छत्तीसगढ़: 21 वर्षों से अपने घरों से दूर रहे अबूझमाड़ के आदिवासी अब वापसी के इच्छुक
संजीव मनीषा संतोष
- 15 Nov 2024, 03:09 PM
- Updated: 03:09 PM
रायपुर, 15 नवंबर (भाषा) छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में माओवादी खतरे के कारण गांव छोड़ने के दो दशक से अधिक समय बाद अब लगभग 25 आदिवासी परिवार अब अपने मूल गांव में फिर से बसने की योजना बना रहे हैं।
इन परिवारों के लगभग 100 सदस्य 2003 में नक्सलियों द्वारा निशाना बनाए जाने के बाद डर के कारण अबूझमाड़ के गारपा गांव स्थित अपने घरों को छोड़ कर चले गए थे तथा नारायणपुर शहर के बाहरी इलाके में सरकार द्वारा प्रदान की गई जगह पर बस गए थे।
क्षेत्र में पुलिस द्वारा शिविर स्थापित कर सुरक्षा मुहैया कराने और विकास के कार्य होने के कारण ये आदिवासी परिवार पलायन के 21 साल बाद अपने मूल स्थान पर लौटना चाहते हैं।
गांव के सुक्कू राम नरेटी (60) ने बताया, ''पैतृक भूमि छोड़ना हमारे लिए कभी आसान काम नहीं था, लेकिन हमारे पास अपना जीवन बचाने के लिए वहां से जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।''
नरेटी का परिवार उन 25 परिवारों में से एक है, जिन्होंने अप्रैल 2003 में गारपा गांव छोड़ दिया था।
नरेटी अबूझमाड़िया समुदाय से आते हैं, जो विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह है।
उन्होंने बताया, ''गांव के 80 परिवारों में से लगभग 25 परिवार 'गायत्री परिवार' के अनुयायी थे और नक्सलियों को इस पर आपत्ति थी। उन्होंने हमें धमकी दी कि यदि हमने गायत्री परिवार का अनुसरण करना नहीं छोड़ा तो हमें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इसलिए हमने गांव छोड़ने का फैसला किया।''
नरेटी ने कहा, ''हम हमेशा अपनी जमीन पर वापस आना चाहते थे। अब ऐसा लगता है कि हमारा सपना सच हो जाएगा क्योंकि वहां पुलिस शिविर स्थापित किया गया है और हालात सुधरने लगे हैं।''
नरेटी पहले क्षेत्र में जनपद पंचायत के सदस्य के रूप में काम कर चुके हैं।
पिछले सप्ताह गांव छोड़ने वाले अन्य लोगों के साथ नरेटी ने गारपा गांव का दौरा किया था और 2003 से बंद भगवान शिव के मंदिर को फिर से खोल दिया था।
उन्होंने कहा, ''अब हम गांव में फिर से बसने की योजना बना रहे हैं क्योंकि हमारे पास खेती की जमीन और घर हैं।''
प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के ठिकानों में से एक अबूझमाड़ में पैठ बनाते हुए छत्तीसगढ़ पुलिस ने पिछले आठ महीनों में अबूझमाड़ के छह गांवों गारपा, कस्तूरमेटा, मस्तूर, इराकभट्टी, मोहंती और होराडी में सुरक्षा शिविर स्थापित किया है। गारपा में 22 अक्टूबर को शिविर स्थापित किया गया था।
पुलिस के अनुसार, ''इन शिविरों की स्थापना की रणनीति ने माओवादियों को क्षेत्र के बहुत सीमित क्षेत्र तक सीमित कर दिया है। इससे क्षेत्र में तेज गति से विकास कार्य हुए हैं।''
नारायणपुर जिले के पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार ने कहा कि सुदूर और घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा शिविर स्थापित करने से हजारों ग्रामीणों को माओवादी खतरे से छुटकारा मिला है। वहीं नियद नेल्लानार (आपका अच्छा गांव) योजना के माध्यम से सरकार के विकास कार्यों और कल्याणकारी योजनाओं से वह लाभान्वित हुए हैं।
नियद नेल्लानार के तहत राज्य सरकार सुरक्षा शिविर के पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले अंदरूनी गांवों में विकास कार्य करा रही है।
कुमार ने बताया कि नए शिविरों के आसपास के गांवों में नक्सलियों द्वारा बेदखल किए गए आदिवासी अब अपने मूल स्थानों पर वापस जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ग्रामीण जो पहले विकास परियोजनाओं, सड़कों आदि का विरोध करने के लिए नक्सलियों के दबाव में आते थे, वे अब सड़क, मोबाइल टावर, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं की मांग कर रहे हैं। पुलिस और प्रशासन के प्रयासों के परिणामस्वरूप आने वाले दिनों में सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।''
पुलिस अधिकारी ने बताया कि सुरक्षा और विकास के संयुक्त प्रयास से अब अबूझमाड़ के लगभग आधा हिस्से में सड़क की सुविधा है। माड़ से छोटेबेठिया (नारायणपुर) और महाराष्ट्र तक सड़क संपर्क प्रदान करने का लक्ष्य है।
उन्होंने बताया कि अगले 18 महीनों के भीतर नारायणपुर को गढ़चिरौली (महाराष्ट्र) और छोटेबेठिया से जोड़ दिया जाएगा।
कुमार ने बताया कि छह सुरक्षा शिविरों की स्थापना के बाद, राज्य के पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग की प्रमुख सचिव निहारिका बारिका ने हाल ही में अबूझमाड़ के पांच गांवों का दौरा किया था। यह क्षेत्र में प्रमुख सचिव रैंक के अधिकारी का पहला दौरा था।
एक अधिकारी ने बताया कि उन्होंने मोटरसाइकिल से 60 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की और 30 से अधिक विकास परियोजनाओं का मौके पर जाकर जायजा लिया।
उन्होंने तीन आंगनबाड़ी, दो स्कूल, एक स्वास्थ्य उपकेंद्र का दौरा किया और जमीनी स्तर के विकास कार्यकर्ताओं से मुलाकात की तथा गारपा और नारायणपुर के बीच बस सेवा को हरी झंडी दिखाई।
लगभग चार हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले अबूझमाड़ को प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गढ़ माना जाता है। इस क्षेत्र के घने जंगल इनके नेताओं के छिपने का स्थान हैं।
सुरक्षा बलों के अभियान से बढ़ते दबाव और क्षेत्र में किए जा रहे विकास कार्यों के कारण हाल के कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में माओवादियों की गतिविधियों में कमी आई है।
भाषा संजीव मनीषा