भारत बौद्धिक संपदा अधिकारों पर झिझक छोड़े. आक्रामक रुख अपनाएः ईएसी-पीएम रिपोर्ट
प्रेम प्रेम अजय
- 25 Nov 2024, 07:38 PM
- Updated: 07:38 PM
नयी दिल्ली, 25 नवंबर (भाषा) भारत को वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था का केंद्र बनाने के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के संबंध में ‘आक्रामक रुख’ और सर्वोत्तम अंतरराष्ट्रीय व्यवहार को अपनाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
‘भारत और वैश्विक आईपीआर संधियां’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था का केंद्र बनाने के लिए महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम व्यवहार में भाग लेने के लिए अपनी पारंपरिक झिझक को छोड़ देना चाहिए।
ईएसी-पीएम का यह कार्य-पत्र कहता है, ‘‘यदि भारत एक प्रमुख शोध एवं विकास केंद्र और अत्याधुनिक विनिर्माण और आईपी उत्पादन का स्थान बनना चाहता है, तो उसे रक्षात्मक रुख से हटकर आक्रामक रुख अपनाने की जरूरत है। हमारा ध्यान घरेलू बाजारों की रक्षा के बजाय वैश्विक बाजारों पर कब्जा करने के लिए आधार तैयार करने पर होना चाहिए।’’
इसमें कहा गया है कि बहुत लंबे समय से भारत की नीतियां वैश्विक मानकों के लिए खुद को अनुकूल बनाने के लिहाज से रक्षात्मक रही हैं। लेकिन आखिर में यह प्रतिकूल साबित होता है क्योंकि हम उन विदेशी नवोन्मेषणों को स्वीकार कर लेते हैं।
यह रिपोर्ट कहती है कि पेटेंट पर स्ट्रासबर्ग समझौते से घरेलू कानून में कोई बदलाव नहीं आएगा, जबकि औद्योगिक डिजाइनों पर दो संधियों (हेग समझौता और डिजाइन कानून संधि) के लिए डिजाइन अधिनियम 2000 के प्रावधानों में संशोधन की जरूरत होगी।
इसके मुताबिक, आजादी के बाद से भारत की आईपीआर प्रणाली रक्षात्मक रही है क्योंकि पहले यह सोच थी कि भारतीय नवप्रवर्तक अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं।
कार्यपत्र कहता है, ‘‘लेकिन अब ऐसा नहीं है क्योंकि घरेलू स्तर पर आईपीआर दाखिल करने में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और यहां तक कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी अपने वैश्विक क्षमता केंद्रों के साथ भारत में आईपीआर सृजित कर रही हैं।’’
भाषा प्रेम प्रेम