सोशल मीडिया पर वायरल हिंसक वीडियो बताते हैं कि युवाओं की दुनिया के प्रति समझ कैसी है
द कन्वरसेशन मनीषा नरेश
- 17 Sep 2025, 03:56 PM
- Updated: 03:56 PM
(सैमुएल कॉर्नेल, यूएनएसडब्ल्यू सिडनी और टी जे थॉम्सन, आरएमआईटी यूनिवर्सिटी)
सिडनी, 17 सितंबर (द कन्वरसेशन) पिछले सप्ताह जब अमेरिका में राजनीतिक रूप से रसूखदार हस्ती चार्ली किर्क पर उताह वैली यूनिवर्सिटी में गोली चली, तो दुनिया भर के लोगों ने पत्रकारों द्वारा इससे संबंधित खबर दिए जाने से पहले इसे सोशल मीडिया पर देखा।
यह एक नई वास्तविकता है जहाँ हिंसक और खून-खराबे वाले वीडियो सीधे सोशल मीडिया फीड्स पर आ जाते हैं, बिना किसी संपादक के फिल्टर या चेतावनी के। ऑस्ट्रेलिया के ई-सेफ्टी कमिश्नर ने सोशल मीडिया मंचों से बच्चों को ऐसे कंटेंट से बचाने का आग्रह किया है।
युवा और हिंसक कंटेंट
युवा विभिन्न सोशल मीडिया मंच जैसे टिकटॉक, इन्स्टाग्राम और एक्स के नियमित उपयोगकर्ता हैं, इसलिए वे हिंसक और परेशान करने वाले वीडियो अधिक देखते हैं।
ब्रिटेन के 2024 के एक अध्ययन के अनुसार, अधिकांश किशोरों ने अपने फीड में हिंसक वीडियो देखे हैं।
ये वीडियो स्कूल की मामूली लड़ाइयों से लेकर युद्ध और आतंकवादी हमलों तक के दृश्य होते हैं, जो अक्सर अप्रत्याशित होते हैं और इनका संपादन भी नहीं हुआ रहता।
हिंसा से नुकसान
यह गौर किया गया है कि हिंसक वीडियो देखने के बाद कई बच्चों को घर से बाहर निकलने का मन नहीं करता। ऐसे कंटेंट के कारण ट्रॉमा जैसी मानसिक समस्या भी हो सकती है, खासकर जब हिंसा नजदीकी लगती है।
सोशल मीडिया न केवल हिंसा का दर्पण है, बल्कि कई बार तो इसके कारण धमकियाँ, गैंग हिंसा और आत्म-हिंसा के मामले भी सामने आते हैं।
इसके अलावा देखा गया है कि हिंसा के वीडियो बार-बार देखने से संवेदनशीलता कम हो जाती है, जिससे लोगों में सहानुभूति कम हो जाती है।
संचार शास्त्र में ‘कल्टीवेशन थ्योरी’ बताती है कि हिंसक कंटेंट अधिक देखने वाले लोग दुनिया को अधिक खतरनाक समझने लगते हैं।
हिंसा और मीडिया का लंबा इतिहास
हिंसा का प्रसार मीडिया के साथ ही शुरू हुआ। प्राचीन काल में यूनानियों ने अपने बर्तनों पर युद्ध के चित्र बनाए, रोमन ग्लेडिएटरों के बारे में लिखा। द्वितीय विश्व युद्ध में लोग सिनेमा में जाकर युद्ध समाचार देखते थे जो न्यूजरील में दिखाया जाता था।
वियतनाम युद्ध पहला “टेलीविजन युद्ध” था जहाँ हिंसा की तस्वीरें घर-घर पहुंचीं, लेकिन तब भी संपादन और संदर्भ होता था।
सोशल मीडिया ने बदलाव लाया
अब युद्ध और हिंसा के वीडियो सीधे फोन या ड्रोन से रिकॉर्ड होकर टिकटॉक या यूट्यूब आदि सोशल मीडिया मंचों पर अपलोड होते हैं, बिना संदर्भ या संपादन के।
‘वार इन्फ्लुएंसर्स’ उभरे हैं जो संघर्ष क्षेत्रों से अपडेट देते हैं, लेकिन इनके पास पत्रकारिता की ट्रेनिंग नहीं होती।
हिंसक कंटेंट से बचाव के उपाय
ऑटो-प्ले बंद करना चाहिए ताकि वीडियो बिना आपकी अनुमति के न चलें। इसके अलावा म्यूट या ब्लॉक फिल्टर का इस्तेमाल करें। यह भी जरूरी है कि हिंसक या परेशान करने वाले वीडियो के बारे में मंच को सूचना दें।
साथ ही सत्यापित न्यूज अकाउंट फॉलो करना और सोशल मीडिया से ब्रेक लेना भी जरूरी है।
हालांकि ये उपाय पूर्ण समाधान नहीं हैं क्योंकि सोशल मीडिया के एल्गोरिदम सनसनीखेज कंटेंट की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। चार्ली किर्क की हत्या के वीडियो से स्पष्ट होता है कि प्लेटफॉर्म अपने यूजर्स, खासकर बच्चों की सुरक्षा करने में विफल हैं। इसलिए सोशल मीडिया कंपनियों के लिए कड़े नियम और नियंत्रण की आवश्यकता है।
द कन्वरसेशन मनीषा