उच्चतम न्यायालय ने भूमि विवाद मामले में अपना आदेश वापस लिया
देवेंद्र सुरेश
- 14 May 2025, 04:36 PM
- Updated: 04:36 PM
नयी दिल्ली, 14 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उस भूमि विवाद मामले में अपना आदेश वापस ले लिया है, जिसमें यह बात सामने आई है कि अनुकूल फैसला एक फर्जी समझौते और एक ‘‘छद्म’’ प्रतिवादी के माध्यम से हासिल किया गया था।
न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री को इस मामले में जांच करने और तीन सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। पीठ ने कहा कि रिपोर्ट में इस बात की विस्तृत जानकारी हो कि वास्तव में हुआ क्या है।
साथ ही दोषियों को सजा दिलाने के लिए प्राथमिकी दर्ज करने की चेतावनी भी दी।
पीठ ने 13 दिसंबर, 2024 को याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच कथित समझौते के आधार पर मुजफ्फरपुर निचली अदालत और पटना उच्च न्यायालय के आदेशों को रद्द कर दिया।
हालांकि, यह पता चला कि कथित प्रतिवादी एक धोखेबाज था और असल प्रतिवादी हरीश जायसवाल को सुनवाई के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। जायसवाल बिहार के मुजफ्फरपुर के निवासी हैं।
जायसवाल को उच्चतम न्यायालय के आदेश का पता तब चला जब पांच महीने बाद उनके दामाद को न्यायालय की वेबसाइट पर इस आदेश के बारे में जानकारी मिली।
उन्होंने तुरंत अपने वकील ज्ञानंत सिंह के माध्यम से अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि यह आदेश धोखाधड़ी के जरिये और तथ्यों को छिपाकर प्राप्त किया गया है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता ने न केवल कानूनी और नैतिक मानदंडों का उल्लंघन किया है, बल्कि इस अदालत के साथ धोखाधड़ी भी की है और यदि इस त्रुटि को ठीक नहीं किया गया तो ऐसे दुर्भावनापूर्ण वादियों को अपनी धोखाधड़ी जारी रखने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।’’
मामले में मूल प्रतिवादी जायसवाल ने आरोप लगाया कि विशेष अनुमति याचिका को अनुमति देने वाले 13 दिसंबर, 2024 के आदेश के जरिये फर्जी समझौता और धोखाधड़ीपूर्ण कानूनी प्रतिनिधित्व के आधार पर पटना उच्च न्यायालय के 2016 के फैसले को प्रभावी ढंग से पलट दिया गया।
याचिका के अनुसार जायसवाल ने याचिकाकर्ता बिपिन बिहारी सिन्हा के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया और न ही मामले में उनकी ओर से पेश होने के लिए कोई वकील नियुक्त किया।
उन्होंने दावा किया कि हाल में जब उन्हें निजी स्रोतों से आदेश के बारे में पता चला, तब तक उन्हें उच्चतम न्यायालय की सुनवाई के बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं थी।
याचिका में कहा गया है, ‘‘पूरी कार्यवाही में हेरफेर किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि याचिकाकर्ता को पूरी तरह से अनभिज्ञ रखा जाए, जिससे उसे सुनवाई के अपने मौलिक अधिकार से वंचित किया जा सके।’’
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