दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के खुले जंगलों में 40 साल बाद छोड़ा गया एक सींग वाला पहला गैंडा
सं आनन्द नेत्रपाल रंजन
- 29 Nov 2024, 06:48 PM
- Updated: 06:48 PM
लखीमपुर खीरी, 29 नवंबर (भाषा) दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में 27 वर्ग किलोमीटर के घेरे में गैंडा पुनर्वास क्षेत्र (आरआरए-1) की स्थापना के 40 साल बाद एक सींग वाला पहला गैंडा खुले जंगल में छोड़ा गया।
दुधवा टाइगर रिजर्व (डीटीआर) के फील्ड डायरेक्टर ललित वर्मा ने पीटीआई—भाषा को बताया, ‘‘12 से 15 साल के नर गैंडे रघु को बृहस्पतिवार को दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के के अंदर खुले जंगल में छोड़ा गया है।’’
गैंडा की रिहाई को उनके प्राकृतिक अवस्था में फिर से लाने के लिए पार्क के चल रहे प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम है।
वर्मा ने बताया कि शुक्रवार शाम तक तीन मादा गैंडों को जंगल में छोड़े जाने की योजना है।
असम के काजीरंगा से आए गैंडा विशेषज्ञों की टीम के साथ-साथ डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया और वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) के विशेषज्ञों द्वारा सावधानी पूर्वक मूल्यांकन के बाद रघु की रिहाई की गयी। इन विशेषज्ञों ने रघु और अन्य को रिहा करने से पहले बाड़ वाले पुनर्वास क्षेत्र में लगभग 10 गैंडों के व्यवहार, स्वास्थ्य और समग्र स्थिति का अध्ययन किया।
वर्मा ने बताया कि बृहस्पतिवार को रघु को बेहोश कर दिया गया, ट्रैकिंग और निगरानी में सहायता के लिए रेडियो कॉलर लगाया गया और फिर विशेषज्ञों की देखरेख में सफलतापूर्वक जंगल में छोड़ दिया गया।
उन्होंने कहा कि यह दुधवा में गैंडों के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत है, क्योंकि खुले जंगल के वातावरण में उनके अनुकूलन का आकलन करने के लिए कई महीनों तक उनकी बारीकी से निगरानी की जाएगी।
वर्मा ने जोर देकर कहा कि रिहाई का उद्देश्य दुधवा गैंडों की आबादी के भीतर आनुवंशिक विविधता को बढ़ाना है। पार्क ने पहले आरआरए-1 के बाड़ वाले क्षेत्र में सिर्फ पांच गैंडों के साथ गैंडा पुनर्वास कार्यक्रम शुरू किया था, जिसमें अब 46 गैंडे हैं।
इस सफलता के कारण बेलरायां रेंज के भादी ताल में दूसरा पुनर्वास क्षेत्र (आरआरए-2) स्थापित किया गया है, जहां चार गैंडों को पहले ही ले जाया जा चुका है।
संभावित मानव-वन्यजीव संघर्ष के बारे में चिंताओं का समाधान करते हुए, निगरानी विशेषज्ञों में से एक डॉ. रेंगाराजू ने आश्वासन दिया कि गैंडे मांसाहारी जानवरों से अलग व्यवहार करते हैं।
उन्होंने बताया, "गैंडे तभी आक्रामक होते हैं जब उन्हें अपने बछड़े पर खतरा महसूस होता है या जब उन्हें उकसाया जाता है।"
उन्होंने कहा कि मनुष्यों या अन्य वन्यजीवों के साथ किसी भी संघर्ष को रोकने के लिए गैंडों की बारीकी से निगरानी की जाएगी। यह पहल एक सदी से भी अधिक समय के बाद दुधवा में गैंडों को उनकी पैतृक भूमि पर सफलतापूर्वक पुनः स्थापित करने का प्रतीक है।
पुनर्वास कार्यक्रम ने न केवल स्थानीय गैंडों की आबादी बढ़ाने में मदद की है, बल्कि इस क्षेत्र में इसी तरह के संरक्षण प्रयासों के लिए एक मिसाल भी कायम की है।
दुधवा में गैंडों की आबादी लगातार बढ़ रही है, इसलिए पार्क के अधिकारी इस प्रजाति को संरक्षित करने और जंगल में उनके सुरक्षित एकीकरण को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
भाषा सं आनन्द नेत्रपाल