न्यायालय ने बादल, मजीठिया से पूर्व न्यायाधीश के खिलाफ बयानों को लेकर खेद व्यक्त करने को कहा
सुभाष प्रशांत
- 19 Nov 2024, 09:12 PM
- Updated: 09:12 PM
नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के नेताओं सुखबीर सिंह बादल और बिक्रम सिंह मजीठिया से पूर्व न्यायाधीश रणजीत सिंह के खिलाफ दिए गए उनके बयानों को लेकर खेद व्यक्त करने को कहा।
रणजीत सिंह ने पंजाब में बेअदबी और पुलिस गोलीबारी की घटनाओं की जांच करने वाले आयोग का नेतृत्व किया था।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रणजीत सिंह की अपील पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा उनकी याचिका खारिज किए जाने को चुनौती दी थी। पीठ ने दोनों पक्षों को दो सप्ताह का समय दिया और पूर्व न्यायाधीश से कहा कि वह अपना अहं छोड़कर आगे बढ़ें।
पीठ ने बादल से कहा कि वह पंजाब के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं और खेद व्यक्त करने से उनकी गरिमा बनी रहेगी।
न्यायालय ने कहा, ‘‘आप पंजाब के उपमुख्यमंत्री थे और वह पूर्व न्यायाधीश हैं। आप दोनों ने सार्वजनिक जीवन में उच्च पदों पर सेवा दी है।’’
पीठ ने बादल और मजीठिया, दोनों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पुनीत बाली से कहा, ‘‘आप दिए गए बयानों को देखिए। यह अच्छा नहीं लग रहा। आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि आप खेद व्यक्त करिये। उन्हें मनाइए।’’
बाली ने अधिवक्ता निशांत बिश्नोई के साथ पीठ से कहा कि वह समझते हैं कि अदालत क्या कह रही है और उन्होंने अपने मुवक्किलों को इससे अवगत कराने के लिए समय मांगा।
पीठ ने पूर्व न्यायाधीश की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता निदेश गुप्ता से भी कहा कि वह उन्हें अदालत का दृष्टिकोण बताएं।
न्यायालय ने गुप्ता से कहा, ‘‘आपको आगे बढ़ना होगा। आपने सार्वजनिक जीवन में इतने ऊंचे पदों पर काम किया है। बस बयानों को नजरअंदाज करें और आगे बढ़ें।’’
पीठ ने दोनों पक्षों को दो सप्ताह का समय दिया और गुप्ता से पूछा कि वे पता लगाएं कि क्या बादल और मजीठिया द्वारा अपने बयानों पर खेद व्यक्त करना पूर्व न्यायाधीश को स्वीकार्य है।
न्यायमूर्ति सिंह को जून 2015 और मार्च 2017 के बीच पंजाब में हुई बेअदबी की विभिन्न घटनाओं की जांच करने वाले एक आयोग का नेतृत्व करने का जिम्मा सौंपा गया था। उन्होंने याचिका में आरोप लगाया था कि दोनों अकाली नेताओं ने आयोग के बारे में ‘‘बहुत अपमानजनक, मानहानिकारक और अनादरपूर्ण तरीके से’’ बात की, जिससे आयोग और उसके अध्यक्ष की प्रतिष्ठा धूमिल हुई, जो कि जांच आयोग अधिनियम 1952 की धारा 10ए के तहत अपराध है।
उल्लेखनीय है कि 2017 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार ने 2015 में, पूर्ववर्ती शिअद-भाजपा सरकार के दौरान हुई घटनाओं सहित बेअदबी और पुलिस गोलीबारी की घटनाओं की जांच के लिए न्यायमूर्ति रणजीत सिंह आयोग का गठन किया था।
भाषा सुभाष