कर्नाटक : विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस की जीत, भाजपा-जद(एस) गठबंधन को झटका
पारुल पवनेश
- 23 Nov 2024, 05:37 PM
- Updated: 05:37 PM
बेंगलुरु, 23 नवंबर (भाषा) कर्नाटक में तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने शनिवार को भाजपा-जद(एस) गठबंधन को करारा झटका देते हुए जीत दर्ज की।
उपचुनावों में कांग्रेस न सिर्फ अपना गढ़ कहलाने वाली सन्डुर सीट बरकरार रखने में कामयाब रही, बल्कि शिग्गाओं और चन्नापटना सीट भी क्रमश: भाजपा और जद(एस) से छीन लीं।
सन्डुर, शिग्गाओं और चन्नापटना विधानसभा सीटों पर 13 नवंबर को हुए उपचुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस और भाजपा-जद(एस) गठबंधन के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली थी।
सन्डुर, शिग्गाओं और चन्नापटना का प्रतिनिधित्व करने वाले ई तुकाराम (कांग्रेस), बसवराज बोम्मई (भाजपा) और एचडी कुमारस्वामी (जदएस) के मई में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने जाने के बाद इन तीन सीटों पर उपचुनाव कराना जरूरी हो गया था।
चन्नापटना में कांग्रेस उम्मीवार सीपी योगीश्वर ने पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे एवं जद(एस) उम्मीदवार निखिल कुमारस्वामी को 25,413 मतों के अंतर से हराया। वहीं, शिग्गाओं में पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के बेटे एवं भाजपा उम्मीदवार भरत बोम्मई को कांग्रेस के यासिर अहमद खान ने 13,448 मतों के अंतर से पराजित किया।
सन्डुर में बेल्लारी के सांसद ई तुकाराम की पत्नी एवं कांग्रेस प्रत्याशी ई अन्नापूर्णा ने भाजपा के बंगारू हनुमंतु पर 9,649 वोटों से जीत हासिल की।
कर्नाटक विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस की जीत को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के नेतृत्व तथा उनकी सरकार की पांच गारंटी योजनाओं को हासिल जनसमर्थन के रूप में देखा जा रहा है।
निखिल और भरत क्रमश: गौड़ा और बोम्मई परिवार के तीसरी पीढ़ी के नेता हैं। दोनों के पिता और दादा अतीत में कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
भरत ने शिग्गाओं विधानसभा उपचुनाव से अपनी चुनावी पारी का आगाज किया था। वहीं, निखिल के लिए यह लगातार तीसरी चुनावी हार थी।
कर्नाटक में उपचुनाव वाले विधानसभा क्षेत्रों में चन्नापटना को सबसे हाई-प्रोफाइल सीट माना जा रहा था, जहां निखिल का मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार योगीश्वर से था।
चन्नापटना से पांच बार के विधायक एवं पूर्व मंत्री योगीश्वर उपचुनाव से पहले भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
दरअसल, चन्नापटना में योगीश्वर को जद(एस) के टिकट पर मैदान में उतारने की योजना थी, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं थे और चाहते थे कि कुमारस्वामी क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार के रूप में उनका समर्थन करें। यह कुमारस्वामी और उनकी पार्टी को स्वीकार्य नहीं था, जिसके बाद योगीश्वर ने पाला बदल लिया।
हालांकि, बाद में कुमारस्वामी ने दावा किया था कि वह योगीश्वर के भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने पर सहमत हो गए थे, लेकिन उन्होंने (योगीश्वर) उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और उनके भाई एवं पूर्व सांसद डीके सुरेश के प्रभाव में आकर कांग्रेस का दामन थाम लिया।
निखिल को 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान मांड्या सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। वहीं, 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में वह रामनगर सीट पर जीत दर्ज करने में असफल रहे थे।
चन्नापटना में निखिल की हार को कुमारस्वामी के लिए भी झटके के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि वह उस सीट पर अपने बेटे की जीत सुनिश्चित करने में नाकाम रहे, जिसका उन्होंने अतीत में दो बार प्रतिनिधित्व किया है।
चन्नापटना में कांग्रेस की जीत पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष शिवकुमार और उनके भाई सुरेश के लिए वोक्कालिगा का गढ़ कहलाने वाले उनके गृह जिले रामनगर में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
शिग्गाओं में भरत को कांग्रेस के यासिर अहमद खान पठान के हाथों का हार का सामना करना पड़ा, जिन्हें 2023 में हुए विधानसभा चुनावों में भरत के पिता बसवराज बोम्मई ने पटखनी दी थी।
शिग्गाओं में कांग्रेस से टिकट न मिलने से नाराज पूर्व विधायक सय्यद अजीमपीर कादरी ने बागी तेवर अपनाते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा दाखिल किया था, लेकिन बाद में पार्टी नेतृत्व के दखल के बाद वह चुनावी दौड़ से पीछे हट गए थे।
सन्डुर में कांग्रेस प्रत्याशी अन्नापूर्णा ने भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष बंगारू हनुमंतु को हराया, जिन्हें वरिष्ठ पार्टी नेता एवं पूर्व खनन कारोबारी जी जनार्दन रेड्डी का करीबी माना जाता है।
सन्डुर विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ कहलाती है और अन्नापूर्णा के पति तुकाराम अतीत में चार बार इसका प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
एमयूडीए भूखंड आवंटन मामले में लगे आरोपों के बाद सिद्धरमैया के इस्तीफे की बढ़ती मांग के बीच उपचुनाव में कांग्रेस की जीत मुख्यमंत्री के लिए भी ‘अहम’ मानी जा रही है।
दरअसल, कांग्रेस में इस साल की शुरुआत में पर्दे के पीछे कई राजनीतिक गतिविधियां हुई थीं और सिद्धरमैया मंत्रिमंडल में शामिल कुछ मंत्रियों ने बंद कमरे में बैठकें की थीं, जिससे राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें तेज हो गईं। हालांकि, पार्टी आलाकमान के निर्देश के बाद ये गतिविधियां रुक गईं।
यह जीत शिवकुमार के लिए भी उतनी ही अहम है, जिन्होंने पार्टी में ‘ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री फॉर्मूले’ की अटकलों के बीच मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने की अपनी महत्वाकांक्षाओं को खुले तौर पर व्यक्त किया है।
वहीं, उपचुनाव में भाजपा-जद(एस) गठबंधन की हार को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजयेंद्र के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है, जिन्हें पार्टी के भीतर एक वर्ग की तीव्र आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इस वर्ग के नेताओं ने विजयेंद्र और उनके पिता बीएस येदियुरप्पा पर ‘समायोजन की राजनीति’ करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ बगावत कर दी है।
भाषा पारुल