‘जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए खरबों डॉलर की जरूरत है, अमीर देशों को नेतृत्व करना चाहिए’
प्रशांत माधव
- 13 Nov 2024, 05:16 PM
- Updated: 05:16 PM
नयी दिल्ली, 13 नवंबर (भाषा) जर्मनी और फ्रांस सहित विकसित देशों के एक समूह तथा यूरोपीय आयोग ने बुधवार को स्वीकार किया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए खरबों डॉलर की तत्काल आवश्यकता है तथा अमीर देशों को जलवायु वित्त पोषण उपलब्ध कराने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश एक नए जलवायु वित्त पैकेज - नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी)- के मसौदे पर बहस कर रहे हैं जिसे अजरबैजान के बाकू में चल रही संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है।
जलवायु कार्यकर्ता और जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि पहल के वैश्विक सहभागिता निदेशक हरजीत सिंह ने कहा कि हालांकि यह वक्तव्य विकासशील देशों और नागरिक संस्थाओं की मांगों के अनुरूप है, लेकिन वास्तव में जो आवश्यक है, यह उससे कम है।
आक्रामक जलवायु कार्रवाई की वकालत करने वाले विकसित और विकासशील देशों के समूह, ‘हाई एम्बिशन कोएलिशन’ के अनुसार, “जब हम जलवायु वित्त पोषण के लिए इस नए लक्ष्य पर बातचीत कर रहे हैं, तो हमें एक बार फिर अपने मतभेदों को दूर करना होगा, वैश्विक एकजुटता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करना होगा, तथा ग्रह की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए धन जुटाना होगा।”
स्पेन, नीदरलैंड, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, केन्या, कोलंबिया और यूरोपीय आयोग सहित गठबंधन ने इस बात पर जोर दिया कि “खरबों डॉलर” की तत्काल आवश्यकता है।
इसमें कहा गया है कि जलवायु वित्त मुख्य रूप से अनुदान आधारित और रियायती होना चाहिए, विशेष रूप से अनुकूलन तथा नुकसान से निपटने के लिए।
इसमें कहा गया है कि हरित निवेश को फलने-फूलने के लिए सही परिस्थितियां मौजूद होनी चाहिए।
गठबंधन ने कहा, “विकसित देशों को आगे बढ़ना जारी रखना चाहिए तथा मौजूदा वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करना चाहिए तथा वित्त के नवीन स्वरूपों को वास्तविकता बनाया जाना चाहिए।” साथ ही जलवायु कोषों को स्वीकृत करने तथा वितरित करने के लिए सरलीकृत तथा तीव्र प्रक्रिया का आह्वान किया गया।
जलवायु कार्यकर्ता सिंह ने कहा कि विकासशील देशों को ऋण नहीं, बल्कि अनुदान के रूप में कम से कम एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, ताकि जलवायु प्रभावों के अनुकूल ढलने, नुकसान से उबरने तथा मजबूत शमन रणनीतियों को लागू करने में कमजोर देशों को वास्तविक रूप से सहायता मिल सके। इस बीच, एनसीक्यूजी पर बातचीत तनावपूर्ण बनी हुई है।
सोमवार को एजेंडा विवाद के कारण पूरा दिन बर्बाद होने के बाद, एनसीक्यूजी पर चर्चा - इस वर्ष की वार्ता का मुख्य मुद्दा - मंगलवार को उस समय ठप हो गई, जब जी-77 और चीन ने वार्ता के मसौदे को अस्वीकार कर दिया।
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