न्यायालय ने अचेतावस्था में पड़े व्यक्ति के लिए सरकारी सहायता प्राप्त चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित की
आशीष अविनाश
- 12 Nov 2024, 07:48 PM
- Updated: 07:48 PM
नयी दिल्ली, 12 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सिर में गंभीर चोट लगने के कारण 11 साल से अधिक समय से स्थायी रूप से अचेतावस्था में पड़े 30 वर्षीय व्यक्ति के माता-पिता की मदद सुनिश्चित की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि व्यक्ति के लिए सरकारी सहायता प्राप्त चिकित्सा देखभाल और सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
अपने बेटे हरीश राणा के लंबे समय तक इलाज और देखभाल के दौरान होने वाले खर्चों से आर्थिक संकट का सामना कर रहे माता-पिता, अब इसे और अधिक सहन करने में असमर्थ हैं। उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें उनके बेटे के लिए ‘यूथनेशिया’ (इच्छामृत्यु) से इंकार किया गया था।
अपने अंतिम कार्य दिवस पर पारित आदेश में प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट का अवलोकन किया और राणा को चिकित्सा एवं अन्य देखभाल प्रदान करने की योजना को मंजूरी दी।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह ‘पैसिव यूथनेशिया’ का मामला नहीं है, क्योंकि राणा जीवन को बनाए रखने के लिए वेंटिलेटर या अन्य यांत्रिक सहायता पर नहीं है, बल्कि उसे भोजन नली के माध्यम से भोजन दिया जा रहा है।
पीठ ने कहा कि ‘पैसिव यूथनेशिया’ की अनुमति देने के स्थान पर, जो इस मामले में स्वीकार्य नहीं है, न्यायालय उसे उपचार और देखभाल के लिए किसी सरकारी अस्पताल या इसी प्रकार के अन्य स्थान पर भेजने की संभावना पर विचार करेगा।
‘पैसिव यूथनेशिया’ के मामले में किसी मरीज को जिंदा रखने के लिए दिया जा रहा आवश्यक उपचार रोक दिया जाता है। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के निष्कर्षों से सहमति जताई, जिसने माता-पिता की इस दलील पर विचार करने के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने से इनकार कर दिया था कि उनके बेटे को ‘पैसिव यूथनेशिया’ की अनुमति दी जाए।
पीठ ने 20 अगस्त को केंद्र को नोटिस जारी कर राणा की देखभाल के लिए वैकल्पिक समाधान तलाशने को कहा था। इसके बाद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक स्थिति रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें राणा की देखभाल के लिए तीन विकल्पों का विवरण दिया गया था।
रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार की सहायता से राणा की घर पर देखभाल की जाएगी। इसमें फिजियोथेरेपिस्ट, आहार विशेषज्ञ नियमित रूप से उसे देखने जाएंगे, चिकित्सा अधिकारी कॉल पर उपलब्ध होंगे। घर पर नर्सिंग देखभाल का प्रावधान होगा तथा सभी आवश्यक दवाओं और अन्य सामग्रियों की निःशुल्क उपलब्धता होगी।
रिपोर्ट में कहा गया कि यदि घर पर देखभाल संभव नहीं हुआ, तो राणा को उसकी स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए उचित देखभाल सुनिश्चित करने के लिए जिला अस्पताल, नोएडा, सेक्टर-39 में स्थानांतरित किया जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया कि यदि उचित समझा जाए तो गैर सरकारी संगठनों से सहायता लेने पर भी विचार किया जा सकता है।
राणा के माता-पिता ने सरकार की रिपोर्ट से सहमति जताई। राणा के माता-पिता की ओर से वकील मनीष जैन अदालत में पेश हुए थे।
अदालत ने आठ नवंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘इस इंतजाम को रिकॉर्ड पर लेते हुए विशेष अनुमति याचिका का निपटारा किया जाता है। हालांकि, याचिकाकर्ता के माता-पिता में से किसी को भी भविष्य में अदालत में जाने की स्वतंत्रता दी जाती है, अगर आगे के निर्देश प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक हो जाए।’’
इससे पहले, अदालत ने इस तथ्य पर विचार किया था कि एक इमारत की चौथी मंजिल से गिरने के बाद राणा 11 साल से अचेत अवस्था में है और उसके बुजुर्ग माता-पिता को अपना भरण-पोषण करना मुश्किल हो रहा है क्योंकि उन्होंने अपना घर भी बेच दिया। जुलाई में, उच्च न्यायालय ने राणा के मामले को ‘पैसिव यूथनेशिया’ की अनुमति देने के लिए मेडिकल बोर्ड को भेजने से इनकार कर दिया था।
याचिका में कहा गया था कि उनके परिवार ने विभिन्न डॉक्टरों से परामर्श किया और उन्हें बताया गया कि राणा के ठीक होने की कोई गुंजाइश नहीं है। याचिका में कहा गया कि राणा के परिवार ने उसके ठीक होने की सारी उम्मीदें छोड़ दी हैं और उसके माता-पिता उसकी देखभाल करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि वे बूढ़े हो रहे हैं।
भाषा आशीष