नाराज भारत ने ‘अनुचित’ जलवायु वित्त समझौते को खारिज किया
सिम्मी सुरेश
- 24 Nov 2024, 04:48 PM
- Updated: 04:48 PM
(गौरव सैनी)
बाकू (अजरबैजान), 24 नवंबर (भाषा) भारत ने ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए 300 अरब डॉलर के मामूली जलवायु वित्त पैकेज को रविवार को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि सीओपी29 अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कार्यालय ने उसे अपनी आपत्तियां व्यक्त करने का मौका दिए बिना ही इस समझौते को जबरन पारित करा दिया।
‘ग्लोबल साउथ’ का संदर्भ दुनिया के कमजोर या विकासशील देशों के लिए दिया जाता है।
आर्थिक मामलों के विभाग की सलाहकार चांदनी रैना ने यहां संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के समापन सत्र में भारत की ओर से कड़ा बयान देते हुए इस प्रस्ताव को अपनाने की प्रक्रिया को ‘‘अनुचित’’ और ‘‘पहले से प्रबंधित’’ करार दिया तथा कहा कि यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में भरोसे की चिंताजनक कमी को दर्शाती है।
विकासशील देशों के लिए यह नया जलवायु वित्त पैकेज या नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी) 2009 में तय किए गए 100 अरब अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य का स्थान लेगा।
समझौते पर वार्ता के बाद जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश विभिन्न स्रोतों- सार्वजनिक और निजी, द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय तथा वैकल्पिक स्रोतों से कुल 300 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष मुहैया कराने का लक्ष्य 2035 तक हासिल करेंगे।
वित्तीय मदद का 300 अरब अमेरिकी डॉलर का आंकड़ा उस 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बहुत कम है, जिसकी मांग ‘ग्लोबल साउथ’ देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पिछले तीन साल से कर रहे हैं।
दस्तावेज में 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का आंकड़ा है, लेकिन इसमें सार्वजनिक और निजी सहित ‘‘सभी कारकों’’ से 2035 तक इस स्तर तक पहुंचने के लिए ‘‘एक साथ काम करने’’ का आह्वान किया गया है।
इसमें केवल विकसित देशों पर ही जिम्मेदारी नहीं डाली गई है।
भारत ने कहा कि जलवायु वित्त पैकेज को अपनाए जाने से पहले अपनी बात रखने के उसके अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया गया।
रैना ने कहा, ‘‘हमने अध्यक्ष को सूचित किया था, हमने सचिवालय को सूचित किया था कि हम कोई भी निर्णय लेने से पहले बयान देना चाहते हैं, लेकिन यह सभी ने देखा कि यह सब कैसे पहले से तय करके किया गया। हम इस घटना से बेहद निराश हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमने देखा है कि आपने क्या किया। हालांकि, हम यह कहना चाहेंगे कि पक्षकारों को बोलने से रोकने और उनकी अनदेखी करने की कोशिश करना यूएनएफसीसीसी (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा सम्मेलन) प्रणाली के अनुरूप नहीं है और हम चाहते हैं कि आप हमारी बात सुनें और इस प्रस्ताव को पारित किए जाने पर हमारी आपत्तियों को भी सुनें। हम इस पर घोर आपत्ति जताते हैं।’’
इस दौरान राजनयिकों, नागरिक समाज के सदस्यों और पत्रकारों से भरे कक्ष में भारतीय वार्ताकार को जोरदार समर्थन मिला।
रैना ने कहा कि जलवायु परिवर्तन मानवता के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है और केवल विश्वास एवं सहयोग ही जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सार्थक कार्रवाई को आगे बढ़ा सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह सच्चाई है कि दोनों (विश्वास और सहयोग) आज काम नहीं कर रहे और हम अध्यक्ष एवं (यूएनएफसीसीसी) सचिवालय की कार्रवाइयों से बहुत आहत हैं।’’
भारत ने कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए 2035 तक सालाना कुल 300 अरब अमेरिकी डॉलर मुहैया कराने का जलवायु वित्त पैकेज ‘‘बहुत कम एवं बहुत दूर की कौड़ी’’ है और वह वर्तमान स्वरूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता।
जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक जिम्मेदार विकसित देशों को विकासशील और कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं को वित्त, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें जलवायु में बदलाव के प्रभावों से निपटने में मदद मिल सके। उन्होंने 2009 में प्रावधान किया था कि वे 2035 तक प्रति वर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर का वित्त पैकेज देंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘तीन सौ अरब अमेरिकी डॉलर विकासशील देशों की जरूरतों और प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं हैं। यह सीबीडीआर (साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारी) और समानता के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है।’’
नाइजीरिया ने भारत का समर्थन करते हुए कहा कि 300 अरब अमेरिकी डॉलर का जलवायु वित्त पैकेज एक ‘‘मजाक’’ है। मलावी और बोलीविया ने भी भारत का समर्थन किया।
रैना ने कहा कि परिणाम विकसित देशों की अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की अनिच्छा को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।
उन्होंने कहा कि विकासशील देश जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं और उन्हें अपने विकास की कीमत पर भी कम कार्बन उत्सर्जन वाले माध्यम अपनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
उन्हें विकसित देशों द्वारा अपनाए गए कार्बन सीमा समायोजन तंत्र जैसे एकतरफा कदमों का भी सामना करना पड़ रहा है।
रैना ने कहा कि प्रस्तावित परिणाम विकासशील देशों की जलवायु परिवर्तन के अनुसार ढलने की क्षमता को और अधिक प्रभावित करेगा तथा जलवायु लक्ष्य संबंधी उनकी महत्वाकांक्षाओं और विकास पर अत्यधिक असर डालेगा।
भाषा सिम्मी