सहकारी क्षेत्र को समर्थन देने के लिए वैश्विक वित्तीय मॉडल की जरूरत: प्रधानमंत्री मोदी
रमण अजय
- 25 Nov 2024, 08:52 PM
- Updated: 08:52 PM
नयी दिल्ली, 25 नवंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को वैश्विक स्तर पर सहकारी समितियों का समर्थन करने के लिए एक नया सहयोगी वित्तीय मॉडल बनाने का आह्वान किया। उन्होंने विशेष रूप से विकासशील देशों में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने की उनकी क्षमता की बात कही।
मोदी ने यहां ‘भारत मंडपम’ में आयोजित ‘आईसीए वैश्विक सहकारिता सम्मेलन 2024’ को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 की शुरुआत की और सहकारी उद्यमों के लिए अलग से अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की स्थापना का प्रस्ताव रखा।
प्रधानमंत्री ने सहकारी आंदोलन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत का मानना है कि सहकारी समितियां वैश्विक सहयोग को नई ऊर्जा दे सकती हैं।’’ उन्होंने विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) देशों में विकास को गति देने की उनकी क्षमता का भी जिक्र किया।
प्रधानमंत्री ने सहकारी समितियों को संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग वाली अर्थव्यवस्था से जोड़ने के साथ ही सहकारी-केंद्रित स्टार्टअप इकाइयों को बढ़ावा देने की भी वकालत की।
मोदी ने कोविड -19 महामारी के दौरान भारत के कार्यों का जिक्र करते हुए कहा कि यह कुछ और नहीं बल्कि सहकारी सिद्धांतों का उदाहरण है। यह देखने की बात है कि कैसे भारत ने अन्य देशों के साथ, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण में, टीकों और जरूरी दवाओं को साझा किया। ऐसा नहीं करने से संभावित आर्थिक लाभ की स्थिति होती, लेकिन इसके बावजूद यह कदम उठाया गया।
मोदी ने कहा, ‘‘हालांकि, आर्थिक तर्क स्थिति का लाभ उठाने का सुझाव देता, लेकिन हमारी मानवता की भावना ने हमें सेवा का मार्ग चुनने के लिए प्रेरित किया।’’
महात्मा गांधी का हवाला देते हुए मोदी ने कहा कि सहकारी समितियों की सफलता उनकी संख्या से ज्यादा उनके सदस्यों के नैतिक विकास पर निर्भर करती है। उन्होंने सहकारी समितियों से दुनिया में ‘अखंडता और पारस्परिक सम्मान का अगुवा’ बनने का आह्वान किया।
प्रधानमंत्री ने दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की स्थिति का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस विकास का लाभ समावेशी नीतियों के माध्यम से समाज के सबसे गरीब वर्गों तक पहुंच रहा है।
मोदी ने कहा, ‘‘दुनिया के लिए सहकारिता एक मॉडल है, लेकिन भारत के लिए यह संस्कृति और जीवन शैली का आधार हैं।’’
उन्होंने कहा कि भारत के सहकारी क्षेत्र में आठ लाख संगठन शामिल हैं। यह प्रत्येक चार वैश्विक सहकारी समितियों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। यह क्षेत्र ग्रामीण भारत के 98 प्रतिशत हिस्से को शामिल करता है और इसमें 30 करोड़ लोग शामिल हैं।
प्रधानमंत्री ने भारत में सहकारी समितियों को मजबूत करने के लिए उठाये गये प्रमुख कदमों को उल्लेख करते हुए कहा कि इसके लिए एक अलग मंत्रालय बनाया गया, सहकारी समितियों को आईटी परिवेश के साथ सक्षम बनाने के अलावा स्थानीय समाधान प्रदान करने के लिए बहुउद्देश्यीय इकाइयां और केंद्र बनाया गया।
उन्होंने कहा कि सरकार संचालन व्यवस्था को सहकारितावाद के साथ लाकर भारत को एक विकसित देश बनाने की दिशा में भी काम कर रही है। सरकार ने सहकारी बैंक व्यवस्था को बढ़ाने के लिए कई सुधार लागू किए हैं। इसमें उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दायरे में लाना और जमा बीमा दायरा को प्रति जमाकर्ता पांच लाख रुपये तक बढ़ाना शामिल है।
उन्होंने कहा कि पिछले दशक में सरकार के सुधारों के बाद शहरी सहकारी बैंकिंग और सहकारी आवास का व्यापक रूप से विस्तार हुआ है। देश में दो लाख आवासीय सहकारी समितियां हैं और सहकारी बैंकों में 12 लाख करोड़ रुपये जमा हैं।
सरकार दो लाख गांवों में बहुउद्देशीय सहकारी समितियां स्थापित कर रही है जहां वर्तमान में कोई समिति नहीं है। वहीं 9,000 किसान उत्पादक संगठन पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं।
उन्होंने कहा कि सहकारी समितियों की लगभग 60 प्रतिशत सदस्य महिलाएं हैं। उन्होंने सहकारिता आंदोलन को आगे बढ़ाने में महिलाओं द्वारा निभाई जा रही भूमिका की भी सराहना की।
इस मौके पर सहकारिता मंत्री अमित शाह, भूटान के प्रधानमंत्री दाशो शेरिंग टोबगे, फिजी के उप प्रधानमंत्री मनोआ कामिकामिका और 100 से अधिक देशों के लगभग 3,000 प्रतिनिधि उपस्थित थे।
वैश्विक सहकारी आंदोलन के प्रमुख निकाय अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (आईसीए) के 130 साल लंबे इतिहास में पहली बार आईसीए वैश्विक सहकारी सम्मेलन और आईसीए महासभा का आयोजन भारत में किया जा रहा है।
आईसीए, भारत सरकार और भारतीय सहकारी समितियों अमूल और कृभको के सहयोग से भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लि. (इफको) द्वारा आयोजित वैश्विक सम्मेलन 25 नवंबर से 30 नवंबर तक आयोजित किया जा रहा है।
भाषा
रमण