अगर पार्टियां पंथ को देश से ऊपर रखती हैं तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी: धनखड़
ब्रजेन्द्र मनीषा
- 26 Nov 2024, 01:24 PM
- Updated: 01:24 PM
नयी दिल्ली, 26 नवंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को संविधान निर्माता बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को याद करते हुए कहा कि अगर पार्टियां पंथ को देश से ऊपर रखती हैं तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी।
संविधान को अंगीकार किए जाने की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर साल भर चलने वाले समारोहों की शुरुआत के लिए पुराने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने आगाह किया कि रणनीति के तहत व्यवधान पैदा करना लोकतंत्र के लिए खतरा है।
धनखड़ ने कहा, ‘‘यह समय रचनात्मक संवाद, बहस और सार्थक चर्चा के माध्यम से हमारे लोकतांत्रिक मंदिरों की पवित्रता को बहाल करने का समय है ताकि हमारे लोगों की प्रभावी ढंग से सेवा की जा सके।’’
इस बात का उल्लेख करते हुए कि संविधान ने निपुणता से लोकतंत्र के तीन स्तंभों -- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका-- को स्थापित किया और प्रत्येक की एक परिभाषित भूमिका है, धनखड़ ने कहा, ‘‘लोकतंत्र का सबसे अच्छा पोषण तब होता है जब उसके संवैधानिक संस्थान अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों का पालन करते हुए समन्वय, तालमेल और एकजुटता से काम करें।’’
उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य के इन अंगों के कामकाज में, क्षेत्र विशिष्टता भारत को समृद्धि और समानता की अभूतपूर्व ऊंचाइयों की ओर ले जाने में इष्टतम योगदान देने का सबसे अच्छा साधन है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा संविधान मौलिक अधिकारों का आश्वासन देता है और मौलिक कर्तव्यों को निर्धारित करता है। ये सूचित नागरिकता को परिभाषित करते हैं, जो डॉ. आंबेडकर की इस चेतावनी को दर्शाते हैं कि बाहरी खतरों से ज्यादा आंतरिक संघर्ष लोकतंत्र को खतरे में डालते हैं।’’
धनखड़ ने कहा कि यह हमारे लिए अपने मौलिक कर्तव्यों - राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा, एकता को बढ़ावा देने, राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने और हमारे पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध होने का समय है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें हमेशा अपने देश को पहले रखना चाहिए। हमें पहले की तरह सतर्क रहने की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा कि ये प्रतिबद्धताएं 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के दृष्टिकोण को हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
धनखड़ ने 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में आंबेडकर के आखिरी संबोधन का हवाला देते हुए कहा, ‘‘मुझे जो चीज बेहद परेशान करती है, वह यह है कि भारत ने न केवल एक बार पहले अपनी आजादी खोई, बल्कि इसे अपने ही लोगों के विश्वासघात और धोखे के कारण खोया। क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?’’
आंबेडकर के संबोधन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह वह विचार है जो मुझे चिंता से भर देता है। यह चिंता इस तथ्य की अनुभूति से और गहरी हो जाती है कि जातियों और पंथों के रूप में हमारे पुराने दुश्मनों के अलावा, हमारे पास विविध और विरोधी राजनीतिक पंथों वाले कई राजनीतिक दल होंगे। क्या भारतीय देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या वे अपने पंथ को देश से ऊपर रखेंगे?’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं मालूम। लेकिन इतना तो तय है कि अगर पार्टियां पंथ को देश से ऊपर रखती हैं तो हमारी आजादी दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी और संभवत: हमेशा के लिए खत्म हो जाए। ’’
उन्होंने कहा कि हम सभी को दृढ़ संकल्प लेना चाहिए कि हम ऐसी कोई भी परिस्थिति नहीं आने देंगे। उन्होंने कहा ‘‘ हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए दृढ़ होना चाहिए।’’
कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा में सदन के नेता जे पी नड्डा, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे (राज्यसभा) और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू मंच पर मौजूद थे।
इस अवसर पर भारत के संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ को समर्पित एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया गया। साथ ही ‘भारत के संविधान का निर्माण: एक झलक’ और ‘भारत के संविधान का निर्माण और इसकी गौरवशाली यात्रा’ शीर्षक वाली पुस्तकों का विमोचन किया गया।
राष्ट्रपति ने संविधान के संस्कृत और मैथिली अनुवादों का अनावरण किया।
यह समारोह ‘हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान’ अभियान का हिस्सा है। इसका उद्देश्य संविधान में निहित मूल मूल्यों को दोहराते हुए संविधान के निर्माताओं के योगदान का सम्मान करना है।
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