सिर्फ आपराधिक रिकॉर्ड के आधार पर घर गिराना परिवार को सामूहिक दंड के समान: उच्चतम न्यायालय
सुभाष पवनेश
- 13 Nov 2024, 07:53 PM
- Updated: 07:53 PM
नयी दिल्ली, 13 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि किसी मकान को सिर्फ इसलिए ध्वस्त करना कि उसमें रहने वाला व्यक्ति आपराधिक मामले में आरोपी है या दोषी करार दिया गया है, तो यह पूरे परिवार को ‘‘सामूहिक दंड’’ देने के समान होगा।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में ये टिप्पणियां कीं। इस फैसले में, संपत्तियों को ढहाने पर देशभर के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किये गए हैं।
न्यायालय ने कहा कि जब किसी विशेष ढांचे को अचानक ध्वस्त करने के लिए चुना जाता है और उसी क्षेत्र में स्थित अन्य समान ढांचों को छुआ तक नहीं जाता, तो ‘‘बहुत ही दुर्भावना से ऐसा किया जाता होगा।’’
पीठ ने कहा कि मकान का निर्माण सामाजिक-आर्थिक अधिकारों का एक पहलू है और एक आम नागरिक के लिए यह अक्सर वर्षों की कड़ी मेहनत, सपनों और आकांक्षाओं की परिणति होती है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमारे विचार में, यदि किसी मकान को गिराने की अनुमति दी जाती है, जिसमें एक परिवार के कई लोग या कुछ परिवार रहते हैं, केवल इस आधार पर कि ऐसे घर में रहने वाला एक व्यक्ति या तो आरोपी है या आपराधिक मामले में दोषी करार दिया गया है, तो यह पूरे परिवार या ऐसे भवन में रहने वाले परिवारों को सामूहिक दंड देने के समान होगा।’’
न्यायालय ने कहा कि संविधान और आपराधिक न्यायशास्त्र कभी भी इसकी अनुमति नहीं देगा।
यह देखते हुए कि आश्रय का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के पहलुओं में से एक है, शीर्ष अदालत ने कहा कि घर केवल एक संपत्ति नहीं है, बल्कि यह स्थिरता, सुरक्षा और भविष्य के लिए एक परिवार या व्यक्तियों की सामूहिक उम्मीदों का प्रतीक होता है।
पीठ ने अपने 95 पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘‘किसी भी व्यक्ति को अपने सिर पर छत होने से संतुष्टि मिलती है। इससे सम्मान मिलता है और अपनेपन की भावना आती है। अगर इसे छीना जाना है, तो प्राधिकारी को यह लगना चाहिए कि यही एकमात्र विकल्प है।’’
न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो केन्द्र और कुछ राज्यों की ओर से उपस्थित हुए थे, की इन दलीलों पर गौर किया कि कुछ मामलों में यह महज संयोग हो सकता है कि स्थानीय नगर निकाय कानूनों का उल्लंघन करने वाली संपत्तियां आरोपी व्यक्तियों की भी हुआ करती हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में, जहां अधिकारी मनमाने तरीके से (ढहाये जाने के लिए भवन या) ढांचों का चयन करते हैं और यह स्थापित हो जाता है कि ऐसी कार्रवाई शुरू करने से शीघ्र पहले उसमें रह रहे व्यक्ति को आपराधिक मामले में संलिप्त पाया गया था, तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस तरह की कार्यवाही का असली मकसद अवैध मकान गिराना नहीं था, बल्कि अदालत में सुनवाई के बिना ही आरोपी को दंडित करने की कार्रवाई थी।’’
न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस तरह की पूर्वधारणा का खंडन किया जा सकता है, लेकिन प्राधिकारियों को न्यायालय को इस बात से सहमत करना होगा कि उनका इरादा मकान को ध्वस्त कर आरोपी व्यक्ति को दंडित करने का नहीं है।
पीठ ने कहा कि स्थानीय कानूनों के उल्लंघन के कारण जिन घरों को ध्वस्त किया जाना आवश्यक है, उनके संबंध में भी ‘‘कानून के शासन के सिद्धांत’’ पर विचार किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा, ‘‘कुछ ऐसे अनधिकृत निर्माण हो सकते हैं, जिन पर समझौता हो सकता है। कुछ ऐसे निर्माण हो सकते हैं, जिनमें निर्माण का केवल एक हिस्सा ही हटाने की आवश्यकता हो।’’ पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में संपत्ति को ध्वस्त करने जैसा चरम कदम असंगत होगा।
शीर्ष अदालत ने देश भर में संपत्तियों को गिराने पर दिशानिर्देश तय करने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।
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