अंततः बाधाओं को दूर कर रहे हैं जीवाणु्-आधारित कैंसर उपचार
(द कन्वरसेशन) देवेंद्र आशीष रंजन
- 19 Mar 2025, 05:31 PM
- Updated: 05:31 PM
(जस्टिन स्टेबिंग, एंग्लिया रस्किन विश्वविद्यालय)
कैंब्रिज (ब्रिटेन), 19 मार्च (द कन्वरसेशन) एक ऐसी दुनिया की कल्पना करें जहां जीवाणु (बैक्टीरिया), जो आमतौर पर बीमारी के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं, कैंसर के खिलाफ शक्तिशाली हथियार बन जाएं। कुछ वैज्ञानिक इस संबंध में काम कर रहे हैं।
वे ऐसा करने के तंत्रों को जानने की कोशिश कर रहे हैं, कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने और नष्ट करने के लिए अनुवांशिक रूप से तैयार किये गये जीवाणु का इस्तेमाल कर रहे हैं।
कैंसर से लड़ने के लिए जीवाणु का इस्तेमाल 1860 के दशक में शुरू हुआ था, जब विलियम बी कॉली ने स्ट्रेप्टोकोकी नामक जीवाणु का एक टीका युवा रोगी में लगाया था, जिसका अस्थि कैंसर का ऑपरेशन नहीं हो सकता था। कॉली को रोग-प्रतिरक्षा चिकित्सा (इम्यूनोथेरेपी) का जनक कहा जाता है।
रोग-प्रतिरक्षा चिकित्सा एक ऐसा उपचार है जिसमें शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली का इस्तेमाल करके बीमारियों से लड़ा जाता है।
अगले कुछ दशकों में, न्यूयॉर्क के मेमोरियल अस्पताल में अस्थि ट्यूमर सेवा विभाग के प्रमुख के रूप में, कॉली ने 1,000 से अधिक कैंसर रोगियों को बैक्टीरिया या बैक्टीरिया उत्पादों का इंजेक्शन लगाया। इन उत्पादों को कोली के विषाक्त पदार्थों के रूप में जाना जाता है।
जीवाणु-आधारित कैंसर उपचार में प्रगति धीमी रही है। विकिरण चिकित्सा और कीमोथेरेपी के विकास ने कॉली के काम को पीछे छोड़ दिया और उनके दृष्टिकोण को चिकित्सा समुदाय से संदेह का सामना करना पड़ा।
आधुनिक प्रतिरक्षा विज्ञान ने हालांकि कॉली के कई सिद्धांतों को सही साबित किया है तथा प्रदर्शित किया है कि कुछ कैंसर वास्तव में उन्नत प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं, एक ऐसा दृष्टिकोण जिसे हम अक्सर रोगियों के इलाज के लिए अपना सकते हैं।
जीवाणु आधारित कैंसर चिकित्सा कैसे काम करती है:
ये उपचार ट्यूमर के अंदर कुछ जीवाणु के बढ़ने की अनोखी क्षमता का लाभ उठाते हैं। कैंसर के आसपास के क्षेत्र में कम ऑक्सीजन, अम्लीयता और मृत ऊतक कुछ जीवाणु के पनपने के लिए आदर्श स्थान बनाते हैं।
एक बार वहां पहुंचने पर, जीवाणु, सैद्धांतिक रूप में, ट्यूमर कोशिकाओं को सीधे मार सकते हैं या कैंसर के खिलाफ शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सक्रिय कर सकते हैं। हालांकि, कई कठिनाइयों ने इस दृष्टिकोण को व्यापक रूप से अपनाने में बाधा उत्पन्न की है।
सुरक्षा संबंधी चिंताएं महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि रोगी के शरीर में जीवित जीवाणु को प्रवेश कराने से नुकसान हो सकता है। शोधकर्ताओं को जीवाणु के प्रकारों को सावधानीपूर्वक कमजोर करना पड़ा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे स्वस्थ ऊतकों को नुकसान न पहुंचाएं।
इसके अलावा ट्यूमर के भीतर जीवाणु के व्यवहार को नियंत्रित करना और उन्हें शरीर के अन्य भागों में फैलने से रोकना कठिन रहा है।
जीवाणु हमारे अंदर रहते हैं, जिन्हें माइक्रोबायोम के रूप में जाना जाता है।
इन चुनौतियों के बावजूद, सिंथेटिक जीवविज्ञान और आनुवंशिक इंजीनियरिंग जैसे वैज्ञानिक क्षेत्रों में हाल की प्रगति ने इस क्षेत्र में नई जान फूंक दी है।
सिंथेटिक जीवविज्ञान, जीवों को नए गुण देने के लिए उनकी जीन में बदलाव करने की तकनीक है जबकि आनुवंशिक इंजीनियरिंग, किसी जीव के डीएनए में बदलाव करने की प्रक्रिया है।
उभरते शोध से पता चलता है कि जीवाणु-आधारित चिकित्सा कुछ प्रकार के कैंसर के लिए विशेष रूप से आशाजनक हो सकती है।
हाल के अध्ययनों से उत्साहजनक परिणाम सामने आये हैं। हालांकि अभी चुनौतियां बनी हुई हैं, फिर भी इस क्षेत्र में प्रगति से अधिक प्रभावी और लक्षित उपचारों की उम्मीद जगी है, जिससे कैंसर रोगियों के इलाज में सकारात्मक परिणामों में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।
(द कन्वरसेशन) देवेंद्र आशीष