चिनाब नदी की तबाही के बाद गांववास गाद एवं कीचड़ से ढूंढ रहे हैं यादों से जुड़ी चीजें
धीरज माधव
- 05 Sep 2025, 05:25 PM
- Updated: 05:25 PM
(अनिल भट्ट)
परग्वाल(जम्मू), पांच सितंबर (भाषा) पाकिस्तान से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा के करीब बसा जम्मू का परग्वाल गांव चिनाब के रौद्र रूप के कारण तबाही का गवाह बना और उस मंजर के कई दिन बाद ग्रामीण कीचड़ और मलबे से न केवल अपने सामान की तलाश कर रहे हैं, बल्कि अपनी यादों को भी संजोने की कोशिश कर रहे हैं जिनके साथ वे जिया करते थे।
पिछले मंगलवार को चिनाब नदी अपने कगारों को तोड़ते हुए गांव में दाखिल हो गई थी तथा घरों-इमारतों को धराशायी करती हुई मवेशियों और घरेलू सामान को बहा ले गई। अब पानी उतर गया है और पीछे रह गई है बस तबाही जो दम घोंटने वाली कीचड़ की परतों में दबी हैं। गांव वाले खेतों में बिखर गयी, उन चीजों की तलाश कर रहे हैं जो नदी पीछे छोड़ गई है।
अखनूर के निकट परग्वाल गांव, 27 सीमावर्ती बस्तियों में से एक है, जो पाकिस्तान की सीमा और विशाल चिनाब नदी के बीच स्थित है। दो दिनों तक बाढ़ का पानी घरों की पहली मंजिल तक जमा रहा, जिससे दुकानें, अन्न भंडार और मवेशी डूब गए।
बचाव दल ने 3,000 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया, लेकिन ताबही अब भी हर जगह दिखाई देती है। टूटी हुई दीवारें खतरनाक रूप से झुकी हुई हैं, दरवाजे कीचड़ में दफन हो गए और खेत- जो कभी धान से हरे-भरे थे – अब गाद की मोटी परतों से ढके हुए हैं।
सुभाष चंदर कीचड़ युक्त पानी से अपने भाइयों की मदद से अपने घर से आधा किलोमीटर दूर अपनी एकमात्र पुरानी अलमारी को बाहर निकाला।
उन्होंने बताया कि यह शादी में मिली थी और अब भी बंद है, इसमें नकदी और गहने नहीं हैं, किंतु यह हमारे यादों की पोटली है।
चंदर ने कहा,‘‘मुझे लगा था कि मैं इसे फिर कभी नहीं देख पाऊंगा। यह हमारे यादों का एक हिस्सा है।’’
वह बाढ़ के उस भयावह मंजर को याद करते हुए कहते हैं, ‘‘हम बाल-बाल बच गए क्योंकि पानी अचानक हमारे घर में घुस आया। हम सबसे पहले बच्चों और बड़ों को बचाने के लिए दौड़े। पानी की वजह से पीछे की तरफ एक दीवार ढह हो गई थी।’’
चंदर ने बताया, ‘‘यह सब हमारी आंखों के सामने हो रहा था। हम अपनी जान के अलावा कुछ भी नहीं बचा सके। अब, जब हम अपने घरों को बर्बाद होते देख रहे हैं, तो हम खाना भी नहीं खा पा रहे हैं।’’
ग्रामीण असहाय महसूस कर रहे हैं, क्योंकि अधिकांश घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं और रहने के लिए असुरक्षित हैं।
पूरन चंद(62) रोते हुए कहते हैं, ‘‘हमने सब कुछ खो दिया है। हमारा घर क्षतिग्रस्त हो गया है। हमारा नौ सदस्यों का परिवार है। अब हम कहां रहेंगे? मेरी उम्र 62 साल है। मैंने जिदगी में पहली बार इतना पानी देखा है।’’
शारदा देवी ने बताया कि बाढ़ का पानी उनकी गर्दन तक पहुंच गया था और वह परिवार के अन्य सदस्यों को बाहर निकालने के लिए संघर्ष कर रही थीं। उन्होंने बताया, ‘‘ऐसा लग रहा था जैसे पानी की दीवार हम पर टूट पड़ी हो। हमने अपना सब कुछ खो दिया, यहां तक कि अपने मवेशी भी।’’
शारदा ने बताया कि उनकी शादी को 15 साल हो गए हैं लेकिन ऐसी आपदा कभी नहीं देखी थी।
रत्तन सिंह बताते हैं कि कीचड़ से निकाली गई अलमारी, बर्तन, केवल बचाई गई वस्तु नहीं है बल्कि उनकी स्मृतियों का हिस्सा हैं।
भाषा धीरज