संविधान ने प्रगति का मार्ग दिखाया: न्यायमूर्ति मनमोहन
वैभव दिलीप
- 26 Nov 2024, 04:03 PM
- Updated: 04:03 PM
नयी दिल्ली, 26 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने मंगलवार को कहा कि संविधान ने प्रगति के लिए सतत ‘रोडमैप’ प्रदान किया है, लेकिन यह एक जीवंत दस्तावेज है, जो समय के साथ विकसित होना चाहिये। देश के 75वें संविधान दिवस के अवसर पर दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि न्यायपालिका इतिहास के उस मोड़ पर खड़ी है, जहां वास्तविक चुनौतियां हमारे सामने हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी, कानूनी बिरादरी का सदस्य होने के नाते, यह सुनिश्चित करने के लिए कठोर कदम उठाने की एक बड़ी जिम्मेदारी निभाते हैं कि न्यायिक संस्थान इस महान राष्ट्र के नागरिकों द्वारा उन पर जताए गए विश्वास पर खरे उतरें।’’
वर्ष 2015 से, 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने संविधान को अंगीकृत किया था। इससे पहले, इस दिन को कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था।
मुख्य न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के साथ उच्च न्यायालय परिसर में प्रस्तावना पट्टिका का भी अनावरण किया।
उन्होंने कहा कि न्यायालयों को न्याय, निष्पक्षता और समानता के संरक्षक होने का कर्तव्य सौंपा गया है और कानूनी बिरादरी के सदस्यों को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि न्याय बिना किसी भय या पक्षपात के सभी के लिए सुलभ हो।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, ‘‘न्याय तक पहुंच कभी भी कुछ लोगों के लिए विशेषाधिकार की तरह नहीं होनी चाहिए। यह सभी के लिए, विशेष रूप से हाशिए पर पड़े और कमजोर लोगों के लिए उपलब्ध अधिकार होना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि पिछले 75 वर्षों में, संविधान ने चुनौतियों, विजयों, परिवर्तनों के माध्यम से भारत का मार्गदर्शन किया है, जो एक अरब से आबादी के लिए आशा और समावेश की किरण के रूप में कार्य करता है।
उन्होंने कहा कि जब भारत के संविधान को अंगीकृत किया गया था, तो दुनिया के बड़े देश डॉ. बी.आर. आंबेडकर के नेतृत्व में संविधान निर्माताओं के विचारों और आदर्शों से चकित थे, जिनके मन में आधुनिक भारत का एक सपना था।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, ‘‘भारत का संविधान हमें एक साथ रखता है, तथा हमें विविधता में एकता की अनूठी विशेषता की निरंतर याद दिलाता है। संवैधानिक न्यायालयों ने समतावादी लोकतंत्र बनाने तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के संवैधानिक संकल्प को मजबूत करने में बहुत बड़ा योगदान दिया है।’’
उन्होंने कहा कि विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं तथा धर्मों को समायोजित करने वाला एक ढांचा प्रदान करते हुए, संविधान एक शासन प्रणाली बनाता है, जो इस विश्वास पर आधारित है कि सत्ता लोगों के हाथों में है।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में, उन्हें कानून के शासन को बनाए रखने तथा संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने की गहन जिम्मेदारी की याद दिलाई जाती है।
उन्होंने कहा, ‘‘न्यायपालिका की भूमिका इन अधिकारों की व्याख्या करना तथा उन्हें लागू करना है, तथा यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था कानून से ऊपर न हो।’’
भाषा वैभव