‘‘जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए खरबों डॉलर की जरूरत, अमीर देशों को नेतृत्व करना चाहिए’’
प्रशांत अविनाश
- 13 Nov 2024, 08:18 PM
- Updated: 08:18 PM
नयी दिल्ली, 13 नवंबर (भाषा) कुछ विकसित देशों ने बुधवार को स्वीकार किया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए खरबों डॉलर की तत्काल आवश्यकता है तथा धनी देशों को जलवायु वित्त उपलब्ध कराने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
ये देश ‘हाई एंबिशन कोएलिशन’ नामक गठबंधन का हिस्सा हैं, जो साहसिक जलवायु कार्रवाई की वकालत करता है। इनमें जर्मनी, कनाडा, फ्रांस और नीदरलैंड शामिल हैं।
संगठन के अनुसार, “जब हम जलवायु वित्त पोषण के लिए इस नए लक्ष्य पर बातचीत कर रहे हैं, तो हमें एक बार फिर अपने मतभेदों को दूर करना होगा, वैश्विक एकजुटता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करना होगा, तथा ग्रह की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए धन जुटाना होगा।” उसने कहा कि इसके लिये खरबों डॉलर की आवश्यकता होगी।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब विभिन्न देश एक नए जलवायु वित्त पैकेज - नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी)- के मसौदे पर बहस कर रहे हैं जिसे अजरबैजान के बाकू में चल रही संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है।
जलवायु कार्यकर्ता और जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि पहल के वैश्विक सहभागिता निदेशक हरजीत सिंह ने कहा कि हालांकि यह वक्तव्य विकासशील देशों और नागरिक संस्थाओं की मांगों के अनुरूप है, लेकिन वास्तव में जो आवश्यक है, यह उससे कम है।
गठबंधन ने ऋण बोझ और उच्च पूंजीगत लागतों के समाधान की मांग की, जो कई देशों में जलवायु परिवर्तन से लड़ने को कठिन बना रहे हैं, और उनके प्रयासों का समर्थन करने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली का आह्वान किया।
उसने कहा कि जलवायु वित्त मुख्य रूप से अनुदान आधारित और रियायती होना चाहिए, विशेष रूप से अनुकूलन तथा नुकसान से निपटने के लिए। उसने यह भी कहा कि हरित निवेश को फलने-फूलने के लिए सही परिस्थितियां मौजूद होनी चाहिए।
गठबंधन ने कहा, “विकसित देशों को आगे बढ़ना चाहिए तथा मौजूदा वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करना चाहिए तथा वित्त के नवीन स्वरूपों को वास्तविकता बनाया जाना चाहिए।” इसके साथ ही जलवायु कोषों को स्वीकृत करने तथा वितरित करने के लिए सरलीकृत तथा तीव्र प्रक्रिया का आह्वान किया गया।
संगठन ने कहा कि विश्व को जीवाश्म ईंधनों से तेजी से हटना चाहिए, नवीकरणीय ऊर्जा को तीन गुना बढ़ाना चाहिए, ऊर्जा दक्षता को दोगुना करना चाहिए तथा जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में कटौती करनी चाहिए।
गठबंधन ने कहा, “हम महत्वपूर्ण दशक के आधे रास्ते पर हैं, और हम सभी को - विशेष रूप से जी-20 को - 1.5 डिग्री सेल्सियस में इन प्रतिबद्धताओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए, एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) को संरेखित करना चाहिए जो अर्थव्यवस्था-व्यापी हो, सभी क्षेत्रों और गैसों को इसके दायरे में लाएं, और पूर्ण कटौती लक्ष्य रखें।”
अंतरराष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई के लिए जर्मनी की विशेष दूत जेनिफर मॉर्गन ने कहा, “हमने यूरोपीय संघ के माध्यम से यह भी देखा है कि जलवायु कार्रवाई किस प्रकार हमारी अपनी आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ चलती है। यूरोपीय संघ ने पिछले वर्ष उत्सर्जन में 8.3 प्रतिशत की कमी की; कुल मिलाकर हमने अपने उत्सर्जन में 37 प्रतिशत की कमी की है, तथा हमारे सकल घरेलू उत्पाद में 68 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।”
मॉर्गन ने कहा, “इसलिए, हमने देखा है कि यह हमारे अपने हित में है, न केवल हमारे अपने उत्सर्जन में कमी लाने में, बल्कि बाकू में एक मजबूत परिणाम प्राप्त करने के लिए मिलकर काम करने में भी।”
जलवायु कार्यकर्ता सिंह ने कहा कि विकासशील देशों को ऋण नहीं, बल्कि अनुदान के रूप में कम से कम एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, ताकि जलवायु प्रभावों के अनुकूल ढलने, नुकसान से उबरने तथा मजबूत शमन रणनीतियों को लागू करने में कमजोर देशों को वास्तविक रूप से सहायता मिल सके।
इस बीच, एनसीक्यूजी पर बातचीत तनावपूर्ण बनी हुई है।
सोमवार को एजेंडा विवाद के कारण पूरा दिन बर्बाद होने के बाद, इस वर्ष की वार्ता का मुख्य मुद्दा ‘एनसीक्यूजी’ पर चर्चा मंगलवार को उस समय ठप हो गई, जब जी-77 और चीन ने वार्ता के मसौदे को अस्वीकार कर दिया।
भाषा
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