उत्तराखंड: पर्यावरणविद ने मुख्यमंत्री धामी से नंदाजात यात्रा के लिए समन्वित कार्ययोजना बनाने को कहा
दीप्ति जितेंद्र
- 06 Apr 2025, 04:17 PM
- Updated: 04:17 PM
देहरादून, छह अप्रैल (भाषा) उत्तराखंड में पर्यावरण एवं विकास केंद्र ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से अगले वर्ष होने वाली विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक नंदा राजजात यात्रा को आपदा व पर्यावरण की द्रष्टि से अनुकूल बनाने के लिए एक समन्वित कार्ययोजना बनाकर काम करने को कहा है।
रेमन मैग्सायसाय पुरस्कार विजेता और विख्यात पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने पर्यावरण एवं विकास केंद्र की स्थापना की थी।
गोपेश्वर स्थित केंद्र के प्रबंध न्यासी ओम प्रकाश भट्ट ने चमोली के जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री धामी को भेजे एक पत्र में कहा कि जिले के गैरसैंण क्षेत्र के कांसुवा गांव से शुरू होने वाली यह यात्रा नौटी आदि गांवों से गुजरती हुई 22 दिनों में पूरी होती है और इसके अंतिम चार पड़ाव बैदनी-गैरोलीपातल, पातर-नचौनिया, शिलासमुद्र और चदनियाघाट, बुग्यालों (उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित घास के मैदान) और निर्जन क्षेत्रों में स्थित हैं।
यह यात्रा 12 वर्ष में एक बार होती है।
भट्ट ने वर्ष 2014 में हुई पिछली राजजात यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि गढ़वाल और कुमांउ क्षेत्र के गांव-गांव से देवडोलियों के साथ परंपरागत रूप से शामिल होने वाले स्थानीय लोगों समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी सम्मिलित हुए थे।
उन्होंने कहा, “यात्रा के अंतिम चार पड़ावों में श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंच गयी थी। बैदनी-बुग्याल के एक छोटे से इलाके में एक ही दिन में 60 हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंच गए थे, जिससे राज्य सरकार की ओर से की गयी व्यवस्था पूरी तरह से डगमगा गयी थी।”
भट्ट ने कहा कि भारी भीड़ से बैदनी का सुंदर बुग्याल और वहां उगी वनस्पतियां नष्ट हो गईं और चारों ओर प्लास्टिक व कचरे के ढेर लग गए।
उन्होंने कहा कि जानकारी के अभाव में यात्रा में शामिल हुए तीर्थयात्रियों द्वारा संकटापन्न श्रेणी में शामिल ब्रहमकमल समेत उच्च हिमालयी क्षेत्र में पायी जाने वाली जड़ी-बूटियों का दोहन किया गया।
पर्यावरणविद ने कहा, “उच्च हिमालय के ये पड़ाव प्राकृतिक रूप से अत्यंत संवेदनशील होने के साथ ही दुर्लभ वनस्पति और वन्यजीवन के साथ-साथ आपदा की दृष्टि से भी जोखिमभरे हैं। नंदादेवी राजजात की यह विश्वविख्यात यात्रा आपदा की दृष्टि से सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल बने, इसके लिए समय रहते समन्वित कार्ययोजना बनाकर उसके अनुसार कार्य किया जाना चाहिए।”
भट्ट ने कार्ययोजना के तहत, अंतिम चार पड़ावों की भारवहन क्षमता का वैज्ञानिक आधार पर आंकलन करने,
परंपरागत समूहों को छोड़कर इस यात्रा में शामिल होने वाले अन्य श्रद्धालुओं के लिए चारधाम यात्रा की तर्ज पर पंजीकरण की व्यवस्था करने, भारवहन क्षमता से अधिक पंजीकरण प्राप्त होने पर यात्रा की अवधि विस्तारित करने, यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए इन क्षेत्रों में मौजूद वन्यजीवों व वनस्पतियों के संरक्षण के लिए दिशानिर्देश जारी करने जैसे कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं।
भाषा दीप्ति