भारत के 3,000 वर्षों तक दुनिया का सिरमौर रहने के दौरान विश्व में कोई कलह नहीं थी: भागवत
हर्ष नोमान
- 14 Sep 2025, 09:20 PM
- Updated: 09:20 PM
इंदौर (मध्यप्रदेश), 14 सितंबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि पारंपरिक दर्शन पर श्रद्धा रखने की बदौलत देश सबकी भविष्यवाणियां झूठी साबित करके लगातार आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत के 3,000 वर्षों तक दुनिया का सिरमौर रहने के दौरान विश्व में कोई कलह नहीं थी।
भागवत ने यह भी कहा कि ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने एक बार कहा था कि भारत ब्रितानी शासन से स्वतंत्र होने पर एक नहीं रह पाएगा और बंट जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जो कभी बंट गया है, “हम वह भी फिर से मिला लेंगे।”
भागवत ने ये टिप्पणियां मध्यप्रदेश के काबीना मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल की पुस्तक ‘परिक्रमा कृपा सार’ का इंदौर में विमोचन के दौरान की।
संघ प्रमुख ने इस मौके पर आयोजित समारोह में कहा कि भारतीय नागरिकों के पूर्वजों ने अनेक पंथ-संप्रदायों के माध्यम से कई रास्ते दिखाकर सबको बताया है कि ज्ञान, कर्म और भक्ति की संतुलित त्रिवेणी जीवन में कैसे बहाई जाती है।
भागवत ने कहा कि भारत जीवन जीने के इस पारंपरिक दर्शन पर आज भी श्रद्धा रखता है, इसलिए सबकी भविष्यवाणियां झूठी साबित करके देश विकास के पथ पर लगातार आगे बढ़ रहा है।
संघ प्रमुख की यह प्रतिक्रिया ऐसे वक्त आई है जब देश की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में उम्मीद से बेहतर 7.80 प्रतिशत रही है। अमेरिका की ओर से भारी शुल्क लगाए जाने से पहले की पांच तिमाहियों में यह सबसे अधिक है।
संघ प्रमुख ने कहा,"विंस्टन चर्चिल (ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री) ने एक बार कहा था कि (ब्रितानी शासन से) स्वतंत्र होने पर तुम (भारत) टिक नहीं सकोगे और बंट जाओगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब खुद इंग्लैंड बंटने की स्थिति में आ रहा है, पर हम नहीं बंटेगे। हम आगे बढ़ेंगे। हम कभी बंट गए थे, लेकिन वह भी हम मिला लेंगे फिर से।’’
उन्होंने जोर देकर यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति 'तेरे-मेरे के भेद' से ऊपर उठने का संदेश देती है और सभी मनुष्यों में परस्पर आत्मीयता और अपनापन आवश्यक है।
भागवत ने कहा कि निजी स्वार्थों के कारण ही दुनिया में अलग-अलग संघर्ष चलते हैं और सारी समस्याएं सामने आती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत जब 3,000 वर्षों तक विश्व का सिरमौर था, तब दुनिया में कोई कलह नहीं हुई थी, पर्यावरण कभी नहीं बिगड़ा था, तकनीकी प्रगति ऊंचे स्तर पर रही थी और मनुष्य का जीवन सुखी और सुसंस्कारित था।
संघ प्रमुख ने कहा,‘‘उस दौर में हमने विश्व का नेतृत्व किया था, लेकिन किसी देश को (आक्रमण करके) जीता नहीं था और किसी देश का व्यापार नहीं दबाया था। हमने किसी व्यक्ति का धर्म परिवर्तन नहीं किया था। हम जहां भी गए थे, वहां अपनी सभ्यता दी थी और ज्ञान व शास्त्र सिखाते हुए लोगों के जीवन को उन्नत किया था। तब सभी देशों की अपनी पहचान थी, लेकिन उनके बीच अच्छा संवाद चलता था। यह (संवाद) आज नहीं है।’’
उन्होंने कहा,‘‘मनुष्य के हाथों में आज इतना ज्ञान आ गया है कि वह बहुत-सी बातें प्रत्यक्ष तौर पर करने लगा है, जबकि पहले हम ऐसी बातें प्रत्यक्ष तौर पर नहीं कर सकते थे। ज्ञान-विज्ञान के साथ संहार भी बढ़ा है। तथाकथित विकास हुआ है, लेकिन पर्यावरण भी बिगड़ा है और परिवार टूटने लगे हैं। लोग अपने माता-पिता तक को रास्ते पर (लावारिस हालत में) छोड़ देते हैं।’’
