उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ की महिला सरपंच को बहाल करने का आदेश दिया
आशीष पवनेश
- 28 Nov 2024, 05:06 PM
- Updated: 05:06 PM
नयी दिल्ली, 28 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक महिला सरपंच को काम पूरा होने में देरी के ‘‘मामूली आधार’’ पर हटाने के संबंध में छत्तीसगढ़ के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए उदाहरण पेश करना चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां ने इसे ‘‘औपनिवेशिक सोच’’ करार दिया और उनकी बहाली के आदेश दिए, साथ ही सरकार पर अवांछित मुकदमेबाजी और उत्पीड़न के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
पीठ के 14 नवंबर को पारित कड़े शब्दों वाले आदेश में कहा गया, ‘‘अपनी औपनिवेशिक सोच के कारण प्रशासनिक अधिकारी एक बार फिर निर्वाचित जनप्रतिनिधि और चयनित लोक सेवक के बीच मूलभूत अंतर को पहचानने में असफल रहे हैं। अपीलकर्ता जैसे निर्वाचित प्रतिनिधियों को अक्सर नौकरशाहों के अधीनस्थ समझा जाता है, जिन्हें ऐसे निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य किया जाता है, जो उनकी स्वायत्तता का अतिक्रमण करते हैं और उनकी जवाबदेही को प्रभावित करते हैं।’’
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ‘‘गलत धारणा के आधर पर और स्वयंभू पर्यवेक्षी शक्ति’’ का प्रयोग निर्वाचित प्रतिनिधियों को सिविल पदों पर आसीन लोक सेवकों के बराबर मानने के इरादे से किया गया, जो चुनाव द्वारा प्रदत्त लोकतांत्रिक वैधता की पूरी तरह से अवहेलना है।
आदेश में कहा गया, ‘‘हमें इस बात की गहरी चिंता है कि इस तरह के मामलों की पुनरावृत्ति हो रही है, जहां प्रशासनिक अधिकारी और ग्राम पंचायत सदस्य महिला सरपंचों के खिलाफ प्रतिशोध लेने के लिए मिलीभगत करते हैं। ऐसे उदाहरण पूर्वाग्रह और भेदभाव के प्रणालीगत मुद्दे को उजागर करते हैं।’’
पीठ ने इस ‘‘जड़ जमाए’’ पूर्वाग्रह को ‘‘निराशाजनक’’ करार देते हुए ‘‘गंभीर आत्मनिरीक्षण और सुधार’’ का आह्वान किया। पीठ ने कहा, ‘‘चिंताजनक रूप से, एक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि को हटाना, विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में, अक्सर एक मामूली मामला माना जाता है, जिसमें प्राकृतिक न्याय और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के सिद्धांतों की अवहेलना को एक पुरानी परंपरा के रूप में माना जाता है।’’
सोनम लकड़ा (27) ने जनवरी 2020 में राज्य के जशपुर जिले के साजबहार पंचायत के सरपंच के रूप में निर्वाचित होने के बाद अधिकारियों द्वारा उन्हें हटाए जाने को चुनौती दी थी।
पीठ ने कहा कि निर्वाचित पदों पर महिलाओं को हतोत्साहित करने वाले प्रतिगामी दृष्टिकोण को अपनाने के बजाय, उन्हें ऐसा माहौल बनाना चाहिए जो शासन में उनकी भागीदारी और नेतृत्व को प्रोत्साहित करे।
पीठ ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे चार सप्ताह के भीतर सरपंच को एक लाख रुपए का भुगतान करें और उसके ‘‘उत्पीड़न’’ के लिए जिम्मेदार दोषी अधिकारियों के खिलाफ जांच करें। उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार दोषी अधिकारियों से जुर्माना राशि वसूलने की अनुमति दी।
अदालत ने कहा कि मामले पर प्रथम दृष्टया गौर करने से पता चलता है कि ग्राम पंचायत के सदस्यों ने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिलकर उनकी पहल में बाधा डालने का सुनियोजित प्रयास किया।
पीठ ने कहा, ‘‘इन व्यक्तियों ने कदाचार के निराधार आरोपों के साथ उनकी विश्वसनीयता को कम करने की कोशिश की और जब ये रणनीतियां विफल हो गईं, तो विकास परियोजनाओं को नुकसान पहुंचाने का सहारा लिया। इस संगठित अभियान के कारण अंततः उन्हें विधिवत निर्वाचित सरपंच के रूप में अन्यायपूर्ण तरीके से हटा दिया गया। ’’
अदालत ने कहा, ‘‘यह चिंता का विषय है कि हर कदम पर अपीलकर्ता को लगातार बाधाओं का सामना करना पड़ा और उनके प्रयासों में बहुत कम या कोई सहयोग नहीं मिला।’’
भाषा आशीष