डिजिटल माध्यमों से अमेज़न के पर्यावरणीय बदलावों की कहानी बता रहे आदिवासी समुदाय: अध्ययन
(द कन्वरसेशन) मनीषा अविनाश
- 12 Sep 2025, 04:50 PM
- Updated: 04:50 PM
(कैरोलिना मचाडो ओलिवीरा, बौर्नमाउथ यूनिवर्सिटी एवं अंतोनिया अल्वेज पेरीरा, यूनिवर्सिडाडे दो एस्टाडो दी मातो ग्रोसो)
लंदन, 12 सितंबर (द कन्वरसेशन) ब्राज़ील में विश्वविख्यात अमेज़न के जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय अब डिजिटल माध्यमों की मदद से पर्यावरण में हो रहे बदलावों को स्वयं दर्ज कर रहे हैं और वैश्विक मंचों पर अपनी बात रख रहे हैं।
यह जानकारी ब्रिटेन की बॉर्नमाउथ यूनिवर्सिटी की कैरोलिना मचाडो ओलिवीरा और ब्राज़ील के यूनिवर्सिडाडे दो एस्टाडो दी मातो ग्रोसो (यूएनईएमएटी) की एंटोनिया अल्वेज पेरीरा द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आई है।
अध्ययन में बताया गया है कि अमेज़न के गहन वर्षा वनों में ध्वनि डिज़ाइनर एरिक तेरेना जैसे आदिवासी संवाददाता अब रिकॉर्डिंग उपकरणों की मदद से वर्षा वन की ध्वनियों को संजो रहे हैं, लेकिन वे स्पष्ट रूप से महसूस कर रहे हैं कि प्रकृति की आवाजें अब मशीनों के शोर में दबती जा रही हैं।
‘मीडिया इंडीज़ेना’ नामक एक ब्राज़ीली मीडिया नेटवर्क के सह-
संस्थापक तेरेना कहते हैं कि अब परंपरागत लोक गीतों की जगह औद्योगिक परियोजनाओं की आवाज़ों ने ले ली है। वे इन अनुभवों को डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए साझा करते हैं, जिससे स्थानीय अनुभव वैश्विक जलवायु ज्ञान में बदल रहा है।
अध्ययन में कहा गया है कि कैसे स्मार्टफोन, फिल्म और सोशल मीडिया जैसे डिजिटल उपकरणों के माध्यम से ब्राज़ील के आदिवासी समुदाय न केवल पर्यावरणीय विनाश का दस्तावेज़ीकरण कर रहे हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन की वैश्विक बहस को भी प्रभावित कर रहे हैं।
लेखकों के अनुसार, यह आंदोलन अचानक नहीं शुरू हुआ। 2017 में ब्राज़ीलिया में आयोजित 'फ्री लैंड कैंप' के दौरान तेरेना और कुछ ग्वाजाजारा युवाओं ने ‘मीडिया इंडीज़ेना’ की शुरुआत की थी, जिसमें अब तक 128 से अधिक युवाओं को रिपोर्टिंग और कहानी कहने का प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
स्थानीय संकट, वैश्विक चेतना
साल 2023 की शुरुआत में यानामामी समुदाय में मानवीय संकट के दौरान मीडिया इंडीज़ेना की रिपोर्टिंग ने पहली बार इस गंभीर स्थिति की जानकारी दी। अवैध सोने की खदानों के कारण बच्चों में कुपोषण, पारे की विषाक्तता और नदी प्रदूषण जैसी समस्याएं सामने आईं। बाद में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इस पर रिपोर्ट की, लेकिन सबसे पहले इसे सामने लाने वाले वही स्थानीय संवाददाता थे।
एक अन्य उदाहरण ज़िंगू+ नेटवर्क द्वारा बनाए गए वीडियो ‘आग ज़िंगू की आंखों को जला रही है’ का है, जिसमें अमेज़न के जंगलों में अवैध आगजनी को दिखाया गया था। यह वीडियो अमेरिका और यूरोपीय संघ की विभिन्न वैश्विक संस्थानों की नजर में आया।
डिजिटल योद्धा: कैमरा ही अब तीर-कमान
अध्ययन में कहा गया है कि माईटी सिनेमा कलेक्टिव और मीडिया गुआरानी जैसे समूह परंपरागत ज्ञान को डिजिटल माध्यम से संरक्षित कर रहे हैं। फिल्मकार रेनान किसेद्जे के अनुसार, “हम डिजिटल योद्धा हैं। अब कैमरे और स्मार्टफोन ही जमीन और अधिकारों की रक्षा के हथियार बन चुके हैं।’’
राजनीतिक चेतना और वैश्विक मंच पर पहुंच
इन डिजिटल प्रयासों का उद्देश्य केवल सांस्कृतिक पहचान बनाए रखना नहीं है, बल्कि राजनीतिक और पर्यावरणीय न्याय के लिए लड़ना भी है। ब्राज़ील में प्रस्तावित ‘विनाश विधेयक’ जैसी नीतियों के खिलाफ ये समुदाय सोशल मीडिया के माध्यम से जनमत तैयार कर रहे हैं।
इस बीच, जलवायु वित्त को लेकर भी चिंता जताई गई है। ब्रिटेन द्वारा 2021 से 2026 के बीच 11.6 अरब पाउंड की जलवायु सहायता का वादा किया गया है, लेकिन एक स्वतंत्र आयोग ने कहा है कि इस राशि की प्रभावशीलता को लेकर पारदर्शिता की कमी है।
अब आदिवासी समुदाय इन फंडिंग एजेंसियों से सीधे संवाद कर रहे हैं और नीति-निर्धारण में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
सीओपी30 की तैयारी
इस वर्ष नवंबर में ब्राज़ील में आयोजित होने वाले सीओपी30 सम्मेलन में बड़ी संख्या में दक्षिण अमेरिकी आदिवासी प्रतिनिधि भाग लेंगे। अगस्त के अंत में 100 से अधिक आदिवासी संवाददाता बेलें शहर में ‘प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी संचार सम्मेलन’ में शामिल हुए। इस सम्मेलन का नारा था – “आदिवासी संचार ही प्रतिरोध, क्षेत्र और भविष्य है।”
कहा जा सकता है कि पर्यावरण के सबसे अनुभवी रक्षक अब जलवायु विमर्श का हिस्सा बन रहे हैं और उनकी कहानियां वैश्विक निर्णयों को आकार देने में अहम भूमिका निभाएंगी।
(द कन्वरसेशन) मनीषा