‘तैराकी, जीवन रक्षा, सेवा’ : दिल्ली के यमुना बाजार में रहने वाले परिवारों की कहानियां
माधव
- 13 Sep 2025, 05:21 PM
- Updated: 05:21 PM
(वर्षा सागी)
नयी दिल्ली, 13 सितंबर (भाषा) राष्ट्रीय राजधानी के यमुना बाजार इलाके में बच्चों को चलना शुरू करते ही तैरना सिखाया जाता है। नदी किनारे रहने वाले परिवारों के लिए, तैरना कोई खेल नहीं, बल्कि नदी के खतरों से बचाव के लिए पीढ़ियों से चली आ रही एक जीवन रक्षा कला है।
नौ साल के समीर के दोस्त उसे कमजोर बताकर चिढ़ाते हैं, लेकिन वह मुस्कुराते हुए कहता है, ‘‘शुरू में, हमें थोड़ी-सी दिक्कत आती है। हम सभी मजबूत नहीं होते, लेकिन तैरने में मजा आता है।’’
यहां परिवार अपने बच्चों को कम उम्र से ही गर्मियों में, जब यमुना का जलस्तर कम होता है, निगरानी रखने और बाढ़ के दौरान तेजी से प्रतिक्रिया करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं।
सबसे छोटे बच्चों को बड़ों को सचेत करने के लिए कहा जाता है, जबकि बड़े बच्चे नदी के गहरे हिस्से के बहुत पास चले जाने वाले लोगों को पीछे खींचना सीखते हैं।
यमुना बाजार इलाके में लंबे समय से रहने वाले 60 वर्षीय घनश्याम ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘इस साल भी, जब पानी बढ़ा, तो बच्चों ने ही सबसे पहले मुसीबत में फंसे लोगों को देखा। कुछ ने तो उन्हें बाहर निकालने में भी मदद की।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे बुजुर्गों ने हमें तैरना सिखाया था और अब हम बच्चों को भी सिखा रहे हैं। यह हमारे लिए कोई व्यावसायिक गतिविधि नहीं है, बल्कि जीवन रक्षा कला है।’’
यमुना बाजार में पीढ़ियों से जीवन जीने की यही प्रवृत्ति रही है।
एक अन्य निवासी हाथीराम ने कहा, ‘‘मेरे पिता मुझसे कहा करते थे कि अगर तुम तैर नहीं सकते, तो नदी तुम्हें निगल जाएगी। इसलिए मैंने अपने सभी बच्चों को तैरना सिखाया। हमारे लिए यह चलना सीखने जैसा है। यहां जल स्तर अचानक बदल सकता है, आप बिना तैयारी के नहीं रह सकते।’’
वर्ष 2023 की बाढ़ के दौरान सुरेंद्र, जो कभी सरकारी लाइफगार्ड के रूप में काम करते थे, अपने पड़ोसियों के परिवारों को आश्रय स्थलों में ले जाने के बाद एक सप्ताह तक उनके साथ इसी इलाके में रहे।
वह याद करते हैं, ‘‘हम हर दिन लोगों को बाहर निकालते थे। जब कोई डूब रहा हो तो आप मुंह नहीं मोड़ सकते।’’
सुरेंद्र का बड़ा बेटा, जो इंजीनियरिंग का छात्र है, एक कुशल तैराक है, जबकि छोटा अभी सीख रहा है।
समुदाय की महिलाएं, हालांकि अक्सर खुद पानी में उतरकर किसी को बचाने नहीं जातीं, फिर भी लगातार चिंता में रहती हैं।
घाट की सीढ़ियों से देखते हुए रुक्साना ने कहा, ‘‘जब हम बच्चों को नदी में तैरने की कोशिश करते देखते हैं तो हमें थोड़ा डर लगता है। लेकिन हर चीज की तरह, आपको इसकी भी आदत हो जाती है।’’
भाषा शफीक