रामटेक विधानसभा सीट पर पूर्व मंत्री के निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरने से दिलचस्प हुआ मुकाबला
योगेश राजकुमार
- 16 Nov 2024, 05:25 PM
- Updated: 05:25 PM
नागपुर, 16 नवंबर (भाषा) महाराष्ट्र में नागपुर के रामटेक विधानसभा क्षेत्र में इस बार चुनावी लड़ाई दिलचस्प हो गई है, क्योंकि एक पूर्व मंत्री ने निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतरकर प्रमुख दावेदारों के सामने चुनौती खड़ी कर दी है।
यह विधानसभा क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था जो बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ बन गया।
नागपुर जिले के 12 विधानसभा क्षेत्रों में से एक रामटेक विधानसभा क्षेत्र रामटेक लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने रामटेक सीट जीती थी।
वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर इस सीट पर जीत दर्ज करने वाले मौजूदा विधायक आशीष जायसवाल अब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना के टिकट पर महायुति के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं।
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवार विशाल बरबटे जायसवाल को चुनौती दे रहे हैं, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों पार्टी के उम्मीदवारों के मुकाबले राजेंद्र मुलक अधिक मजबूत स्थिति में हैं।
मुलक को हाल में पार्टी-विरोधी गतिविधियों को लेकर कांग्रेस ने पार्टी से निलंबित कर दिया था।
इस निर्वाचन क्षेत्र में करीब 2.85 लाख मतदाता हैं।
निर्दलीय उम्मीदवार मुलक पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता पृथ्वीराज चव्हाण के करीबी हैं ।
राजेंद्र मुलक पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व वाली कैबिनेट में राज्य मंत्री भी रह चुके हैं।
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रामू भागवत ने कहा कि रामटेक कभी कांग्रेस के गढ़ के रूप में जाना जाता था।
उन्होंने कहा," इसका राजनीतिक महत्व तब बढ़ा जब पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने एक बार रामटेक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। लेकिन विडंबना यह है कि इस बार कांग्रेस का चुनाव चिन्ह चुनावी मैदान से गायब होगा, क्योंकि पार्टी को शिवसेना (यूबीटी) के सामने झुकना पड़ा और सीट बंटवारे के तहत शिवसेना (यूबीटी) को यह सीट देनी पड़ी।"
उन्होंने कहा, "हालांकि इस सीट पर शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवार बरबटे और शिवसेना के उम्मीदवार जायसवाल के बीच मुकाबला प्रतीत हो रहा है, लेकिन मुलक भी मैदान में कूद पड़े हैं और नागपुर के ग्रामीण इलाकों में उनकी अच्छी पकड़ है।"
भागवत ने कहा कि मुलक ने पहले नागपुर जिले के उमरेड विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और जीता था, लेकिन 2009 में परिसीमन के बाद यह सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हो गई। मुलक एक कुनबी मराठा हैं।
उन्होंने कहा, "तब से वह ग्रामीण नागपुर के अन्य हिस्सों में पार्टी संगठन के लिए काम कर रहे हैं।"
भागवत के अनुसार, मुलक की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस से छह साल के लिए निलंबन के बावजूद भी उन्हें पार्टी के कुछ नेताओं का सक्रिय समर्थन मिल रहा है।
पत्रकार जयदीप हार्डिकर का मानना है कि इस बार मुख्य मुकाबला जायसवाल और मुलक के बीच है।
उन्होंने बताया, "इसके दो कारण हैं। मुलक एक मजबूत उम्मीदवार हैं - जातिगत कारक के संदर्भ में और उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जा रहा है जो मौजूदा उम्मीदवार को हरा सकता है। एक अन्य कारक आदिवासियों के वोट हैं, जो कांग्रेस के साथ जाएंगे और दलित शिवसेना (यूबीटी) को वोट नहीं देंगे क्योंकि वह एक नये उम्मीदवार हैं और उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जा रहा है जो जायसवाल को हरा नहीं सकते।"
भाषा
योगेश