बदले हालात में सहकारिता क्षेत्र के लिए नया कानून लाने की जरूरतः गडकरी
प्रेम अजय
- 12 May 2025, 03:30 PM
- Updated: 03:30 PM
(फाइल तस्वीर के साथ)
मुंबई, 12 मई (भाषा) केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सोमवार को उभरती आर्थिक स्थितियों के अनुरूप सहकारी प्रतिष्ठानों को नियंत्रित करने वाले कानूनों में संशोधन की जरूरत पर बल दिया।
गडकरी ने यहां एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा कि सहकारिता क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की वित्तीय स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को सुझाव दिया कि वह राज्य में उभरती आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए सहकारिता क्षेत्र के लिए एक नया कानून बनाए।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने विभिन्न क्षेत्रों के बीच आर्थिक असंतुलन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 22-24 प्रतिशत है जबकि सेवा क्षेत्र 52-54 प्रतिशत योगदान के साथ सर्वाधिक माल एवं सेवा कर (जीएसटी) जुटाता है।
उन्होंने कहा कि कृषि एवं ग्रामीण विकास क्षेत्र 60 प्रतिशत आबादी को रोजगार देने के बावजूद केवल 12 प्रतिशत ही योगदान देता है। गडकरी ने कहा, ‘‘ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, नौकरियों और सुविधाओं की कमी होने से लगभग 30 प्रतिशत लोग मजबूरी में शहरों की ओर पलायन कर गए हैं।’’
उन्होंने डेयरी क्षेत्र को ग्रामीण आबादी की आय बढ़ाने का मॉडल बताते हुए कहा, ‘‘सहकारी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों के उत्थान और उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार करने में बड़ी भूमिका निभाएगा।’’
इसके साथ ही गडकरी ने खाद्यान्न प्रसंस्करण में शामिल किसान-उत्पादक कंपनियों के सामने आने की भी प्रशंसा करते हुए कहा कि इससे मूल्यवर्धन होगा और ग्रामीण रोजगार पैदा होगा।
उन्होंने इस परिदृश्य में महाराष्ट्र के शीर्ष सहकारी बैंक ‘महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक’ से राज्य में सहकारिता आंदोलन के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का अध्ययन करने का आग्रह किया।
गडकरी ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र में सहकारिता आंदोलन के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का अध्ययन पूरे राज्य में तहसील और जिला स्तर पर किया जाना चाहिए। इसमें रोजगार, प्रति व्यक्ति आय और वृद्धि दर को मापा जाना चाहिए।’’
इसके साथ ही गडकरी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से सहकारिता क्षेत्र के लिए एक संशोधित कानून लेकर आने का अनुरोध करते हुए कहा कि सहकारिता अधिनियम और कंपनी अधिनियम के बीच एक सुनहरा संतुलन तलाशना होगा और उसके हिसाब से नया कानून बनाना होगा।
उन्होंने कृषि मूल्य निर्धारण पर सरकारी नियंत्रण की सीमाओं पर जोर देते हुए कहा, ‘‘वैश्विक अर्थव्यवस्था में सरकार अब कीमतें तय नहीं करती है। अगर हम बदलते समय के साथ खुद को नहीं ढालते हैं, तो हमारे पीछे छूट जाने का खतरा है।’’
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