विधेयकों पर राज्यपाल की सहमति को लेकर न्यायालय का फैसला ‘ऐतिहासिक’ : स्टालिन
राजकुमार प्रशांत
- 08 Apr 2025, 08:13 PM
- Updated: 08:13 PM
(तस्वीर के साथ)
चेन्नई, आठ अप्रैल (भाषा) तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने विधानसभा से पारित विधेयकों पर राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा स्वीकृति रोककर रखने के मुद्दे पर मंगलवार को उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया तथा इसे ‘ऐतिहासिक’ एवं सभी राज्य सरकारों की जीत बताया।
उच्चतम न्यायालय के आदेश के तुरंत बाद स्टालिन ने विधानसभा में कहा कि शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी है कि विधेयकों को अब राज्यपाल की ओर से स्वीकृत माना जाएगा।
उच्चतम न्यायालय के ‘ऐतिहासिक’ फैसले की सराहना करते हुए उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा,‘‘तमिलनाडु की कानूनी लड़ाई ने एक बार फिर पूरे देश को रोशनी दिखायी है।”
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ 10 विधेयकों को रोककर रखने का कार्य अवैध और कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण है।
उदयनिधि ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा,‘‘महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायालय ने यह भी माना है कि राज्यपाल अनिश्चित काल तक मंजूरी रोक कर नहीं रख सकते हैं और उसने एक समय सीमा तय की है - एक से तीन महीने तक - जिसके भीतर राज्यपालों को विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करनी चाहिए।’’
स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने पोस्ट में कहा, ‘‘हमारे माननीय मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने एक बार फिर राज्य के अधिकारों की रक्षा करने और देश पर एकल ढांचा थोपने के प्रयासों का विरोध करने की अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता में महत्वपूर्ण जीत दर्ज की है।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता और सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के राज्यसभा सदस्य पी. विल्सन ने दावा किया कि अब 10 विधेयकों के प्रभावी होने के साथ ही राज्य सरकार द्वारा नामित व्यक्ति राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालय का कुलाधिपति बनेगा।
विल्सन ने यहां सचिवालय में संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह एक ऐतिहासिक फैसला है। उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि 10 विधेयक प्रभावी होंगे। इसके माध्यम से मुख्यमंत्री ने सभी राज्यों की स्वायत्तता सुनिश्चित की है।’’
विल्सन ने इससे पहले स्टालिन से मुलाकात की थी।
नवंबर 2023 में, तमिलनाडु विधानसभा ने राज्यपाल रवि द्वारा लौटाए गए दस विधेयकों को फिर पारित किया था, जिसमें चेन्नई के पास भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए एक अलग सिद्ध चिकित्सा विश्वविद्यालय की स्थापना का विधेयक भी शामिल था और जिसके कुलाधिपति मुख्यमंत्री होंगे।
द्रमुक अध्यक्ष स्टालिन ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, ‘‘हम उच्चतम न्यायालय के आज के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत करते हैं और धन्यवाद देते हैं जिसमें राज्य विधानमंडलों के विधायी अधिकारों की पुष्टि की गई है तथा विपक्षी दल शासित राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत राज्यपालों की ओर से प्रगतिशील विधायी सुधारों को रोकने की प्रवृत्ति पर विराम लगाया गया है।’’
इससे पहले न्यायालय ने रवि को फटकार लगाते हुए कहा था कि राष्ट्रपति के विचारार्थ 10 विधेयकों को सुरक्षित रखना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन, गैरकानूनी और मनमाना है।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास कोई विवेकाधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर अनिवार्य रूप से कार्य करना होता है।
विधानसभा में मुख्यमंत्री ने कहा,‘‘मैं इस सदन को खुशखबरी से अवगत कराना चाहूंगा। हमारी तमिलनाडु सरकार ने ऐतिहासिक फैसला हासिल किया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राज्यपाल द्वारा विधेयक को रोकना अवैध है।’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि विधानसभा द्वारा पारित किए जाने के बाद राज्यपाल के पास भेजे गए कई विधेयकों को रवि ने लौटा दिया था। उन्होंने कहा कि उन्हें फिर से पारित किया गया और फिर से उनके पास भेजा गया। स्टालिन ने कहा, ‘‘संविधान के अनुसार राज्यपाल को दूसरी बार पारित विधेयक को स्वीकृति देना अनिवार्य है, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया...वह देरी भी कर रहे थे..।’’
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय गई थी।
स्टालिन ने कहा, ‘‘यह फैसला केवल तमिलनाडु की ही नहीं, बल्कि भारत की सभी राज्य सरकारों की जीत है।’’
विपक्षी अखिल भारतीय द्रविड़ मुनेत्र कषगम और भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर अन्य दलों में इस फैसले का स्वागत किया है। वैसे इस फैसले का स्वागत करने वालों में भाजपा का सहयोगी दल पीएमके भी शामिल है।
तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक सरकार और राज्यपाल के बीच कई मुद्दों पर गतिरोध रहा है। इससे पहले उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा था कि राज्यपाल सहमति को रोककर ‘पूर्ण वीटो’ या ‘आंशिक वीटो’ (पॉकेट वीटो) की अवधारणा को नहीं अपना सकते।
भाषा राजकुमार