बाली के हिंदू त्योहार में नृत्य करती हैं बच्चियां, लेकिन इस परंपरा पर मंडरा रहा खतरा
एपी रंजन संतोष
- 22 Nov 2024, 05:37 PM
- Updated: 05:37 PM
बाली, 22 नवंबर (एपी) मंदिर में पुजारी और लोगों की भीड़ के समक्ष केतुत नीता वाह्युनी प्रार्थना की मुद्रा में हाथ जोड़कर अपने सिर से लगाती हैं। यह 11 वर्षीय बच्ची पवित्र बाली नृत्य ‘रेजांग देवा’ करने की तैयारी कर रही है।
यह अनुष्ठान दो सप्ताह तक चलने वाले नगुसाबा गोरेंग का हिस्सा है, जो अच्छी फसल के लिए धन्यवाद देने का त्योहार है। ‘‘नगुसाबा’’ का अर्थ है देवी-देवताओं का एकत्र होना।
बाली में विभिन्न अवसरों और अनुष्ठानों के दौरान रेजांग के विभिन्न रूप किए जाते हैं। त्यौहार के दौरान वाह्युनी और उनकी सहेलियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दो अलग-अलग दिनों में किए जाने वाले रेजांग देवा और रेजांग पुकुक नृत्य केवल वही लड़कियां कर सकती हैं, जिन्होंने अभी तक यौवन प्राप्त नहीं किया है।
केतुत के पिता नियोमन सुब्रत कहते हैं, ‘‘जब से उसका (दूध का) दांत टूटा है, तब से लेकर युवावस्था तक वह रेजांग करती है। हमारा मानना है कि इस समय के दौरान भगवान को नृत्य प्रस्तुत करने के लिहाज से वे अब भी पवित्र हैं।’’
गेरियाना कौह गांव के पारंपरिक मुखिया, सुब्रत कहते हैं कि उन्हें अपनी बेटी को इस अनुष्ठान में भाग लेते देखकर गर्व होता है। सुब्रत पीढ़ियों से चली आ रही धार्मिक परंपराओं को बनाए रखने की ज़िम्मेदारियों के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
बाली हिंदू धर्म, हिंदू दर्शन और स्थानीय जीववादी परंपराओं को कुछ बौद्ध प्रभावों के साथ जोड़ता है। यह जीवन का एक तरीका है, जो लोगों, उनकी विरासत और ईश्वर के बीच संबंध बनाता है।
एक दिन बाद, केतुत की मां काडेक क्रिस्नी ने अपने बगीचे से ताजे फूल तोड़े और बेटी के स्कूल जाने के दौरान एक विस्तृत हेडड्रेस तैयार किया।
आज रेजांग पुकुक दिवस है, जो रेजांग के सबसे पवित्र रूपों में से एक है। सुबह हमेशा की तरह यह नियमित है। दिन का उत्तरार्ध मंदिर में बिताया जाएगा। बाली में यही जीवन है।
क्रिसनी कहती हैं कि उन्होंने भी बचपन में इसी तरह के अनुष्ठानों में हिस्सा लिया था और उन्हें इस बात की खुशी है कि उनके परिवार में कोई है जो इस अनुष्ठान को जारी रख रहा है।
केतुत जैसी कम उम्र की लड़कियों को भी मंदिर में अपनी सेवा देने पर गर्व है। उनके दोस्त भी इस समूह का हिस्सा हैं और वे अपने अनुभव साझा करते हुए उत्साहित हैं।
वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, ‘‘मैं मेकअप लगाना भी सीख रही हूं ।’’
वह कहती हैं, लेकिन मजबूत जड़ों के बावजूद, भविष्य में इन परंपराओं के स्थान को लेकर भी डर बना हुआ है।
सुब्रत ने चिंता व्यक्त की कि युवा पीढ़ी काम की तलाश में गांव छोड़कर शहर या विदेश जाने का विकल्प चुन रही है। वह व्यावहारिक होने और लोगों की आर्थिक वृद्धि में बाधा बने बिना बाली की पारंपरिक विरासत को बनाए रखने के तरीके खोजने के महत्व पर जोर देते हैं।
एपी रंजन