महिलाएं अनुचित बाधाएं हटा रही हैं, पेशेवर क्षेत्रों में अतिक्रमण नहीं कर रहीं: न्यायमूर्ति नागरत्ना
देवेंद्र वैभव
- 18 Apr 2025, 10:43 PM
- Updated: 10:43 PM
नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने शुक्रवार को कहा कि महिलाएं ऐतिहासिक रूप से पुरुषों के वर्चस्व वाले पेशेवर क्षेत्रों में अतिक्रमण नहीं कर रही हैं, बल्कि वे उन अनुचित बाधाओं को दूर कर रही हैं, जिन्होंने उन्हें पीढ़ियों तक बाहर रखा।
शीर्ष अदालत की न्यायाधीश ने वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावनी द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘वुमैन लॉज फ्रॉम द वॉम्ब टू द टॉम्ब: राइट्स एंड रेमेडीज’ के विमोचन के मौके पर कहा, ‘‘आज जो हो रहा है वह महिलाओं द्वारा पुरुषों के पेशेवर क्षेत्रों में अतिक्रमण करना नहीं है, बल्कि उन बाधाओं को हटाना है, जिन्होंने पीढ़ियों से उन्हें अनुचित रूप से बाहर रखा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आज न्यायालय, विधानमंडल या ‘बोर्डरूम’ में कदम रखने वाली हर महिला अपनी सीमाओं का विस्तार नहीं कर रही है। वह इस देश की बौद्धिक और संस्थागत विरासत में अपना उचित हिस्सा पुनः प्राप्त कर रही है।’’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं की भूमिका में आमूलचूल परिवर्तन के बारे में चर्चा, विशेष रूप से उन व्यवसायों में, जिन पर ऐतिहासिक रूप से पुरुषों का वर्चस्व रहा है, उन्हें सशक्त बनाने और उनकी उचित भागीदारी के बारे में होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, ‘‘इन बदलावों का वर्णन करने के लिए हम जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, उन पर रुककर विचार करना जरूरी है।’’
शीर्ष अदालत की न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं इस बात पर प्रकाश डालना चाहूंगी कि महिलाएं अतिक्रमण नहीं कर रही हैं। वे किसी दूसरे के क्षेत्र पर कब्जा नहीं कर रही हैं या उसमें कदम नहीं रख रही हैं। वे अपने आप में नागरिक, योगदानकर्ता, विचारक और नेता हैं।’’
उन्होंने कहा कि एक मजबूत भारतीय परिवार और समाज अंततः एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण करेगा, लेकिन ऐसा होने के लिए परिवार में महिलाओं को सम्मानित करना होगा और उन्हें सशक्त बनाना होगा।
उन्होंने कहा कि भारतीय कानून आज महिलाओं को जीवन के हर स्तर पर सुरक्षा और अधिकार प्रदान करता है।
पुस्तक की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें बालिका की जन्म की संभावना से जुड़ी समस्याओं और बुराइयों को विस्तार से बताया गया है तथा इसमें वरिष्ठ नागरिक बनने तक महिलाओं के अधिकारों पर कानूनी टिप्पणी भी शामिल की गई हैं।
भाषा देवेंद्र