वन मंत्रालय, एफएसआई ने भारत का वन क्षेत्र 23.3 लाख हेक्टेयर घटने का दावा खारिज किया
पारुल सुरेश
- 18 Nov 2024, 09:21 PM
- Updated: 09:21 PM
नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) ने ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ निगरानी परियोजना के उस आंकड़े का खंडन किया है, जिसके तहत भारत में 2000 के बाद से वन क्षेत्र में 23.3 लाख हेक्टेयर की कमी आने का दावा किया गया है।
मंत्रालय और एफएसआई ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के समक्ष संयुक्त जवाब दाखिल किया। एनजीटी ने वन क्षेत्र में कथित कमी से जुड़ी एक मीडिया रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लेते हुए प्राधिकारियों से मामले में जवाब तलब किया था।
गत 16 नवंबर को दायर जवाब में कहा गया है कि एफएसआई ने रिमोट सेंसिंग डेटा का इस्तेमाल करके वन क्षेत्र का ‘वॉल-टू-वॉल’ मानचित्रण किया और 1987 से 2021 के बीच 17 चक्र में वन क्षेत्र का मूल्यांकन किया गया।
इसमें कहा गया है, “एफएसआई वृक्ष आवरण, जंगलों में बढ़ती लकड़ी, वन क्षेत्र के बाहर के पेड़ों (टीओएफ), बांस संसाधन, कार्बन स्टॉक (पेड़, पौधों, झाड़ियों और मिट्टी में कार्बन की सांद्रता) के साथ-साथ कई अन्य मापदंडों से जुड़ी जानकारी का आकलन करने के लिए नमूना आधारित राष्ट्रीय वन सूची (एनएफआई) भी बनाता है। उपरोक्त अभ्यास के निष्कर्ष हर दो साल में ‘भारत में वन स्थिति रिपोर्ट (आईएसएफआर)’ में प्रकाशित किए जाते हैं।”
जवाब के मुताबिक, आईएसएफआर स्वामित्व और कानूनी स्थिति से परे हर उस भूमि को वन क्षेत्र के रूप में परिभाषित करता है, जिसका क्षेत्रफल एक हेक्टेयर से अधिक है और जिसका 10 फीसदी से अधिक हिस्सा पेड़ों की छाया से ढका हुआ है। वहीं, अभिलिखित वन क्षेत्र के बाहर मौजूद एक हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल के वृक्ष खंड को आईएसएफआर वृक्ष आवरण का दर्जा देता है।
इसमें कहा गया है, “आईएफएसआर में बताया गया देश का वन आवरण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानदंडों पर आधारित है, जबकि ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ में वन आवरण के आकलन के लिए अपनाया गया मानदंड अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानदंडों पर आधारित नहीं है। ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन की पहल है, जिसके तहत वन आवरण की अलग परिभाषा और इसके आकलन के लिए अलग पद्धति हो सकती है।”
जवाब पर एफएसआई के सहायक निदेशक एसवी नागराजा के हस्ताक्षर हैं। इसमें आईएफएसआर रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि 2001 से 2021 के बीच वन क्षेत्र में 59,891 वर्ग किलोमीटर और वृक्ष आवरण में 14,277 वर्ग किलोमीटर की शुद्ध वृद्धि हुई है।
जवाब के अनुसार, ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ के हिसाब से भारत में वन क्षेत्र में कमी के चलते वायुमंडल में हर साल औसतन 5.1 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ।
जवाब में रिपोर्ट में किए गए दावों को खारिज करते हुए कहा गया है, “हालांकि, विनम्रतापूर्वक यह बताया जाता है कि वन क्षेत्र और वृक्ष आवरण में कोई कमी नहीं आई है, और भारत में वनों से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन का सवाल ही नहीं उठता है।”
इसमें कहा गया है कि आईएफएसआर में 2013 में देश के जंगलों में ‘कार्बन स्टॉक’ लगभग 6,94.1 करोड़ टन, जबकि 2021 में लगभग 7,20.4 करोड़ टन होने का अनुमान जताया गया था।
जवाब के मुताबिक, “वर्ष 2013 से 2021 के बीच भारत के जंगलों में 26.3 करोड़ टन कार्बन का शुद्ध संचयन हुआ है। इसलिए, भारत के जंगल कार्बन डाइऑक्साइड के शुद्ध उत्सर्जक नहीं, बल्कि कार्बन को अवशोषित और संग्रहीत करने वाले ‘कार्बन सिंक’ हैं।”
इसमें कहा गया है, “उपरोक्त पैरा में कही गई बातों के मद्देनजर ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ (का डेटा) तथ्यों, जमीनी हकीकत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानदंडों से रहित है।”
भाषा पारुल