भारत की आर्थिक वृद्धि 6.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद, तेज वृद्धि हासिल करने वाला देश बना रहेगा: संरा
रमण अजय
- 16 Apr 2025, 08:36 PM
- Updated: 08:36 PM
(योषिता सिंह)
संयुक्त राष्ट्र, 16 अप्रैल (भाषा) वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता के बावजूद लगातार मजबूत सार्वजनिक व्यय और जारी उदार मौद्रिक नीतिगत रुख के साथ भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2025 में 6.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। इसके साथ यह सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति को बनाए रखेगा। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है।
दूसरी तरफ, मौजूदा व्यापार तनाव बढ़ने और अनिश्चितता के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है।
संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास (अंकटाड) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2025 में वैश्विक वृद्धि दर धीमी होकर 2.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जिससे विश्व अर्थव्यवस्था मंदी के रास्ते पर जाने की आशंका है।
‘व्यापार और विकास दूरदर्शिता 2025 - दबाव, अनिश्चितता वैश्विक आर्थिक संभावनाओं को नया आकार देती’ शीर्षक से बुधवार को जारी रिपोर्ट में उन जोखिमों का जिक्र किया गया है जो वैश्विक परिदृश्य को पटरी से उतार रहे हैं। इसमें व्यापार नीति के स्तर पर झटके, वित्तीय अस्थिरता और अनिश्चितता का बढ़ना शामिल है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2025 में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है, जो 2024 की 6.9 प्रतिशत वृद्धि से थोड़ा कम है। लेकिन फिर भी यह सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखेगा।
अंकटाड का अनुमान है कि भारत 2025 में लगातार मजबूत सार्वजनिक खर्च और जारी उदार मौद्रिक नीति रुख के दम पर 6.5 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर हासिल करेगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने फरवरी में पांच साल में पहली बार नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की कटौती की है इससे घरेलू खपत के साथ-साथ निजी निवेश योजनाओं को बढ़ावा मिलेगा।
रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया क्षेत्र की वृद्धि दर 2025 में 5.6 प्रतिशत रहेगी। इसका कारण महंगाई में कमी से क्षेत्र के ज्यादातर हिस्सों में नरम मौद्रिक नीति रुख अपनाया जा रहा है।
अंकटाड ने कहा, ‘‘हालांकि, खाद्य मूल्य में उतार-चढ़ाव को लेकर जोखिम बना रहेगा और कर्ज की जटिल स्थिति बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी अर्थव्यवस्थाओं पर बोझ बढ़ा सकती है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व अर्थव्यवस्था मंदी के रास्ते पर है। इसका कारण व्यापार के स्तर पर बढ़ता तनाव और अनिश्चितता है। बढ़ते व्यापार तनाव वैश्विक व्यापार को प्रभावित कर रहे हैं। हाल में किये गये शुल्क उपाय आपूर्ति व्यवस्था को बाधित कर रहे हैं और पूर्वानुमान को कमजोर कर रहे हैं।
अंकटाड के अनुसार, ‘‘व्यापार नीति के मोर्चे पर अनिश्चितता ऐतिहासिक रूप से उच्चस्तर पर है और इसका असर निवेश निर्णयों में देरी और कम नियुक्तियों के रूप में देखने को मिल रहा है।’’
नरमी का असर सभी देशों पर पड़ेगा, लेकिन अंकटाड विकासशील देशों और खास तौर पर सबसे नाजुक अर्थव्यवस्थाओं के बारे में चिंतित है।
रिपोर्ट के अनुसार, कई कम आय वाले देशों को बिगड़ती बाह्य वित्तीय स्थितियों, अस्थिर कर्ज और कमजोर घरेलू वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है।
अंकटाड ने मौजूदा व्यापार और आर्थिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने, मजबूत क्षेत्रीय और वैश्विक नीति समन्वय के साथ-साथ संवाद और बातचीत का आग्रह किया है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘विश्वास बहाल करने और वृद्धि को पटरी पर रखने के लिए समन्वित कार्रवाई की जरूरत है।’’
भाषा रमण