भागवत ने कहा कि 'संस्कारहीनता' के कारण नयी पीढ़ी में ऐसी 'विकृति' आ गई है कि यह मांग भी हो रही है कि अगर लड़के के रूप में जन्मा कोई व्यक्ति खुद को लड़की मानता है, तो उसकी बात तुरंत स्वीकार कर ली जाए और उसकी आवाज को दबाया नहीं जाए।
संघ प्रमुख ने कहा कि भारत में गौ माता, नदियों और पेड़-पौधों की पूजा के जरिये प्रकृति की आराधना की जाती है और प्रकृति से देश का नाता जीवंत और चैतन्य अनुभूति पर आधारित है।
उन्होंने कहा,‘‘आज की दुनिया (प्रकृति से) इस नाते को तरस रही है। पिछले 300-350 वर्षों से उन्हें (दुनिया के देशों) को बताया जा रहा है कि सब लोग अलग-अलग हैं और जो बलवान है, वही जिएगा। उन्हें बताया जा रहा है कि अगर वे किसी के पेट पर पैर रखकर या किसी का गला काट कर भी बलवान बनते हैं, तो कोई बात नहीं है।’’
भागवत ने कहा,‘‘पहले (कपड़ों का) गला और जेब काटने का काम केवल दर्जी करते थे। अब सारी दुनिया कर रही है। वे जानते हैं कि इससे गड़बड़ हो रही है, लेकिन वे रुक नहीं सकते क्योंकि उनके पास विश्वास और श्रद्धा नहीं है।’’
संघ प्रमुख ने कहा कि मनुष्य के लिए ज्ञान और कर्म, दोनों मार्ग जरूरी हैं, लेकिन ‘निष्क्रिय ज्ञानी’ किसी काम के नहीं होते।
भागवत ने कहा,‘‘ज्ञानी लोगों के निष्क्रिय होने के कारण ही सब गड़बड़ होती है और अगर कर्म करने वाले किसी व्यक्ति को ज्ञान नहीं है, तो यह कर्म पागलों का कर्म हो जाता है।’’
प्रदेश के काबीना मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल की पुस्तक के विमोचन के कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्यों समेत समाज के अलग-अलग तबकों के लोग बड़ी तादाद में मौजूद थे।
पटेल की पुस्तक उनकी दो नर्मदा परिक्रमा यात्राओं से प्रेरित है।
भागवत ने पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा,‘‘नर्मदा नदी की परिक्रमा सर्वत्र श्रद्धा का विषय है। हमारा देश श्रद्धा का देश है। यहां कर्मवीर भी हैं और तर्कवीर भी हैं। दुनिया श्रद्धा और विश्वास पर चलती है।’’
संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि भारत में जो श्रद्धा है, वह प्रत्यक्ष प्रतीति (ज्ञान) और प्रमाणों पर आधारित है।
उन्होंने कहा,‘‘यह भक्ति-भाव उन लोगों के लिए नहीं है जो नर्मदा के जल को पक्के तौर पर हाइड्रोजन ऑक्साइड (जल का रासायनिक नाम) मानते हैं।"
भागवत ने यह भी कहा कि भक्ति-भाव की कमी के कारण विदेशी लोग अमेजन और मिसिसिपी जैसी नदियों को ‘अमेजन मैया’ और ‘मिसिसिपी मैया’ नहीं कहते। उन्होंने कहा कि नदियों को मैया (मां) कहने की परंपरा भारत में ही है।
संघ प्रमुख ने कहा कि सत्य और सच्चा सुख बाहर की दुनिया में नहीं, बल्कि मनुष्य के मन के भीतर मिलता है।
भागवत ने मिसाल देते हुए कहा,‘‘कोई आदमी भला कितने रसगुल्ले खा सकता है? कुछ लोग ऐसे भी हैं जो होड़ लगाकर 100 रसगुल्ले तक खा सकते हैं, लेकिन एक क्षण आता है जब इन लोगों को भी रसगुल्ला देखने के बाद उल्टी हो जाती है…अति होने पर सुख, दुख बन जाता है।’’
उन्होंने जीवन पद्धति को लेकर भारतीय दर्शन का हवाला देते हुए कहा कि जीवन एक नाटक की तरह है और नाटक का परदा गिरने से पहले सबको निभाने के लिए एक किरदार दिया गया है।
भागवत ने कहा,‘‘हमारे पूर्वजों ने पहले ही जान लिया था कि हम सब इस नाटक में एक निमित्त मात्र हैं और ‘मैं और मेरा’ (निजी स्वार्थ) का भाव एक स्तर तक ही चलता है और उसके बाद इस भाव का कोई अस्तित्व नहीं होता। हमारे पूर्वजों ने जान लिया था कि जीवन में अपना किरदार अच्छी तरह निभाना है, लेकिन इसमें (निजी स्वार्थ) फंसना नहीं है।’’
भाषा हर्ष