शीर्ष अदालत ने जमानत रद्द करने संबंधी याचिकाओं को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रति नाराजगी जताई
देवेंद्र दिलीप
- 05 Sep 2025, 09:23 PM
- Updated: 09:23 PM
नयी दिल्ली, पांच सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक कड़े आदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय को फटकार लगाई कि उसने पिछले दो वर्षों से जमानत रद्द करने के लिए कम से कम 40 याचिकाओं में पूर्व निर्धारित आदेश (साइक्लोस्टाइल्ड टेम्पलेट ऑर्डर) पारित किए हैं, जिसमें शिकायतकर्ताओं को गवाह संरक्षण योजना, 2018 के तहत उपाय तलाशने के लिए कहा गया है।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा, ‘‘हमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कई आदेश मिले हैं, जो कानून की गलत धारणा पर आधारित हैं, खासकर यह कि गवाह संरक्षण योजना जमानत रद्द करने का एक विकल्प है। उच्च न्यायालय के अनुसार, यह एक वैकल्पिक उपाय है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह जानकर दुख हो रहा है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार, हमें कम से कम 40 हाल के आदेश मिले हैं, जो पिछले एक साल में ही पारित किए गए हैं।’’
दिलचस्प बात यह है कि न्यायमूर्ति पारदीवाला के नेतृत्व वाली पीठ ने ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश प्रशांत कुमार की एक दीवानी विवाद मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने के लिए आलोचना की थी तथा सेवानिवृत्ति तक उनसे आपराधिक मामलों को वापस ले लिया गया था।
इस विवादास्पद आदेश को बाद में प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई के आदेश पर संशोधित किया गया था।
इस मामले में, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कड़े शब्दों में फैसला सुनाया और उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें हत्या के मुकदमे का सामना कर रहे एक आरोपी की जमानत रद्द करने से इनकार कर दिया गया था, और इसके बजाय शिकायतकर्ता को गवाह संरक्षण योजना के तहत सहायता लेने के लिए कहा गया था।
मूल शिकायतकर्ता फिरेराम ने इस आधार पर आरोपी की जमानत रद्द करने का अनुरोध किया कि उसने हत्या के एक मामले के गवाहों को धमकी देकर जमानत की शर्तों का उल्लंघन किया है।
उच्च न्यायालय ने जमानत रद्द करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय शिकायतकर्ता को गवाह संरक्षण योजना के तहत आवेदन करने का निर्देश दिया।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘हम इस तथ्य पर गौर करते हैं कि उच्च न्यायालय ने एक बहुत ही अजीब आदेश पारित किया है... उच्च न्यायालय का कहना है कि अपीलकर्ता के मामले में पीड़ित व्यक्ति के रूप में मूल प्रथम सूचनाकर्ता होने के नाते उपाय गवाह संरक्षण योजना के तहत है। दूसरे शब्दों में, इस आदेश को पढ़कर हम यही समझ पाए हैं कि उच्च न्यायालय चाहता है कि अपीलकर्ता इस योजना के प्रावधानों का लाभ उठाए। ऐसा कहते हुए, उच्च न्यायालय ने जमानत रद्द करने से इनकार कर दिया।’’
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को ‘‘कानून के सुस्थापित सिद्धांतों को लागू करते हुए’’ गुण-दोष के आधार पर जमानत रद्द करने की याचिका पर निर्णय लेना चाहिए था।
शीर्ष अदालत ने आरोपी को जमानत देने संबंधी उच्च न्यायालय के पिछले आदेश का हवाला दिया और कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने स्वयं कहा था कि किसी भी शर्त के उल्लंघन की स्थिति में, निचली अदालत आरोपी की जमानत रद्द करने के लिए स्वतंत्र होगी।’’
पीठ ने कहा, ‘‘जब यह जमानत आदेश की शर्तों के उल्लंघन का स्पष्ट मामला हो और जब मूल प्रथम सूचनाकर्ता प्रथमदृष्टया यह प्रदर्शित करने में सक्षम हो कि आरोपी व्यक्ति किस प्रकार उसे दी गई छूट का दुरुपयोग कर रहा है, तो ऐसी परिस्थितियों में गवाह संरक्षण योजना के प्रावधानों की शायद ही कोई भूमिका रह जाती है।’’
उच्च न्यायालय की प्रचलित प्रथा की कड़ी आलोचना करते हुए, पीठ ने कहा, ‘‘आदेश एक-दूसरे की हूबहू नकल हैं। हमें यह जानकर निराशा हुई है कि पूर्व निर्धारित (साइक्लोस्टाइल्ड टेम्पलेट) आदेश पारित करने की उपरोक्त प्रथा पिछले दो वर्षों से भी अधिक समय से प्रचलन में है।’’
इसके परिणामस्वरूप, आदेश को रद्द कर दिया गया और उच्च न्यायालय को निर्देश दिया गया कि वह चार सप्ताह में जमानत रद्द करने की याचिका पर पुनः सुनवाई करे, तथा धमकी के संबंध में दर्ज दो प्राथमिकी पर जांच अधिकारी से रिपोर्ट मांगे।
पीठ ने रजिस्ट्री को प्रत्येक आदेश की एक प्रति सभी उच्च न्यायालयों को प्रसारित करने का निर्देश दिया।
भाषा
देवेंद्र