पर पूछे गए सवाल पर सारंगी ने कहा कि यह लगभग 36 करोड़ रुपये प्रति मेगावॉट है।
उन्होंने कहा कि पहले चरण में पांच परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिनमें राजस्थान में वेदांता द्वारा परित्यक्त तेल कुओं का उपयोग करते हुए 450 किलोवाट की परियोजना शामिल है।
भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण ने देश में 10 प्रमुख भू-तापीय क्षेत्रों को चिह्नित किया है जिनमें हिमालयी भू-तापीय प्रांत, नागा-लुसाई, अंडमान-निकोबार और सोन-नर्मदा-तापी शामिल हैं।
सारंगी ने कहा कि नीति का उद्देश्य अनुसंधान क्षमताओं को मजबूत करना, उन्नत ड्रिलिंग तकनीक और भंडार प्रबंधन को विकसित करना तथा छोड़े गए तेल कुओं का दोबारा उपयोग कर बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन सुनिश्चित करना है।
उन्होंने कहा कि भारत की नवीकरणीय क्षमता में सौर, पवन, बायोएनेर्जी और जलविद्युत का फिलहाल दबदबा है लेकिन भू-तापीय ऊर्जा भी शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्यों को हासिल करने में एक अतिरिक्त महत्वपूर्ण स्रोत बन सकती है।
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