वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय में 15 अप्रैल को सुनवाई संभव
सुभाष पवनेश
- 08 Apr 2025, 09:02 PM
- Updated: 09:02 PM
नयी दिल्ली, आठ अप्रैल (भाषा) वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय में 15 अप्रैल को सुनवाई होने की संभावना है।
हालांकि, केंद्र ने मंगलवार को शीर्ष अदालत में एक ‘कैविएट’ दायर की और इन याचिकाओं पर कोई आदेश पारित किए जाने से पहले सुनवाई किये जाने का अनुरोध किया।
‘कैविएट’ किसी पक्षकार द्वारा उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में यह सुनिश्चित करने के लिए दायर की जाती है कि इसे सुने बिना कोई आदेश पारित नहीं किया जाए।
इस बीच, एक सरकारी अधिसूचना में कहा गया है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025, जिसे पिछले सप्ताह संसद द्वारा पारित किया गया था, मंगलवार से लागू हो गया।
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, ‘‘वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की धारा 1 की उप-धारा (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार ने आठ अप्रैल 2025 से उक्त अधिनियम के प्रावधान लागू किए हैं।’’
अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए राजनीतिक नेताओं और ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ (एआईएमपीएलबी) तथा जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिकाओं सहित 10 से अधिक याचिकाएं शीर्ष अदालत में दायर की गई हैं।
इस घटनाक्रम से अवगत वकीलों ने बताया कि ये याचिकाएं 15 अप्रैल को एक पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है, हालांकि अभी यह शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर प्रदर्शित नहीं हो रही है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सात अप्रैल को जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर विचार करने का आश्वासन दिया था।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दे दी थी, जिसे पिछले हफ्ते संसद के दोनों सदनों में लंबी चर्चा के बाद पारित किया गया था।
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद, ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नेता असदुद्दीन ओवैसी, राजद सांसद मनोज झा और फैयाज अहमद, आम आदमी पार्टी (आप) विधायक अमानतुल्लाह खान ने भी अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है।
द्रमुक ने अपने उप महासचिव ए राजा के माध्यम से शीर्ष अदालत का रुख किया और एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘‘व्यापक विरोध के बावजूद, वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 को केंद्र सरकार ने जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) के सदस्यों और अन्य हितधारकों द्वारा जताई गई आपत्तियों पर उपयुक्त विचार किए बिना पारित कर दिया।’’
पार्टी ने कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को तत्काल लागू करने से तमिलनाडु के लगभग 50 लाख मुसलमानों और देश के अन्य हिस्सों के 20 करोड़ मुसलमानों के अधिकारों का हनन होगा।
एआईएमपीएलबी ने 6 अप्रैल को शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी।
एक प्रेस वक्तव्य में एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा कि याचिका में, संसद द्वारा पारित संशोधनों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा गया है कि ये ‘‘मनमाने और भेदभावपूर्ण’’ हैं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी न्यायालय में एक याचिका दायर कर दावा किया है कि यह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने की एक ‘‘खतरनाक साजिश’’ है।
अपनी याचिका में जमीयत ने कहा कि यह कानून ‘‘देश के संविधान पर सीधा हमला है, जो (संविधान) न केवल अपने नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है, बल्कि उन्हें पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता भी प्रदान करता है।’’
केरल में सुन्नी मुस्लिम विद्वानों और मौलवियों के धार्मिक संगठन समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने शीर्ष अदालत में अलग से दायर अपनी याचिका में दावा किया है कि यह अधिनियम धार्मिक विषयों में ‘‘स्पष्ट हस्तक्षेप’’ है।
एक अलग याचिका में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि विधेयक ने वक्फ से वे विभिन्न संरक्षण छीन लिए हैं, जो वक्फ और हिंदुओं, जैन और सिख धार्मिक एवं धर्मार्थ संस्थाओं को समान रूप से दिए गए हैं।
गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ ने भी अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है।
भाषा सुभाष