गहलोत के इस्तीफे से आप ने खोया जाट चेहरा, मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना पर पड़ सकता असर
धीरज रंजन
- 17 Nov 2024, 09:46 PM
- Updated: 09:46 PM
नयी दिल्ली, 17 नवंबर (भाषा) दिल्ली सरकार में मंत्री कैलाश गहलोत के इस्तीफे से आम आदमी पार्टी (आप) ने रविवार को पार्टी का चर्चित जाट चेहरा खो दिया। माना जा रहा है कि उनके इस्तीफे से फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले महिलाओं को 1000 रुपये मासिक मानदेय देने की आप सरकार की महत्वाकांक्षी योजना प्रभावित हो सकती है।
गहलोत 2015 से पश्चिमी दिल्ली में जाट बहुल नजफगढ़ निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। आप सूत्रों ने बताया कि उनके इस्तीफे का असर बाहरी दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में होना निश्चित है, जहां पर इस समुदाय की अच्छी खासी मौजूदगी है।
गहलोत (50) आतिशी सरकार में परिवहन, गृह, आईटी, प्रशासनिक सुधार और महिला एवं बाल विकास जैसे विभाग संभाल रहे थे।
अधिकारियों ने बताया कि महिला एवं बाल विकास विभाग मुख्यमंत्री आतिशी द्वारा 2024-25 के बजट में घोषित ‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ का मसौदा तैयार कर रहा है। उन्होंने बताया कि मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव से पहले इसे लागू करने की योजना पर अब असर पड़ेगा, क्योंकि गहलोत इसका मसौदा तैयार करने से जुड़े थे।
गहलोत ने आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को लिखे अपने त्यागपत्र में कई मुद्दे उठाए, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री के पूर्व आधिकारिक आवास ‘शीशमहल’ विवाद, दिल्ली सरकार का केंद्र के साथ टकराव, जिससे लोगों को बुनियादी सेवाएं उपलब्ध कराने में बाधा उत्पन्न हो रही है और यमुना नदी की सफाई में विफलता शामिल है।
दिल्ली भाजपा नेताओं ने गहलोत के इस्तीफे का स्वागत किया। इससे इस बात की चर्चा मजबूत हो गई कि वह विधानसभा चुनाव से पहले वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
भाजपा की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा, ‘‘उन्होंने एक साहसी कदम उठाया। उन्होंने अपने इस्तीफे के लिए वही कारण बताए हैं जो भाजपा केजरीवाल और आप के खिलाफ उठा रही थी।’’
हालांकि, आप नेताओं ने दावा किया कि गहलोत ने इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि वह प्रवर्तन निदेशालय सहित केंद्रीय एजेंसियों की जांच का सामना कर रहे थे और भाजपा में शामिल होना उनके सामने अंतिम विकल्प था।
सूत्रों ने कहा कि गहलोत का इस्तीफा हतप्रभ करने वाला नहीं है लेकिन यह पूरी तरह अप्रत्याशित भी नहीं है, क्योंकि वह आप में ‘‘अलगथलग’ महसूस कर रहे थे।
पिछले साल उनसे राजस्व और वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभाग वापस लेकर आतिशी को सौंप दिया गया था। इसके अलावा, इस साल स्वतंत्रता दिवस पर तब जेल में बंद मुख्यमंत्री की ओर से तिरंगा फहराने के लिए एक मंत्री को नामित करने का फैसला करने के दौरान उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।
सूत्रों ने बताया कि उपराज्यपाल द्वारा उनके पक्ष में निर्णय लिए जाने के बाद गहलोत ने अंततः दिल्ली सरकार के समारोह में राष्ट्रीय ध्वज फहराया, हालांकि केजरीवाल चाहते थे कि आतिशी ऐसा करें।
सूत्रों ने दावा किया कि फिर से, केजरीवाल ने गहलोत को तब दरकिनार कर दिया जब मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद आतिशी को अपना उत्तराधिकारी चुना। उन्होंने दावा किया कि इससे गहलोत नाराज हो गये थे।
सूत्रों ने बताया कि गहलोत के दिल्ली सरकार के नौकरशाहों के साथ-साथ दिल्ली के उप राज्यपाल वी के सक्सेना के कार्यालय से भी अच्छे संबंध हैं। उन्होंने बताया कि आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव के चरम पर भी गहलोत ने कभी कड़े शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।
आप सूत्रों ने दावा किया कि इस बार विधानसभा चुनाव में नजफगढ़ से गहलोत का टिकट भी तय नहीं था।
भाषा धीरज