हिमाचल उच्च न्यायालय ने छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द की
पारुल संतोष
- 13 Nov 2024, 08:50 PM
- Updated: 08:50 PM
शिमला, 13 नवंबर (भाषा) हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने छह मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) की नियुक्ति बुधवार को रद्द कर दी और उस कानून को भी अमान्य घोषित कर दिया, जिसके तहत ये नियुक्तियां की गई थीं।
उच्च न्यायालय के इस फैसले को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
न्यायमूर्ति विवेक ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने इन सीपीएस को हासिल सभी सुविधाओं और विशेषाधिकार को भी तत्काल प्रभाव से वापस लेने का निर्देश दिया।
उच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ता, शक्तियां, विशेषाधिकार और संशोधन) अधिनियम, 2006 को निष्प्रभावी घोषित कर दिया।
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति नेगी ने कहा कि ये पद सार्वजनिक पद पर कब्जा करने वाले हैं और इनके तहत दी जाने वाली सभी सुविधाएं तत्काल प्रभाव से वापस ली जाएं।
सुक्खू ने अपने मंत्रिमंडल के विस्तार से पहले आठ जनवरी 2023 को छह सीपीएस-अर्की विधानसभा क्षेत्र से संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल बराकटा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल की नियुक्ति की थी।
उच्च न्यायालय ने कहा, “विवादित अधिनियम को राज्य विधायिका की विधायी क्षमता से परे होने के कारण रद्द किया जाता है और परिणामस्वरूप इसके तहत छह सीपीएस की नियुक्ति सहित बाद की सभी कार्रवाइयों को अवैध, असंवैधानिक, अमान्य घोषित किया जाता है और तदनुसार रद्द किया जाता है।”
उसने कहा, “चूंकि, अधिनियम शुरू से ही अमान्य है, इसलिए प्रतिवादी (सीपीएस) अपनी नियुक्ति के समय से ही सार्वजनिक पद पर अवैध रूप से काबिज हैं। अवैध और असंवैधानिक नियुक्ति के आधार पर उनका कार्यालय में बना रहना पूरी तरह से अस्वीकार्य है और अब से वे सीपीएस कार्यालय में सेवाएं नहीं दे सकेंगे।”
उच्च न्यायालय ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा सदस्य (अयोग्यता का हटाना) अधिनियम, 1971 धारा-3(डी) के अनुसार मुख्य संसदीय सचिव या संसदीय सचिव के पद पर ऐसी नियुक्ति को दी गई सुरक्षा भी अवैध और असंवैधानिक घोषित की जाती है और इस प्रकार, धारा-3(डी) के तहत इस तरह की सुरक्षा का दावा अप्रासंगिक है तथा इसके परिणाम और कानूनी निहितार्थ कानून के अनुसार तुरंत लागू होंगे।
उच्च न्यायालय ने सीपीएस की नियुक्ति को रद्द करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर दैनिक आधार पर सुनवाई के बाद जून में मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
भाषा पारुल