नेपाल अशांति: हिंसा के पीछे साजिश की पर्यवेक्षकों की आशंका
राजकुमार अविनाश
- 11 Sep 2025, 08:52 PM
- Updated: 08:52 PM
(सौगत मुखोपाध्याय)
कोलकाता, 11 सितंबर (भाषा) अपने भविष्य को लेकर चिंतित नेपाल जहां नयी शुरुआत की प्रतीक्षा कर रहा है, वहीं बांग्लादेश और श्रीलंका में सरकारों को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने की घटनाओं से इसकी समानताएं सामने आयी हैं। इसके बाद पर्यवेक्षक इस अराजकता के पीछे किसी बड़ी साजिश की आशंका पर विचार कर रहे हैं।
फिलहाल, कई लोग मानते हैं कि नेपाल में व्याप्त भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिलाफ ‘जेन जेड’ के डिजिटल विद्रोह के बाद देश कार्यवाहक अंतरिम सरकार के गठन की दहलीज पर पहुंच गया है। ऐसे में पर्यवेक्षकों को तीनों देशों में सत्ता हस्तांतरण में बड़ी समानताएं नजर आ रही हैं।
‘जेन जेड’ वे युवा हैं जिनका जन्म 1997 से 2012 के बीच हुआ है।
काठमांडू स्थित वरिष्ठ पत्रकार और ‘साउथ एशियन वीमेन इन मीडिया’ (एसएडब्ल्यूएम) की नेपाल शाखा की उपाध्यक्ष नम्रता शर्मा ने कहा, ‘‘मुझे आठ सितंबर से पहले कोई साज़िश रचे जाने की आशंका नहीं दिखती, जिस दिन जेन जेड ने न्याय की मांग को लेकर स्वतःस्फूर्त विरोध प्रदर्शन आयोजित किए थे। लेकिन उसके बाद हुई बर्बरता और बेतुकी हिंसा स्पष्ट रूप से बाहरी और अज्ञात तत्वों का काम है।’’
शर्मा ने कहा कि इन लोगों की पहचान के लिए अभी तक कोई जांच नहीं हुई है और इस तरह की जांच की तत्काल जरूरत है।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘तनाव बढ़ना निश्चित रूप से जेन-जेड की योजना का हिस्सा नहीं था। अब ऐसा लगता है कि ये बाहरी ताकतें शुरुआती घटनाक्रम पर पैनी नजर रख रही थीं और स्थिति का फायदा उठाकर इस तरह की हरकतों के लिए उपयुक्त समय पाकर इस विवाद में कूद पड़ीं।’’
नेपाल की तरह, अगस्त 2024 में ढाका में सबसे पहले युवा, मुख्य रूप से छात्र, विवादास्पद सरकारी नौकरी कोटा प्रणाली का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरे थे, जो जल्द ही राष्ट्रव्यापी विरोध में बदल गया। अधिकारियों ने इस विरोध का कठोरता से दमन किया।
शेख हसीना सरकार के पतन के बाद अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस का चयन विद्रोह का नेतृत्व कर रहे छात्रों द्वारा किया गया था। उसमें सेना सक्रिय रूप से मध्यस्थता कर रही थी।
श्रीलंका में मार्च से जुलाई 2022 तक जन-आंदोलन के परिणामस्वरूप अंततः गोटाबाया राजपक्षे शासन को सत्ता से बेदखल होना पड़ा।
राजपक्षे सरकार के खिलाफ आंदोलन श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन को लेकर हुआ, जिसके कारण गंभीर मुद्रास्फीति और ईंधन, घरेलू गैस और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी से जुड़ा आर्थिक संकट पैदा हो गया।
तीनों ही मामलों में नागरिक भीड़ द्वारा सरकारी प्रतिष्ठानों में लूटपाट और आगजनी करते हुए हमला तथा सशस्त्र सैनिकों द्वारा प्रदर्शनकारियों को बलपूर्वक हटाने के लिए उन इमारतों पर छापा मारना आम बात थी।
लेखक और राजनीतिक विश्लेषक सी के लाल ने कहा, ‘‘नेपाल में षड्यंत्रकारियों ने आग तो लगा दी है, लेकिन उसे बुझाने के तरीकों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है।’’
उन्होंने बताया, ‘‘देश भर में हुए समन्वित हमलों को देखते हुए, ऐसा लगता है कि इनके पीछे काफी समय से तैयारी थी। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध केवल चार दिनों तक चला। ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे इतने कम समय में पूरे देश में इतनी हिंसक घटनाएं हो सकती थीं।’’
भारत में नेपाल के पूर्व राजदूत लोकराज बराल ने कहा कि पड़ोसी देशों में सरकारों के हिंसक तख्तापलट जैसी घटनाओं के बावजूद, नेपाल में स्थिति अब भी अलग है।
उन्होंने कहा, ‘‘बांग्लादेश में, सत्तारूढ़ अवामी लीग पर प्रतिबंध लगा दिया गया और शेख हसीना देश छोड़कर चली गईं। लेकिन नेपाल में ऐसा नहीं है। प्रमुख राजनीतिक दल अब भी यहां मौजूद हैं और मुझे विश्वास है कि वे जल्द ही वापस आ जाएंगे।’’
हालांकि, बराल ने कहा कि हिंसा में जेन जेड आंदोलनकारियों के अलावा ‘बाहरी लोगों’ की मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा, ‘‘देश के भीतर असंतुष्ट तत्वों के समूह हैं जो नहीं चाहते कि संवैधानिक व्यवस्था अपने मौजूदा स्वरूप में बनी रहे।’’
शर्मा ने कहा, ‘‘ हमारे उत्तर और दक्षिण, दोनों तरफ क्रमशः दो शक्तिशाली पड़ोसी देश, चीन और भारत हैं। पश्चिमी देशों की भी नेपाल की भू-राजनीतिक स्थिति पर कड़ी नजर है। इसलिए, हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की आशंका हमेशा बनी रहती है।’’
हालांकि नेपाल स्थित गैर-सरकारी संगठन मार्टिन चौटारी के वरिष्ठ शोधकर्ता रमेश परजुली ने कहा कि अगर ऐसा कोई प्रभाव है भी, तो फिलहाल स्पष्ट नहीं है।
भाषा राजकुमार