मप्र उच्च न्यायालय ने खारिज की 421 करोड़ रुपये की जमीन को ‘नगर वन’ घोषित करने की याचिका
हर्ष जितेंद्र
- 12 Sep 2025, 04:18 PM
- Updated: 04:18 PM
इंदौर, 12 सितंबर (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इंदौर में तीन दशकों से भी ज्यादा वक्त से बंद पड़ी एक कपड़ा मिल की 42 एकड़ जमीन को ‘नगर वन’ घोषित किए जाने की गुहार के साथ दायर जनहित याचिका खारिज कर दी है।
अदालत ने कहा कि भारतीय वन अधिनियम में ‘नगर वन’ की कोई अवधारणा नहीं है।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति विवेक रुसिया और न्यायमूर्ति जय कुमार पिल्लई ने दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर के बाद पर्यावरणविद ओमप्रकाश जोशी और अन्य लोगों की जनहित याचिका बुधवार को खारिज कर दी।
याचिकर्ताओं का पक्ष उनके वकील अभिनव धनोदकर ने रखा, जबकि राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद सोनी ने पैरवी की।
याचिका में कहा गया था कि शहर में 1992 से बंद पड़ी हुकुमचंद मिल परिसर के 42 एकड़ क्षेत्र में ‘प्राकृतिक रूप से उत्पन्न वन’ को 'नगर वन' घोषित किया जाए। याचिकाकर्ताओं ने मिल परिसर में पेड़ों की कटाई की निविदा को अवैध घोषित करके रद्द किए जाने की गुहार भी की थी।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में रेखांकित किया कि राज्य सरकार के मध्यप्रदेश गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मंडल (एमपीएचआईडीबी) ने बंद पड़ी मिल की जमीन का स्वामित्व हासिल करने के लिए आधिकारिक परिसमापक को 421 करोड़ रुपये जमा कराए हैं और इस रकम का अधिकांश हिस्सा मिल के लेनदारों के साथ ही कर्मचारियों व पूर्व कर्मचारियों के बीच वितरित किया जा चुका है।
युगल पीठ ने कहा कि एमपीएचआईडीबी ने मिल परिसर में उग आईं झाड़ियों, उखड़े हुए पेड़ों और लकड़ी के टुकड़ों को काटने और हटाने के लिए ई-निविदा जारी की है और इसमें "पेड़ों को हटाने" जैसे किसी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
अदालत ने कहा कि 1992 से खाली पड़े मिल परिसर में कुछ बबूल के पेड़ हैं जो समय बीतने के साथ बढ़ गए हैं और परिसर की जमीन झाड़ियों और उखड़े हुए पेड़ों से भर गई है।
उच्च न्यायालय ने कहा,‘‘याचिकाकर्ताओं का यह तर्क निराधार है कि हुकुमचंद मिल परिसर में सैकड़ों पूर्ण विकसित पेड़ों वाला एक नगर वन है।’’
अदालत ने यह भी कहा कि एमपीएचआईडीबी ने इस मिल की जमीन हासिल करने के लिए बड़ी धनराशि का निवेश हरियाली के उद्देश्य से भूमि को खाली रखने के वास्ते नहीं किया है।
युगल पीठ ने मौजूदा स्तर पर किसी भी हस्तक्षेप से इनकार करते हुए कहा,‘‘राज्य सरकार इंदौर के कनाड़िया क्षेत्र में एक लाख पेड़ लगाकर नगर वन विकसित करने का निर्णय पहले ही ले चुकी है। इसलिए एक बार जब एमपीएचआईडीबी ने राशि का निवेश कर दिया है और विकास के लिए भूमि खरीद ली है, तो सभी झाड़ियों और उखड़े हुए पेड़ों को हटाए बिना निर्माण कार्य शुरू नहीं किया जा सकता।’’
याचिकाकर्ता और अन्य पर्यावरण कार्यकर्ता हुकुमचंद मिल परिसर के पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं के अनुसार मिल परिसर में प्राकृतिक रूप से वन उत्पन्न हो गया है जो इंदौर के लिए एक महत्वपूर्ण हरित अवसंरचना संपत्ति के रूप में कार्य करता है।
उच्च न्यायालय ने कहा,"याचिकाकर्ताओं के अनुसार इंदौर शहर के निवासियों के हित में (मिल के) इस हरित क्षेत्र को नगर वन घोषित करके सरकार द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए। हालांकि, भारतीय वन अधिनियम के तहत नगर वन की ऐसी कोई अवधारणा नहीं है।"
एमपीएचआईडीबी, मिल परिसर के 60 प्रतिशत हिस्से का वाणिज्यिक उपयोग करना चाहता है, जबकि शेष 40 फीसद भाग पर वह आवासीय परियोजना लाना चाहता है।
भाषा हर्ष