नेपाल के घटनाक्रम पर कुरैशी की टिप्पणी 'लापरवाह': भाजपा
अमित सुरेश
- 16 Sep 2025, 09:19 PM
- Updated: 09:19 PM
नयी दिल्ली, 16 सितंबर (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नेपाल के हालिया घटनाक्रम पर पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी की टिप्पणी को मंगलवार को ‘‘लापरवाह’’ करार दिया।
भाजपा ने यह भी कहा कि कुरैशी की टिप्पणी ‘‘बिल्कुल भी आश्चर्यजनक’’ नहीं है, क्योंकि भारतीय निर्वाचन आयोग ने उनके कार्यकाल के दौरान अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़े एक संगठन के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे।
कुरैशी ने रविवार को ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा था कि नेपाल में घटनाक्रम अराजकता का नहीं, बल्कि ‘‘जीवंत लोकतंत्र’’ का संकेत है। उन्होंने कहा था कि सरकारों को सोशल मीडिया को विनियमित करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि यह हर किसी के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है।
कुरैशी ने यह भी कहा कि भारत को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) क्षेत्र में उन लोकतंत्रों का हाथ थामने के लिए नेतृत्व करना होगा ‘‘जो अब भी संघर्ष कर रहे हैं’’ तथा उन्हें सहायता प्रदान करनी होगी, लेकिन ऐसा उसे एक ‘‘बड़े भाई’’ (मार्गदर्शक) के रूप में करना होगा, न कि ‘‘बिग ब्रदर’’ (दबदबा दिखाने वाले) के रूप में।
भाजपा आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त की आलोचना की और उनकी टिप्पणी को ‘‘अत्यंत चौंकाने वाला’’ बताया।
मालवीय ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने नेपाल में हाल के घटनाक्रम को अराजकता नहीं, बल्कि ‘जीवंत लोकतंत्र’ का संकेत बताया है। लेकिन उनके रिकॉर्ड को देखते हुए, यह लापरवाही भरी टिप्पणी आश्चर्यजनक नहीं है।’’
भाजपा नेता मालवीय ने आरोप लगाया, ‘‘कुरैशी के कार्यकाल के दौरान ही भारत के निर्वाचन आयोग ने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था। यह संगठन जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा है, जो एक जाना-माना ‘डीप स्टेट’ संचालक और कांग्रेस पार्टी एवं गांधी परिवार का करीबी सहयोगी है।’’
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त कुरैशी द्वारा किसी अन्य मीडिया मंच के साथ साक्षात्कार में की गई टिप्पणी का हवाला देते हुए मालवीय ने कहा कि उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद एक "बड़ा नेता" उनके पास शिकायत लेकर आया था कि उन्होंने उनके "फर्जी मतदाताओं" को चुनाव में वोट नहीं डालने दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘उस समय कुरैशी निर्वाचन आयुक्तों में से एक थे और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के लिए बदनाम समाजवादी पार्टी सत्ता में थी, लेकिन चुनाव हार गई। अगर कुरैशी को यह पता था, तो उन्होंने इतने सालों तक उस नेता को क्यों बचाया? क्या सपा वोट चोरी में लिप्त थी? यह नेता कौन था?’’
मालवीय ने आरोप लगाया, ‘‘इससे एक बड़ा सवाल उठता है: अगर कुरैशी को मतदाता सूची में स्थानांतरित, अनुपस्थित और मृत मतदाताओं के बारे में पता था, तो उन्होंने कभी विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का आदेश क्यों नहीं दिया? वह 2006-2010 तक निर्वाचन आयुक्त और बाद में 2010-2012 तक मुख्य निर्वाचन आयुक्त रहे एवं कार्रवाई करना उनका संवैधानिक कर्तव्य था।’’
भाजपा नेता के आरोप पर कुरैशी की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
मालवीय द्वारा ‘एक्स’ पर पोस्ट किए गए एक अन्य मीडिया मंच के साथ पूर्व सीईसी के साक्षात्कार के एक कथित वीडियो क्लिप में, कुरैशी को यह याद करते हुए सुना जा सकता है कि कैसे उन्होंने और निर्वाचन आयोग के अन्य लोगों ने अतीत में विधानसभा चुनावों के दौरान फर्जी मतदाताओं की मौजूदगी के बारे में "शिकायतों और संभावनाओं" का समाधान किया था।
उन्होंने कहा कि ऐसे मतदाताओं के नाम हटाने के बजाय, उनकी एक संदिग्ध सूची बनाई गई और पीठासीन अधिकारियों को यह निर्देश देते हुए दी गई कि अगर उनमें से कोई भी मतदान करने आए, तो उसकी पहचान की पूर्णतया पुष्टि की जाए।
कुरैशी की टिप्पणी की आलोचना करते हुए, मालवीय ने कहा कि न तो उन्होंने और न ही उनके बाद आने वालों ने, ‘‘चाहे अशोक लवासा हों, ओ.पी. रावत हों या कोई और’, 2003 में हुए आखिरी विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद से, 23 सालों से अधिक समय से हमारी मतदाता सूचियों की त्रुटियों को ठीक करने की जहमत उठाई।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘यह नहीं भूलें: उस समय, प्रधानमंत्री अकेले ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति करते थे। आज, विपक्ष के नेता सहित तीन-सदस्यीय समिति यह फैसला लेती है...।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इन नीरस कार्यकालों की निंदा करने का समय आ गया है। जो लोग तब अपने कर्तव्य से चूक गए, वे अब देश को उपदेश नहीं दे सकते। विचारों का विरोध स्वागत योग्य है, लेकिन जवाबदेही उन लोगों से शुरू होनी चाहिए जिन्हें मौका मिला था और उन्होंने कुछ नहीं किया।’’
भाषा अमित