बंगाल के राज्यपाल ने 17 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के लिए ममता की पसंद पर आपत्ति जताई
नेत्रपाल रंजन
- 07 Apr 2025, 04:52 PM
- Updated: 04:52 PM
कोलकाता, सात अप्रैल (भाषा) पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी वी आनंद बोस ने उच्चतम न्यायालय को पत्र लिखकर राज्य के 17 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सिफारिश पर आपत्ति जताई है।
राजभवन ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि राज्य सरकार द्वारा संचालित सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति बोस ने कुलपति पद के लिए उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि की गहन समीक्षा के बाद उनकी सूची पर अपने विरोध से उच्चतम न्यायालय को अवगत करा दिया है।
इसने कहा, ‘‘माननीय राज्यपाल एवं कुलाधिपति ने 19 विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त किए हैं। शेष 17 विश्वविद्यालयों के मामले में, उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि और पिछले अनुभव की समीक्षा और क्षेत्र में विश्वसनीय स्रोतों से रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद, माननीय राज्यपाल एवं कुलाधिपति ने मुख्यमंत्री द्वारा पसंद किए गए उम्मीदवारों के बारे में एक सीलबंद लिफाफे में वैध आपत्तियां उठाई हैं, जिन्हें उच्चतम न्यायालय में विचार के लिए रखा गया है।’’
राजभवन ने यह भी कहा कि शीर्ष अदालत दो अप्रैल को ‘‘विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 17403/2023; पश्चिम बंगाल राज्य बनाम डॉ. सनत कुमार घोष एवं अन्य’’ के संबंध में कार्यवाही के दौरान विशेष घटनाक्रम से अनभिज्ञ थी।
इसने कहा, ‘‘पूछताछ किए जाने पर कुलाधिपति के वकील ने माननीय न्यायालय को बताया कि 36 में से 19 नामों को पहले ही मंजूरी दे दी गई है। चूंकि मामले को समय से पहले लिया गया था, इसलिए भारत के अटॉर्नी जनरल न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सके, अन्यथा 17 विश्वविद्यालयों के मामले में माननीय कुलाधिपति की टिप्पणियों वाले ‘सीलबंद लिफाफे’ माननीय न्यायालय को सौंपे जा सकते थे।’’
राजभवन ने कहा, ‘‘इस प्रकार, माननीय कुलाधिपति की टिप्पणियों वाले सीलबंद लिफाफे प्रस्तुत न किए जाने की स्थिति में, माननीय न्यायालय ने वकील को सुनने के बाद अन्य बातों के साथ-साथ यह इच्छा व्यक्त की कि महामहिम अगले दो सप्ताह के भीतर शेष 17 मामलों को निपटाने में सक्षम होंगे, ऐसा न करने पर न्यायालय को सुनवाई की अगली तारीख पर मामले पर निर्णय लेना होगा।’’
इसने यह भी कहा कि ‘‘कार्यवाही किसी भी तरह से माननीय कुलाधिपति को दोषी नहीं ठहराती या विश्वविद्यालयों के लिए अनुशंसित नामों से भिन्न नाम रखने के उनके अधिकारों को बाधित नहीं करती या कोई ‘अल्टीमेटम’ नहीं देती।’’
राजभवन ने कहा, ‘‘इसके विपरीत उच्चतम न्यायालय ने माननीय कुलाधिपति को उचित निर्णय लेने का विवेकाधिकार दिया है।’’
भाषा नेत्रपाल