हिमाचल की दृष्टिहीन पर्वतारोही अंगमो ने ऊंची चोटियों पर नजर रखकर सफलताओं के पहाड़ चढ़े
सिम्मी पवनेश
- 08 Mar 2025, 09:29 PM
- Updated: 09:29 PM
(भानु पी लाहुमी)
शिमला, आठ मार्च (भाषा) किन्नौर जिले के चांगो गांव के रहने वाली आदिवासी छोंजिन अंगमो ने भले ही आठ साल की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी, लेकिन इससे उनके हौसले कमजोर नहीं हुए और उन्होंने अपनी नजरें साहसिक कामों, कड़ी मेहनत से हासिल की गई उपलब्धियों एवं रोमांच से भरी जिंदगी पर टिकाए रखी।
अंगमो (28) ने अपनी आंखों की रोशनी चले जाने के बावजूद ऐसी सफलताएं हासिल कीं जो लोगों के लिए मिसाल हैं।
‘ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम’ के तहत 2021 में दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र ‘सियाचिन ग्लेशियर’ पर चढ़ने वाले दिव्यांगजन के दल में शामिल अंगमो एकमात्र महिला थीं।
उन्होंने 2018 में प्रतिकूल तापमान का सामना करते हुए 10 दिन में मनाली से खारदुंग ला (लद्दाख) तक साइकिल चलाई जो 18,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित दुनिया की सबसे ऊंची ऐसी सड़क है जहां वाहन चल सकते हैं। उन्होंने 2019 में केवल छह दिन में नीलगिरी के माध्यम से तीन राज्यों में साइकिल से यात्रा पूरा की।
अंगमो ने पिछले साल जुलाई में मनाली से कल्पा तक स्पीति घाटी और किन्नौर को साइकिल से पार करते हुए सात दिवसीय यात्रा की।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मेरी दृष्टिहीनता मेरी कमजोरी नहीं बल्कि मेरी ताकत है और मेरा सबसे बड़ा सपना है-कुछ सबसे ऊंचे पर्वतों पर चढ़ना और एक ऐसा भविष्य देखना जहां किसी को उसकी कमी से नहीं बल्कि उसकी उपलब्धियों से परिभाषित किया जाता है।’’
अंगमो ने कहा, ‘‘मेरी कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यह अभी शुरू हुई है।’’
अंगमो ने मूक-बधिक अमेरिकी लेखिका हेलेन केलर को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘दृष्टिहीन होने से भी बदतर बात यह है कि सिर्फ दृष्टि है, कोई दृष्टिकोण नहीं।’’
लद्दाख के महाबोधि आवासीय विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद अंगमो ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई की। वह वर्तमान में दिल्ली में ‘यूनियन बैंक ऑफ इंडिया’ में ग्राहक सेवा सहयोगी के रूप में काम कर रही हैं।
उन्होंने राज्य स्तर पर तैराकी में स्वर्ण पदक जीता और राष्ट्रीय स्तर की जूडो प्रतियोगिता में भाग लिया। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की मैराथन स्पर्धाओं (100 मीटर और 400 मीटर) में दो कांस्य पदक हासिल किए।
अंगमो ने 10 किलोमीटर की दिल्ली मैराथन में तीन बार भाग लिया, साथ ही ‘पिंक मैराथन’ और ‘दिल्ली वेदांत मैराथन’ में भी हिस्सा लिया। उन्होंने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर की फुटबॉल प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया।
पहाड़ों के प्रति जुनूनी अंगमो ने 2016 में अटल बिहारी वाजपेयी संस्थान से बुनियादी पर्वतारोहण का पाठ्यक्रम पूरा किया और उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षु’ चुना गया।
इसके बाद अंगमो ने बिना समय गंवाए पर्वतों पर चढ़ना शुरू कर दिया। वह अक्टूबर 2024 में 5,364 मीटर की ऊंचाई पर ‘एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक’ पूरा करने वाली पहली नेत्रहीन भारतीय महिला बनीं। उन्होंने सितंबर 2022 में स्पीति घाटी में माउंट कनामो पीक (19,635 फीट) पर चढ़ाई की और पिछले साल लेह-लद्दाख में माउंट कांग यात्से 2 (20,459 फीट) को फतेह किया।
अंगमो दिव्यांगजन के उस दल की सदस्य थीं, जिसने आठ सितंबर, 2024 को लद्दाख में 6,000 मीटर की एक अनाम चोटी की चढ़ाई की।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के दौरान उनकी प्रशंसा की थी।
अंगमो को पिछले साल राष्ट्रपति से दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिए ‘सर्वश्रेष्ठ दिव्यांगजन’ राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।
उन्हें 2022 में ‘एनएबी मधु शर्मा यंग अचीवर अवार्ड’ मिला।
अंगमो ने कहा, ‘‘पहाड़ की चोटियों पर चढ़ना बचपन से ही मेरा सपना रहा है, लेकिन आर्थिक तंगी एक बड़ी चुनौती थी और अब मैं उन सभी पर्वतों पर चढ़ने का प्रयास करूंगी, जिन पर चढ़ना शेष रह गया है।’’
भाषा सिम्मी