भारत में प्रजनन स्वतंत्रता में वित्तीय सीमाएं सबसे बड़ी बाधा: संयुक्त राष्ट्र का अध्ययन
आशीष मनीषा
- 10 Jun 2025, 04:46 PM
- Updated: 04:46 PM
नयी दिल्ली, 10 जून (भाषा) संयुक्त राष्ट्र द्वारा मंगलवार को जारी एक अध्ययन में कहा गया है कि वित्तीय सीमाएं भारत में प्रजनन स्वतंत्रता के लिए सबसे बड़ी बाधाओं में से एक हैं और करीब 38 प्रतिशत उत्तरदाताओं का कहना है कि यह उन्हें मनचाहा परिवार पाने से रोक रही है।
यह निष्कर्ष संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की 2025 विश्व आबादी की स्थिति (एसओडब्लूपी) रिपोर्ट ‘द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस’ में साझा किए गए। भारत सहित 14 देशों में 14,000 उत्तरदाताओं के साथ किया गया यह ऑनलाइन सर्वेक्षण है। प्रतिभागियों में से 1,048 वयस्क भारत से थे।
अध्ययन में वित्तीय सीमाओं को प्रजनन स्वतंत्रता में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक बताया गया है, जिसमें भारत में 38 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वित्तीय सीमाएं उन्हें मनचाहा परिवार बनाने से रोक रही हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नौकरी की असुरक्षा (21 प्रतिशत), आवास की कमी (22 प्रतिशत) और भरोसेमंद बाल देखभाल की कमी (18 प्रतिशत) के कारण माता-पिता बनना पहुंच से बाहर लगता है। इसके अलावा, खराब सामान्य स्वास्थ्य (15 प्रतिशत), बांझपन (13 प्रतिशत) और गर्भावस्था से संबंधित देखभाल तक सीमित पहुंच (14 प्रतिशत) जैसी स्वास्थ्य बाधाएं भी हैं।
यूएनएफपीए ने कहा कि कई लोग भविष्य के बारे में बढ़ती चिंता के कारण भी बच्चे पैदा करने से कतराते हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन से लेकर राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता तक शामिल हैं। वहीं, 19 प्रतिशत लोगों को अपने साथी या परिवार से कम बच्चे पैदा करने के दबाव का सामना करना पड़ता है।
एसओडब्लूपी 2025 में रेखांकित किया गया कि लाखों व्यक्ति अपने वास्तविक प्रजनन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘यह वास्तविक संकट है, न कि कम जनसंख्या या अधिक जनसंख्या। और, इसका उत्तर अधिक प्रजनन क्षमता में निहित है-एक व्यक्ति की यौन, गर्भनिरोधक और परिवार शुरू करने के बारे में 150 प्रतिशत स्वतंत्र और सूचित निर्णय लेने की क्षमता।’’
इसमें कहा गया है कि कई लोगों, विशेषकर महिलाओं को अभी भी अपने प्रजनन जीवन के बारे में स्वतंत्र और सूचित निर्णय लेने में महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है तथा विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में असमानताएं बनी हुई हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रजनन दर उच्च बनी हुई है, जबकि दिल्ली, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से कम बनी हुई है।
इसमें कहा गया कि यह विसंगति आर्थिक अवसरों, स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच, शिक्षा के स्तर तथा प्रचलित लिंग एवं सामाजिक मानदंडों में अंतर को दर्शाती है।
यूएनएफपीए भारत की प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोज्नर ने कहा, ‘‘भारत ने बेहतर शिक्षा और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच के कारण प्रजनन दर को -1970 में प्रति महिला लगभग पांच बच्चों से लेकर आज लगभग दो बच्चों तक - कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इससे मातृ मृत्यु दर में बड़ी कमी आई है, जिसका मतलब है कि आज लाखों और माताएं जीवित हैं, बच्चों की परवरिश कर रही हैं और समुदायों का निर्माण कर रही हैं। फिर भी, राज्यों, जातियों और आय समूहों में गहरी असमानताएं बनी हुई हैं।’’
उन्होंने कहा कि वास्तविक जनसांख्यिकीय लाभांश तब आता है जब सभी को सूचित प्रजनन विकल्प बनाने की स्वतंत्रता और साधन मिलते हैं। वोज्नर ने कहा कि भारत के पास यह दिखाने का एक अनूठा अवसर है कि प्रजनन अधिकार और आर्थिक समृद्धि एक साथ कैसे आगे बढ़ सकते हैं।
भाषा आशीष