जीएम फसलें सभी के लिए नहीं हैं एक जैसा समाधानः विशेषज्ञ
राजेश राजेश प्रेम
- 08 Sep 2025, 07:44 PM
- Updated: 07:44 PM
नयी दिल्ली, आठ सितंबर (भाषा) कृषि विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि आनुवंशिक रूप से संवर्धित (जीएम) फसलें कृषि चुनौतियों के लिए लक्षित समाधान दे सकती हैं, लेकिन उनकी प्रभावशीलता फसल और लक्षणों पर निर्भर करती है। 'वर्ल्ड फूड प्राइज फाउंडेशन' के एक कार्यक्रम में शामिल विशेषज्ञों ने यह राय जताई।
अमेरिका स्थित फाउंडेशन की वरिष्ठ निदेशक निकोल बैरेका प्रेंजर ने नोबेल पुरस्कार विजेता नॉर्मन बोरलॉग के दर्शन का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी समाधान ऐसा होना चाहिए जिस पर सभी को विचार करना चाहिए।
प्रेंजर ने फाउंडेशन के सम्मेलन 'डायलॉग नेक्स्ट' के बारे में संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा, “कोई प्रौद्योगिकी एक की मदद कर सकती है और दूसरे की नहीं। लेकिन हम वह क्यों नहीं करते जो हम कर सकते हैं? हमें सभी उपलब्ध कृषि प्रौद्योगिकियों का तुरंत पता लगाना होगा।”
उन्होंने कहा कि बोरलॉग की तरफ से पेश समाधानों ने पिछले 25 वर्षों तक काम किया लेकिन मौजूदा कृषि चुनौतियों को देखते हुए नए तरीके अपनाने जरूरी हैं।
प्रेंजर ने कहा, “तो क्या इसका समाधान जीएम फसलें हैं? कुछ के लिए इसका जवाब हां हो सकता है जबकि कुछ के लिए नहीं। लेकिन हमें अपनी खोज जारी रखनी होगी।”
इस मौके पर बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया के प्रबंध निदेशक बी एम प्रसन्ना ने बताया कि आनुवंशिक संवर्धन या जीनोम संपादन सरल जीनोम वाली फसलों में बेहतर काम करता है।
उन्होंने कहा, “चावल में केवल एक जीन परिवर्तन से ही भारी फेनोटाइप बदलाव संभव है, लेकिन मक्का या अन्य फसलों में यह लागू नहीं हो सकता है। ऐसे में हमें समाधान बहुत सावधानी से अपनाने होंगे।”
प्रसन्ना ने बताया कि मक्का और गेहूं जैसी जटिल फसलों में सूखे या गर्मी सहनशीलता जैसी विशेषताओं को केवल एकल-जीन बदलाव से हल नहीं किया जा सकता। उन्होंने जीनोमिक चयन और भविष्यवाणी जैसी प्रणालियों के अनुकूलन पर जोर दिया।
हालांकि, जीनोम संपादन ने रोग प्रतिरोधक लक्षणों में सफलता दिखाई है। प्रसन्ना ने केन्या में मक्का की घातक परिगलन बीमारी के प्रतिरोध के उदाहरण का हवाला दिया।
विशेषज्ञों ने सभी उपलब्ध कृषि तकनीकों पर खुले दिमाग से विचार करने और समाधान को फसल व क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुसार ढालने पर बल दिया।
भाषा राजेश राजेश