राष्ट्र ध्वज की आपत्तिजनक तस्वीर अपलोड करने के आरोपी को जमानत से इनकार
राजकुमार
- 11 Sep 2025, 10:05 PM
- Updated: 10:05 PM
प्रयागराज (उप्र), 11 सितंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फेसबुक पर राष्ट्र ध्वज की आपत्तिजनक तस्वीर अपलोड करने के आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी है।
आरोपी ने एक ऐसी तस्वीर अपलोड की जिसमें तिरंगा झंडा पर एक कुत्ता बैठा हुआ दिखाया गया है। साथ ही, उसने पाकिस्तान के पक्ष में नारेबाजी भी पोस्ट की थी।
वसिक त्यागी नामक याचिकाकर्ता की जमानत याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा कि ऐसा पोस्ट “भड़काऊ, आपत्तिजनक और सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाला” था और राष्ट्र ध्वज की छवि खराब करने वाला व्यक्ति किसी तरह की सहानुभूति के योग्य नहीं है।
मुजफ्फरनगर के चर्थवाल थाने में 16 मई, 2025 को प्राथमिकी दर्ज की गई जिसमें आरोप लगाया गया है कि वसिक त्यागी ने पाकिस्तान का महिमामंडन करते हुए अपने फेसबुक पेज पर राष्ट्र ध्वज का अपमान किया।
प्राथमिकी के अनुसार, याचिकाकर्ता ने फेसबुक पोस्ट में लिखा है, “कामरान भट्टी तुम पर गर्व है। पाकिस्तान जिंदाबाद।’’
एक अन्य पोस्ट में उसने राष्ट्र ध्वज की एक तस्वीर लगाई जिसमें तिरंगे पर एक कुत्ते बैठा हुआ दिखाया गया। प्राथमिकी में आरोप है कि इस पोस्ट से लोगों की भावनाएं आहत हुईं और समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा होने की आशंका पैदा हुई।
विवेचना के दौरान, पुलिस ने पता लगाया कि उक्त पोस्ट त्यागी के फेसबुक एकाउंट से प्रसारित किया गया जो उसके मोबाइल नंबर पर पंजीकृत है।‘मेटा’ की साइबर रिपोर्ट ने भी इस बात की पुष्टि की कि उक्त पोस्ट से जुड़े ‘आईपी’ पते का इस्तेमाल त्यागी के मोबाइल नंबर से किया गया।
इसके बाद, आरोपी को सात जून, 2025 को गिरफ्तार किया गया और उसका मोबाइल फोन फॉरेंसिक परीक्षण के लिए जब्त किया गया। स्वतंत्र गवाहों ने भी अभियोजन पक्ष की दलीलों का समर्थन किया।
राष्ट्र ध्वज की पवित्रता पर जोर देते हुए अदालत ने कहा, “भारतीय राष्ट्र ध्वज गर्व और देशभक्ति का प्रतीक है। यह भारत के लोगों की आशा और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। प्रत्येक भारतीय नागरिक को राष्ट्र ध्वज के सम्मान की रक्षा करनी होगी।”
अदालत ने आठ सितंबर को दिए अपने निर्णय में कहा, “याचिकाकर्ता उक्त पोस्ट के बारे में संतोषजनक जवाब नहीं दे सका। इसलिए आरोपों की गंभीरता, अपराध की प्रकृति और सामाजिक सौहार्द पर इसके संभावित प्रभाव को देखते हुए उसे जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं बनता।”
भाषा राजेंद्र