दिल्ली: अदालत ने महिला के पति और उसके भाई को क्रूरता मामले में बरी किया
यासिर पवनेश
- 03 Sep 2025, 08:06 PM
- Updated: 08:06 PM
नयी दिल्ली, तीन सितंबर (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने एक महिला के पति और उसके (पति के) भाई को उससे क्रूर व्यवहार करने के आरोप में एक वर्ष कारावास की सजा सुनाने वाले मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को खारिज कर दिया और इसे महिलाओं के संरक्षण के लिए बनाए गए कानूनी प्रावधानों के दुरुपयोग का "स्पष्ट मामला" करार दिया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शिवाली बंसल ने 2023 के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई की, जिसमें महिला के पति मुख्तियार सिंह और उसके भाई सतेंद्र प्रताप सिंह को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) के तहत दोषी ठहराया गया था और उन्हें 50 हजार रुपये के जुर्माने के अलावा एक साल की कैद की सजा सुनाई गई थी।
अदालत ने 29 अगस्त के अपने आदेश में कहा, ‘‘यह मामला आईपीसी की धारा 498 ए के प्रावधान के दुरुपयोग का एक स्पष्ट उदाहरण है।’’
अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया कि जब पति साथ रहने योग्य व्यक्ति नहीं था और अगर उसने महिला का जीवन कष्टमय बना दिया था, तो पत्नी और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा लगातार सुलह के प्रयास क्यों किए गए?
अदालत ने कहा कि भारतीय समाज में आमतौर पर यह माना जाता है कि विवाह को बचाने के लिए महिलाएं पति और ससुराल वालों का अत्याचार सहती हैं, लेकिन यह सभी मामलों पर लागू नहीं होता और इसे सामान्यीकृत नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब पत्नी स्वतंत्र और शिक्षित हो।
अदालत ने कहा, ‘‘प्रतिवादी 2 (पत्नी) का आचरण एक विशेष मामले में संदिग्ध है, जहां उसने कहा कि अपीलकर्ता 1 (पति) ने बच्चे को बालकनी में पकड़ रखा था और धमकी दी थी कि वह बच्चे को गिरा देगा।’’
अदालत ने कहा कि ऐसी संभावना है कि पत्नी पति के क्रूर व्यवहार को सहन कर सकती है, लेकिन कोई भी मां विवाहित रिश्ते के लिए अपने बच्चे की सुरक्षा को खतरे में नहीं डालेगी।
अदालत ने कहा कि कथित तौर पर ‘घटना इतनी गंभीर थी कि किसी भी महिला को शिकायत दर्ज करानी चाहिए थी’, क्योंकि छह साल के बच्चे की जान को खतरा था।
अदालत ने कहा कि महिला का आचरण लगाए गए आरोपों के अनुरूप नहीं था, और ऐसा प्रतीत होता है कि उसने मई 2007 और अगस्त 2008 में अपने पति के खिलाफ ‘बदला लेने के लिए’ शिकायतें कीं, क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि संबंध सुधारने लायक नहीं रह गए हैं।
अदालत ने एक ऐसे व्यक्ति के स्वतंत्र साक्ष्य पर गौर किया, जिसे महिला का परिवार 50 वर्षों से जानता था और जिसने दोनों पक्षों के बीच सुलह-समझौते के प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लिया था, लेकिन उसे दहेज की मांग के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
आदेश में कहा गया है, ‘‘प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों से ऐसी क्रूरता का पता नहीं लगता। अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि प्रतिवादी 2 को अवैध दहेज की मांग को पूरा करने के लिए क्रूरता का सामना करना पड़ा, क्योंकि एक स्वतंत्र गवाह ने इस बात का खंडन किया है।’’
दूसरी ओर, पति के भाई के खिलाफ लगाए गए आरोपों को ‘अस्पष्ट और सर्वव्यापी प्रकृति का’ बताया गया।
अदालत ने दोषी करार दिए जाने के आदेश को रद्द करते हुए दोनों को बरी कर दिया।
अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता प्रवेश डबास उपस्थित हुए।
भाषा यासिर