सरकार जल्द शुरू करेगी कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण मिशन
रमण अजय
- 11 Sep 2025, 03:10 PM
- Updated: 03:10 PM
नयी दिल्ली, 11 सितंबर (भाषा) सरकार जल्द ही कार्बन कैप्चर उपयोग और भंडारण मिशन शुरू करेगी। इसमें 50-100 प्रतिशत तक का प्रोत्साहन दिया जाएगा।
कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (सीसीयूएस) एक ऐसी प्रक्रिया है जो औद्योगिक स्रोतों और बिजली संयंत्रों से कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल में प्रवेश करने से पहले ही ‘कैप्चर’ कर लेती है।
‘कैप्चर’ की गई कार्बन डाइऑक्साइड को फिर रसायनों या ईंधन जैसे विभिन्न उत्पादों में उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जाता है या समाप्त हो चुके तेल और गैस भंडारों जैसे भूमिगत भूवैज्ञानिक संरचनाओं में संग्रह किया जाता है।
नीति आयोग के सलाहकार (ऊर्जा) राजनाथ राम ने इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) द्वारा आयोजित 17वें भारत कोयला शिखर सम्मेलन में कहा , ‘‘हम बहुत जल्द सीसीयूएस मिशन शुरू करने जा रहे हैं। इसके तहत कुछ प्रौद्योगिकी को 100 प्रतिशत सरकारी वित्तपोषण दिया जाएगा। ये प्रोत्साहन 50 प्रतिशत से 100 प्रतिशत तक हो सकते हैं।’’
राम ने कहा कि ये प्रोत्साहन उद्योगों को कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकी को अपनाने और उन्हें कोयला-आधारित ऊर्जा प्रणालियों के साथ एकीकृत करने में मदद करेंगे।
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि के साथ, ऊर्जा की मांग भी बढ़ने की उम्मीद है। ऊर्जा की मांग में वृद्धि के लिए निश्चित रूप से ऊर्जा की आपूर्ति में वृद्धि की आवश्यकता होगी।
हालांकि, कोयले को हमारी कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण घटक माना जाता है, फिर भी इस प्रणाली में बड़ी मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित की जा रही है।
नीति आयोग के सलाहकार ने बताया, ‘‘लेकिन इससे जुड़ी चुनौतियां भी हैं... अगर आप वास्तव में नवीकरणीय ऊर्जा को प्रणाली में एकीकृत करना चाहते हैं, तो इसमें अन्य लागत भी शामिल हैं। आपको इसके साथ-साथ भंडारण भी करना होगा, जो महंगा हो सकता है।’’
इससे पहले, नीति आयोग ने कहा था कि देश की 70 प्रतिशत से अधिक बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयले पर निर्भरता को देखते हुए, बिजली क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने में सीसीयूएस की महत्वपूर्ण भूमिका है।
भले ही भारत ग्रिड को पर्याप्त रूप से हरित बनाने और 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा की 500 गीगावाट स्थापित क्षमता के लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम हो, फिर भी सौर और पवन ऊर्जा का भरोसेमंद नहीं होना (मौसम के हिसाब से उत्पादन को लेकर) और गैर-प्रेषण प्रकृति को देखते हुए, जीवाश्म ईंधन (मुख्य रूप से कोयला) या अन्य प्रेषण योग्य स्रोतों से बिजली की मूल मांग को पूरा करने की आवश्यकता होगी।
भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन लगभग 1.9 टन प्रति वर्ष है, जो वैश्विक औसत के 40 प्रतिशत से कम और चीन का लगभग एक-चौथाई है।
उन क्षेत्रों के कार्बन मुक्त करने के लिए एक स्थायी समाधान की आवश्यकता है जो उत्सर्जन में 70 प्रतिशत का योगदान करते हैं। सीसीयूएस की इसमें एक महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका है।
भाषा रमण