लिंग-परीक्षण विरोधी कानून: राज्यों को याचिका पर जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय
सुरेश माधव
- 09 Sep 2025, 06:47 PM
- Updated: 06:47 PM
नयी दिल्ली, नौ सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने गर्भधारण-पूर्व एवं प्रसव-पूर्व निदान तकनीक (पीसीपीएनडीटी) अधिनियम और संबंधित नियमों के प्रभावी कार्यान्वयन संबंधी एक याचिका पर जवाब देने के लिए मंगलवार को राज्य सरकारों को चार सप्ताह का समय दिया।
यह बात रिकॉर्ड पर लाई गयी कि लगभग पांच राज्यों ने अपना पक्ष प्रस्तुत नहीं किया था, जबकि बाकी ने याचिका पर अपने हलफनामे दाखिल कर दिए थे।
पीसीपीएनडीटी कानून भ्रूण के लिंग परीक्षण के लिए प्रसव-पूर्व निदान तकनीकों के उपयोग पर रोक लगाने के लिए बनाया गया था।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ को बताया गया कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल सितंबर में राज्यों को अपने हलफनामे दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया था।
राज्यों को निर्देश दिया गया था कि वे संबंधित अपीलीय अदालतों के समक्ष उपयुक्त प्राधिकारियों द्वारा हलफनामा दायर कर इस तरह के मामलों में अपीलों, पुनरीक्षण या अन्य कार्यवाहियों की संख्या बताएं।
पीठ ने पूछा, ‘‘क्या राज्यों ने अपने जवाब दाखिल किए हैं?’’
मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि कुछ राज्यों ने अपने हलफनामे दाखिल कर दिए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि लगभग पांच राज्यों ने हलफनामे दाखिल नहीं किए हैं। ऐसे मामलों में कई लोगों को बरी कर दिया गया था, लेकिन उनके खिलाफ अपील दायर नहीं की गई।’’
पीठ ने पूछा, ‘‘वे (राज्य) बरी किए जाने के खिलाफ अपील क्यों नहीं दायर कर रहे हैं?’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारियों ने ऐसे मामलों में उचित तरीके से मुकदमा नहीं चलाया, जिसके कारण आरोपी बरी हो गए।
एक राज्य की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने दो सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का आश्वासन दिया।
पीठ ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘हम जुर्माना नहीं लगा रहे हैं, लेकिन अगली बार हम जुर्माना लगा सकते हैं।’’
शीर्ष अदालत ने चार सप्ताह का समय दिया और मामले की सुनवाई 10 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी।
पीठ ने पारिख को न्यायमित्र नियुक्त किया।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल सितंबर में राज्यों को हलफनामे दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा था कि आंकड़े एक मई, 2015 से अब तक के होने चाहिए।
न्यायालय ने जुलाई 2023 में याचिकाकर्ता अधिवक्ता शोभा गुप्ता की याचिका पर कई राज्यों से जवाब मांगा था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि कानून का ‘‘अक्षरशः’’ पालन नहीं किया जा रहा है।
उनके वकील ने कहा कि अधिनियम के तहत बनाए गए संबंधित नियमों के अनुसार, इस कानून के तहत किसी भी बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील दायर करना अनिवार्य है। इस कानून का उद्देश्य अजन्मे बच्चों को बचाना है।
शीर्ष अदालत ने सितंबर 2022 में उस याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था, जिसमें सभी स्तरों पर उपयुक्त प्राधिकारियों को प्रसव-पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन निषेध) नियम, 1966 का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया था, साथ ही यह भी निर्देश दिया गया था कि किसी भी तरह की चूक के प्रतिकूल परिणाम होंगे।
याचिका में पीएनडीटी अधिनियम की धारा-25 के तहत अपराधी के खिलाफ दंड शुरू करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी को निर्देश देने की भी मांग की गई थी।
याचिका में कहा गया है कि विभिन्न राज्यों के आंकड़े बताते हैं कि अधिनियम के तहत दोषसिद्धि की दर काफी कम है।
भाषा
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