राष्ट्रपति के सचिव को राजोआना की दया याचिका राष्ट्रपति के समक्ष रखने के निर्देश वाले आदेश पर रोक
पारुल मनीषा
- 18 Nov 2024, 03:52 PM
- Updated: 03:52 PM
नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अपने उस आदेश पर सोमवार को रोक लगा दी, जिसके तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सचिव को निर्देश दिया गया था कि वह 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में मौत की सजा पाने वाले बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका को राष्ट्रपति के समक्ष रखें।
न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीके मिश्रा और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने सोमवार की सुबह पारित आदेश में राष्ट्रपति मुर्मू से राजोआना की दया याचिका पर दो हफ्ते के भीतर विचार करने का अनुरोध किया था।
हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से आग्रह किया कि इस आदेश पर अमल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह मुद्दा बेहद “संवेदनशील” है और इस पर शुक्रवार को सुनवाई की जानी चाहिए।
मेहता ने पीठ को बताया कि फाइल अभी गृह मंत्रालय के पास है, राष्ट्रपति के पास नहीं। पीठ ने मेहता का आग्रह स्वीकार कर लिया और मामले को सोमवार को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
पीठ ने सुबह सुनवाई शुरू करते हुए कहा, “मामले की सुनवाई के लिए खास तौर पर आज का दिन तय किए जाने के बावजूद भारत संघ की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ। पीठ केवल इसी मामले की सुनवाई के लिए बैठी थी।”
उसने कहा, “पिछली तारीख पर मामले की सुनवाई स्थगित कर दी गई थी, ताकि केंद्र सरकार राष्ट्रपति कार्यालय से यह निर्देश ले सके कि दया याचिका पर कब तक फैसला लिया जाएगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता मौत की सजा का सामना कर रहा है, हम भारत के राष्ट्रपति के सचिव को निर्देश देते हैं कि वह मामले को राष्ट्रपति के समक्ष रखें और उनसे अनुरोध करें कि वह दो हफ्ते के भीतर इस पर विचार करें।”
शीर्ष अदालत ने 25 सितंबर को राजोआना की याचिका पर केंद्र, पंजाब सरकार और केंद्र-शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासन से जवाब मांगा था।
राजोआना को 31 अगस्त 1995 को चंडीगढ़ में पंजाब सिविल सचिवालय के बाहर हुए विस्फोट मामले में दोषी पाया गया था। इस घटना में तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 16 अन्य लोग मारे गए थे।
जुलाई 2007 में एक विशेष अदालत ने राजोआना को मौत की सजा सुनाई थी।
राजोआना ने अपनी याचिका में कहा है कि मार्च 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने उसकी ओर से क्षमादान का अनुरोध करते हुए संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत एक दया याचिका दायर की थी।
उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल तीन मई को राजोआना को सुनाई गई मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने से इनकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि सक्षम प्राधिकारी उसकी दया याचिका पर विचार कर सकते हैं।
भाषा पारुल