भारतीय चावल पर अमेरिकी शुल्क वृद्धि एक अस्थायी बाधाः निर्यातक
राजेश राजेश प्रेम
- 04 Apr 2025, 07:41 PM
- Updated: 07:41 PM
कोलकाता, चार अप्रैल (भाषा) भारतीय चावल निर्यातकों ने 26 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने के अमेरिकी फैसले के बाद ‘देखो और इंतजार करो’ का रुख अपना लिया है जबकि उद्योग के दिग्गजों का कहना है कि भारत की अंतर्निहित प्रतिस्पर्धात्मकता के कारण इसका दीर्घकालिक प्रभाव सीमित हो सकता है।
भारतीय चावल निर्यातक संघ (आईआरईएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेम गर्ग ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हालांकि अल्पकालिक समय में मूल्य में उतार-चढ़ाव हो सकता है लेकिन अगले दो-तीन महीनों में बाजार में स्थिरता आने की उम्मीद है। सीमा शुल्क एक अस्थायी बाधा है, न कि अवरोध। रणनीतिक योजना और लचीलेपन के साथ हम न केवल बचाव कर सकते हैं बल्कि अमेरिकी बाजार में विस्तार भी कर सकते हैं।’’
हालांकि गर्ग ने कहा कि भारत से आयात किए जाने वाले उत्पादों पर अमेरिका में 26 प्रतिशत शुल्क लगाया जाना महत्वपूर्ण है, लेकिन इससे निर्यातकों में घबराहट नहीं होनी चाहिए।
गर्ग ने कहा कि अमेरिका बासमती चावल के लिए भारत का सबसे बड़ा बाजार नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने 52.4 लाख टन में से 2.34 लाख टन बासमती चावल ही अमेरिका को निर्यात किया। अप्रैल-नवंबर 2024 के दौरान भारत के कुल 42 लाख टन बासमती निर्यात में से 2.04 लाख टन अमेरिका को निर्यात हुआ था। चावल निर्यात के लिए पश्चिम एशिया भारत का प्राथमिक गंतव्य बना हुआ है।’’
निर्यातकों ने कहा कि शुल्क वृद्धि के बावजूद भारत को प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में मूल्य निर्धारण के संदर्भ में बढ़त हासिल है।
अमेरिका ने अन्य प्रमुख चावल निर्यातक देशों पर अधिक शुल्क लगाया है। यह शुल्क चीन पर 34 प्रतिशत, वियतनाम पर 46 प्रतिशत, पाकिस्तान पर 30 प्रतिशत और थाईलैंड पर 37 प्रतिशत है।
गर्ग ने कहा, ‘‘अन्य देशों की तुलना में कम टैरिफ के कारण भारत अपना प्रतिस्पर्धी लाभ बनाए रखेगा।’’
कोलकाता स्थित चावल निर्यातक फर्म राइसविला के निदेशक सूरज अग्रवाल ने कहा कि अमेरिकी शुल्क वृद्धि से भारत की दीर्घकालिक संभावनाओं में कोई बदलाव नहीं आएगा।
उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय बासमती ने अमेरिकी उपभोक्ताओं के साथ भरोसा कायम किया है। अनुबंधों और मूल्य निर्धारण रणनीतियों में कुछ पुनर्बातचीत हो सकती है, लेकिन लगातार स्थिर गुणवत्ता के कारण मांग बनी रहेगी।’’
हालांकि निर्यातकों को निकट भविष्य में कुछ चुनौतियां पैदा होने की आशंका भी सता रही है।
एक व्यवसायी ने कहा, ‘‘कीमतों में बदलाव के कारण मौजूदा अनुबंधों पर नए सिरे से बातचीत की जरूरत पड़ सकती है। बेहतर ब्रांडिंग या पैकेजिंग के माध्यम से उच्च खुदरा कीमतों को उचित ठहराने का दबाव भी हो सकता है।’’
उन्होंने कहा कि अमेरिकी आयातक लंबी ऋण अवधि या विलंबित निर्यात की मांग भी कर सकते हैं जो भारतीय निर्यातकों के नकदी प्रवाह पर असर डाल सकता है।
भाषा राजेश राजेश